Wednesday, November 13, 2024

दक्षिण एशिया की प्रगति के लिए ज़रूरी है ‘आपसी संपर्क’

भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को लेकर हाल में दो खबरों ने ध्यान खींचा है. पहली है लाहौर के पर्यावरण के संबंध में पाकिस्तान के पंजाब राज्य की कोशिशें और दूसरी दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्तों को फिर से कायम करने के सुझाव से जुड़ी है. एक और खबर भारत-अफगानिस्तान रिश्तों को लेकर भी है.

भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों से तनावपूर्ण संबंध हैं, लेकिन जैसे-जैसे ज़हरीली हवा का मुद्दा सामने आ रहा है, दोनों पड़ोसियों को अपनी साझा जिम्मेदारी पर भी विचार करना पड़ रहा है.

सीमा पार से हाल में भेजे गए एक संदेश में पाकिस्तानी पंजाब की पर्यावरण संरक्षण मंत्री मरियम औरंगजेब ने एक भारतीय अखबार से कहा, सीमा के दोनों ओर के पंजाबों में स्मॉग शमन की संयुक्त-योजना शुरू करने का यह सही समय है.

इसके पहले पाकिस्तानी पंजाब की मुख्यमंत्री मरियम नवाज़ शरीफ ने भी इसी आशय की बातें कही थीं. उन्होंने कहा, यह राजनीतिक नहीं, मानवीय मुद्दा है. हवाओं को नहीं पता कि बीच में कोई सीमा है. मरियम नवाज़ पंजाब की सांस्कृतिक-एकता का हवाला भी अरसे से देती रही हैं.

पाकिस्तानी पंजाब के पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन सचिव राजा जहाँगीर अनवर ने पिछले हफ्ते बताया कि पंजाब के अधिकारियों ने इस मुद्दे पर बातचीत शुरू करने के लिए भारत सरकार को एक पत्र का मसौदा भी तैयार किया है.

भारत-अफगानिस्तान

एक और खबर भारत-अफगानिस्तान रिश्तों को लेकर है, जिसका वास्ता भारत-पाकिस्तान रिश्तों से नहीं है, पर इलाके में माहौल को बेहतर बनाने से ज़रूर है. इसमें अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ाई की भूमिका भी है, जो देश छोड़कर नहीं गए और तालिबान तथा शेष विश्व के बीच महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में काम कर रहे हैं.

खबर यह है कि पहली बार अफगानिस्तान के अंतरिम रक्षामंत्री मुल्ला मोहम्मद याकूब से भारतीय विदेश मंत्रालय के एक उच्चाधिकारी की मुलाकात हुई. विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान-अफगानिस्तान-ईरान डिवीजन के संयुक्त सचिव जेपी सिंह के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल 4-5 नवंबर को काबुल गया था. काबुल में उन्होंने हामिद करज़ाई और कुछ वरिष्ठ मंत्रियों से भी मुलाकात की.

प्रत्यक्षतः यह मुलाकात अफगानिस्तान को मदद देने के बाबत और ईरान के चाबहार पोर्ट के इस्तेमाल से जुड़े मुद्दों को लेकर हुई है. भारत ने अफगानिस्तान को हाल में गेहूँ, दवाइयाँ वगैरह मानवीय आधार पर दी हैं. यह मदद ज़ारी रहने के संकेत हैं. इन पंक्तियों के प्रकाशन के समय यह खबर भी आई कि अफगानिस्तान ने इकरामुद्दीन कामिल को मुंबई में अपना कार्यवाहक दूत नियुक्त किया है. इस खबर के निहितार्थ आने वाले समय में पता लगेंगे.  

2021 से अफगानिस्तान पर शासन कर रहे तालिबान शासन को भारत ने अभी तक मान्यता नहीं दी है, लेकिन जहाँ पाकिस्तान सरकार के साथ तालिबान के रिश्ते खराब हुए हैं, वहीं भारत के साथ संपर्क बढ़ा है.

