ज़ी़ न्यूज़ के सम्पादक की गिरफ्तारी के बारे में सोशल मीडिया में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। इसमें कई तरह की व्यक्तिगत बातें भी हैं। कुछ लोग सुधीर चौधरी से व्यक्तिगत रूप से खफा हैं। वे इसे अपनी तरह देख रहे हैं, पर काफी लोग हैं जो मीडिया और खासकर समूची पत्रकारिता की साख को लेकर परेशान हैं। इन दोनों सवालों पर हमें दो अलग-अलग तरीकों से सोचना चाहिए।
एक मसला व्यावसायिक है। दोनों कारोबारी संस्थानों के कुछ पिछले विवाद भी हैं। हमें उसकी पृष्ठभूमि अच्छी तरह पता हो तब तो कुछ कहा भी जाए अन्यथा इसके बारे में जानने की कोशिश करनी चाहिए। फेसबुक में एक पत्रकार ने टिप्पणी की कि यह हिसार-युद्ध है। इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए। जहाँ तक सीडी की सचाई के परीक्षण की बात है, यह वही संस्था है जहाँ से शांति भूषण के सीडी प्रकरण पर रपट आई थी और वह रपट बाद में गलत साबित हुई। फिर यह सीडी एक समय तक इंतज़ार के बाद सामने लाई गई। हम नहीं कह सकते कि कितना सच सामने आया है। पुलिस की कार्रवाई न्यायपूर्ण है या नहीं, यह भी नहीं कह सकते। बेहतर होगा इसपर अदालत के रुख का इंतज़ार किया जाए।
एक मसला व्यावसायिक है। दोनों कारोबारी संस्थानों के कुछ पिछले विवाद भी हैं। हमें उसकी पृष्ठभूमि अच्छी तरह पता हो तब तो कुछ कहा भी जाए अन्यथा इसके बारे में जानने की कोशिश करनी चाहिए। फेसबुक में एक पत्रकार ने टिप्पणी की कि यह हिसार-युद्ध है। इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए। जहाँ तक सीडी की सचाई के परीक्षण की बात है, यह वही संस्था है जहाँ से शांति भूषण के सीडी प्रकरण पर रपट आई थी और वह रपट बाद में गलत साबित हुई। फिर यह सीडी एक समय तक इंतज़ार के बाद सामने लाई गई। हम नहीं कह सकते कि कितना सच सामने आया है। पुलिस की कार्रवाई न्यायपूर्ण है या नहीं, यह भी नहीं कह सकते। बेहतर होगा इसपर अदालत के रुख का इंतज़ार किया जाए।