पाँच विधानसभाओं के चुनाव तय करेंगे राष्ट्रीय राजनीति की दिशा
तेरह को खत्म होंगे कुछ किन्तु-परन्तु
प्रमोद जोशी
राजनीति हमारी राष्ट्रीय संस्कृति और चुनाव हमारे महोत्सव हैं। इस विषय पर हाई स्कूल के छात्रों से लेख लिखवाने का वक्त अभी नहीं आया, पर आयडिया अच्छा है। गरबा डांस, भांगड़ा, कथाकली, कुचीपुडी और लाल मिर्चे के अचार जैसी है हमारी चुनाव संस्कृति। जब हम कुछ फैसला नहीं कर पाते तो जनता पर छोड़ देते हैं कि वही कुछ फैसला करे।
टू-जी मामले में कनिमोझी की ज़मानत पर फैसला 14 मई तक के लिए मुल्तवी हो गया है। 14 के एक दिन पहले 13 को तमिलनाडु सहित पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम सामने आ चुके होंगे। कनिमोझी की ज़मानत का चुनाव परिणाम से कोई वास्ता नहीं है, पर चुनाव परिणाम का रिश्ता समूचे देश की राजनीति से है। तमिलनाडु की जनता क्या इतना जानने के बाद भी डीएमके को जिताएगी? डीएमके हार गई तो क्या यूपीए के समीकरण बदलेंगे?
कुछ ऐसे ही सवाल बंगाल के चुनाव को लेकर हैं। बंगाल में तृण मूल कांग्रेस का सितारा बुलंदी पर है। वे जीतीं तो मुख्यमंत्री भी बनेंगी। बेशक उनके बाद रेल मंत्रालय उनकी पार्टी को ही मिलेगा, पर क्या कांग्रेस बंगाल की सरकार में शामिल होगी? सन 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को महत्वपूर्ण सफलता मिली थी। पर अब सन 2009 नहीं है। और न वह कांग्रेस है। पिछले एक साल में राष्ट्रीय राजनीति 360 डिग्री घूम गई है।