भारत-अफगानिस्तान को पाकिस्तान ज़मीनी रास्ते से कारोबार करने की इजाजत नहीं देता है. ऐसे में चाबहार पोर्ट का इस्तेमाल अफगान के उद्यमी करना चाहते हैं. इस साल की शुरुआत में भारत ने ईरान के साथ चाबहार पोर्ट के विकास और संचालन के लिए 10 साल का अनुबंध किया है. इस बंदरगाह को भारत की सहायता से बनाया गया है.

व्यापारिक-सहयोग

इन खबरों के साथ एक और खबर भी आई. पाकिस्तान के वित्तमंत्री मुहम्मद औरंगजेब ने वॉशिंगटन में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि अपने पड़ोसियों के साथ व्यापार न करना नासमझी है. उन्होंने वस्तुतः यह टिप्पणी अपने देश की राजनीतिक-समझ पर की है.

रविवार 27 अक्तूबर को वॉशिंगटन में क्षेत्रीय व्यापार, विशेषकर भारत के साथ व्यापार बढ़ाने के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, क्षेत्रीय व्यापार से जुड़े राजनीतिक या भू-राजनीतिक मुद्दे मेरे अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं, फिर भी मेरी यह राय है.

दक्षिण एशिया दुनिया का ऐसा इलाका है, जहाँ क्षेत्रीय-कारोबार लगभग नहीं के बराबर है. इस इलाके में तनाव और संघर्ष को कम करने में खेल, संगीत, सिनेमा, खानपान और कारोबारी रिश्तों की भूमिका हो सकती है, लेकिन इसमें सबसे बड़ी बाधा भारत-पाकिस्तान के तनावग्रस्त रिश्ते हैं.

कभी हाँ, कभी ना

पाकिस्तान की आंतरिक-राजनीति 1947 में हुए विभाजन को सही साबित करने के फेर में ऐसी किसी संभावना को पनपने नहीं देती, जिससे दोनों देशों की जनता को एक-दूसरे के करीब आने का मौका मिले. आज वे मोदी सरकार पर दोषारोपण करते हैं, पर उनके पास इस बात का जवाब नहीं है कि 2014 के पहले तक क्या होता रहा है?

अगस्त, 2012 में भारत सरकार ने पाकिस्तान के निवेशकों पर भारत में लगी रोक हटाने की पेशकश की थी. यानी कि पाकिस्तानी निवेशकों को रक्षा, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष कार्यक्रमों के अलावा अन्य कारोबारों में निवेश करने का रास्ता खुलने जा रहा था.

निवेश को स्वीकार करने का फैसला दोनों देशों के वाणिज्य मंत्रियों की उसी साल अप्रेल में दिल्ली में हुई बैठक में किया गया था. इतना बड़ा फैसला लागू हो जाता, तो आज कहानी कुछ और होती, पर ऐसा हुआ नहीं.

इतना ही नहीं भारत में मोदी-सरकार आने के बाद रिश्तों को सुधारने की कोशिशें हुईं भी, तो उनमें पलीता लगा दिया गया. 25 दिसंबर, 2015 को पीएम मोदी की लाहौर-यात्रा के बाद, जो रिश्ते बनते-सँवरते लग रहे थे, वे एक हफ्ते बाद 2 जनवरी, 2016 को पठानकोट पर हुए हमले के बाद टूटते चले गए.

भारत और पाकिस्तान के विदेश सचिवों की 15 जनवरी, 2016 को इस्लामाबाद में बैठक होने वाली थी, जिसमें द्विपक्षीय व्यापक वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए रोडमैप तैयार होना था.

भारत के तत्कालीन विदेश सचिव एस जयशंकर पाकिस्तानी विदेश सचिव ऐजाज़ अहमद चौधरी के साथ वार्ता के लिए इस्लामाबाद जाने वाले थे. वह यात्रा और वार्ता हुई ही नहीं. इसका जवाब पाकिस्तान को भी देना चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ?

