राजनीतिक सवाल जब देश की रक्षा जैसे संजीदा मामलों पर हावी होने लगे हैं। यह गम्भीर चिंता का मामला है। 16 जनवरी की रात आगरा और हिसार से फौज की दो टुकड़ियों के दिल्ली की मूवमेंट की खबर दिल्ली के एक अखबार ने जिस तरह छापी है उससे कई तरह की चिंताएं एक साथ उजागर होती हैं। पहली चिंता यह है कि सुरक्षा से जुड़े मामलों पर जिस तरह से सार्वजनिक रूप से अब चर्चा हो रही है उसमें व्यक्तिगत मामलों को सार्वजनिक मामलों से जोडा जा रहा है। सेनाध्यक्ष के विरोधी उन्हें टार्गेट करने की कोशिश में तकरीबन वैसी ही हरकतें कर रहे हैं जैसी पिछले साल अन्ना हजारे के सहयोगियों के साथ हुईं थीं। कहना मुश्किल है कि कौन कहाँ पर दोषी है, पर संदेश यह जा रहा है कि एक ईमानदार जनरल जब रक्षा प्रतिष्ठान के भीतर पारदर्शी व्यवस्था कायम करना चाहता है तब स्वार्थी तत्व अनावश्यक वितंडे खड़े कर रहे हैं। हमारे फौजी प्रतिष्ठान की विसंगतियों को लेकर पाकिस्तान और चीन में जो प्रतिक्रिया होगी उसके बारे में भी सोचें।
Sunday, April 15, 2012
सवाल सुरक्षा का नहीं व्यवस्था का है
हाल में स्टॉकहोम के पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की रपट में बताया गया कि सन 2007 से 2010 के बीच दुनिया में सबसे ज्यादा हथियारों का आयात भारत ने किया। इसका मतलब निकालने के पहले हमें यह देखना चाहिए कि क्या इस बात का सेनाध्यक्ष वीके सिंह और सरकार के विवाद से भी कोई सम्बन्ध है? जनरल वीके सिंह ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा है। उस पत्र के लीक वगैरह की बातों को छोड़कर उसमें कही गई बातों पर गौर करें तो पता लगेगा कि सेना के पास तमाम उपकरणों की कमी है। इनमें से ज्यादातर उपकरणों की खरीद दूसरे देशों से होगी। यानी हमें और ज्यादा हथियारों का आयात करना होगा।
गरीबी का पेचीदा अर्थशास्त्र
गरीबी का अर्थशास्त्र बेहद जटिल और अनेकार्थी है। आँकड़ों का सहारा लेकर आप कई तरह के निष्कर्ष निकाल सकते हैं। योजना आयोग की एक रपट में बताया गया है कि सन 2004-05 के मुकाबले सन 2009-10 में भारत में गरीबों की संख्या 37.2 फीसदी से घटकर 29.8 फीसदी रह गई है। यानी पाँच साल में गरीबों की संख्या 40.7 करोड़ से घटकर 35.5 करोड़ हो गई। यह सब सैम्पल सर्वे के आधार पर कहा गया है, जिनकी विश्वसनीयता को लेकर हमेशा सवाल उठाए जा सकते हैं। पर इसे या इस ट्रेंड को सच मान लें तब भी इससे यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि गरीबी घट रही है। मसलन जिस रोज हम योजना आयोग की रपट के बारे में खबर पढ़ रहे थे उसी रोज यह खबर भी हमारे सामने थी कि खाद्य सामग्रियों की कीमतों में दस फीसदी के इज़ाफे से तकरीबन तीन करोड़ लोग गरीबी के सागर में डूब जाएंगे। घरीबी एक चीज़ है नितांत गरीबी दूसरी चीज़ और असमानता तीसरी चीज़। अक्सर हम इन सब को एक साथ जोड़ लेते हैं।
यूपीए का इंजन फेल
लोकलुभावन राजनीति की
खराबी है कि उसे लम्बा नहीं चलाया जा सकता। दो रुपए किलो गेहूँ दिया भी जा सकता है,
किसानों को मुफ्त पानी, बिजली दी जा सकती है, मुफ्त में साइकिलें दी जा सकती हैं, पर
यह हमेशा नहीं चलता। इस बार के रेलवे बजट में इस लोकलुभावन नीति पर केन्द्र सरकार ब्रेक
लगाने में कामयाब हुई तो शाम होते-होते एक नया राजनीतिक संकट खड़ा हो गया। पिछले साल
तीस्ता के पानी को लेकर बांग्लादेश के साथ समझौता नहीं हो सका, क्योंकि ममता बनर्जी
की कुछ आपत्तियाँ थीं। भूमि अधिग्रहण कानून रुका पड़ा है, रिटेल में विदेशी निवेश का
फैसला रोक दिया गया है, लोकपाल विधेयक पर राज्यसभा में संशोधनों की बौछार हो गई, नेशनल
काउंटर टेररिज्म सेंटर पर अड़ंगा लग गया है। सन 1989 के बाद से भारत में केन्द्र सरकार
चलाना मुश्किल काम हो गया है। देश के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक अंतर्विरोधों
का इतना जटिल रूप हो सकता है इसके बारे में संविधान निर्माताओं ने सोचा नहीं होगा।
यूपीए-1 ने हालांकि पाँच साल पूरे किए, पर न्यूक्लियर बिल पर जिस तरह से राजनीतिक वितंडा
हुआ उसकी कल्पना नहीं की गई थी। और अब जो हो रहा है वह आने वाले वक्त की भयावह तस्वीर
पेश कर रहा है।
Monday, April 9, 2012
असमंजस के दौर में पाकिस्तान
इस शुक्रवार को लाहौर की ज़मिया-मरक़ज़-अल-क़सिया
मस्जिद में जुमे की नमाज़ के बाद जमात-उद-दावा या लश्करे तैयबा के चीफ हफीज़ सईद ने
कहा, ‘पाकिस्तान और इस्लाम को बचाने के लिए अमेरिका के खिलाफ जेहाद
छेड़ दिया गया है। इसी जेहाद की वज़ह से सोवियत संघ टूट गया था और सबको मालूम है कि
उस मुल्क का क्या हुआ। और अब अमेरिका की शिकस्त हो रही है। मीडिया एक्सपर्ट और जर्नलिस्टों
को अमेरिका की शिकस्त नज़र नहीं आती।’ मस्जिद के दरवाज़े पर बड़ा सा बक्सा रखा था। बहर
जाने वालों से कहा जा रहा था कि जेहाद के लिए पैसा दें। हाल में अमेरिका ने हफीज़ सईद
पर एक करोड़ डॉलर का इनाम रखा है। शायद उसी वजह से या दिखावे के लिए उसके चारों ओर
हथियारबंद अंगरक्षक तैनात थे।
Subscribe to:
Posts (Atom)