संशय ही संशय

रिश्ते सुधरेंगे, तो दोनों का भला होगा. दोनों के एक जैसे उपभोक्ता हैं और एक जैसे व्यापारी. दोनों को सस्ते में माल मिलेगा, परिवहन आसान होगा और गतिविधियाँ बढ़ेंगी तो दोनों ओर रोज़गार बढ़ेगा.

संशय किस हद तक हैं इसका पता नवंबर 2011 में भारत को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा देने की घोषणा के बाद लगा. पाकिस्तान की सूचना प्रसारण मंत्री ने बाकायदा इसकी घोषणा की, पर बाद में पता लगा कि फैसला हो ज़रूर गया है पर घोषणा में पेच था.

पसंदीदा मुल्क या एमएफएन शब्द भ्रामक है. भारत को पसंदीदा मुल्क कैसे मान लें, जबकि तकनीकी लिहाज से उसका मतलब सिर्फ इतना था कि दूसरे देशों की तरह भारत को भी माना जाएगा. पाकिस्तान के उर्दू मीडिया और राजनीति ने सिर्फ पसंदीदा शब्द पर भसड़ मचा दी.  

2012 में भारत ने पाकिस्तान को एमएफएन का दर्जा दे दिया था, लेकिन पाकिस्तान ने भारत को नहीं दिया. सितंबर 2012 में नई दिल्ली में वाणिज्य सचिवों के संयुक्त बयान में कहा गया कि दिसंबर तक दोनों का व्यापार पूरी तरह से एमएफएन में परिवर्तित हो जाएगा, और पाकिस्तान वाघा-अटारी सीमा व्यापार पर से प्रतिबंध हटा लेगा.

कारोबारी माहौल

2012 तक, दोनों देश न केवल व्यापार बाधाओं को दूर करने पर, बल्कि बिजली और ईंधन (गैस निर्यात और बिजली संचरण सहित), हवाई संपर्क, निवेश आदि पर भी चर्चा कर रहे थे. पाकिस्तान ने पसंदीदा मुल्क की पहेली को सुलझाने के लिए नकारात्मक-सूची का रास्ता तैयार किया.

पाकिस्तान ने 1,209 उत्पादों की नकारात्मक सूची बनाई, जिनका भारत से आयात नहीं किया जा सकता. उसने उन उत्पादों की संख्या को भी सीमित कर दिया, जिन्हें सबसे आसान वाघा-अटारी रास्ते से लाया जा सकता था.

भारत के विदेश-व्यापार का तकरीबन सौवाँ हिस्सा पाकिस्तान से जुड़ा है. तस्करी की जगह औपचारिक व्यापार होने से हमें नहीं पाकिस्तान के व्यापारियों, उपभोक्ताओं और सरकार को फायदा होगा. बदले में उन्हें तकरीबन तीस करोड़ लोगों के मध्यवर्ग का बाज़ार मिलेगा.

हम परंपरा से एक ही अर्थ-व्यवस्था का हिस्सा रहे हैं. तमाम आर्थिक क्रिया-कलाप मिलकर करने के आदी रहे हैं, इसलिए आसानी से यह काम हो सकता है. भारत और पाकिस्तान की संयुक्त कंपनियाँ भी बन सकती हैं.

दोनों देशों के बीच तना-तनी और युद्ध की आशंकाओं को दूर करने के लिए आर्थिक पराश्रयता मददगार होगी. दोनों को एक-दूसरे की ज़रूरत होनी चाहिए. ऐसी स्वाभाविक-मैत्री चीन और पाकिस्तान की नहीं हो सकती.

मौके गँवाना

भारत, पाकिस्तान, भूटान, मालदीव, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका ने दिसंबर 1985 में सार्क बनाया. उन दिनों भारत और पाकिस्तान के रिश्ते फिर से पटरी पर लाने की शुरुआत हुई थी. म्यांमार यानी बर्मा अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण आसियान में चला गया है. अन्यथा यह पूरा क्षेत्र एक आर्थिक ज़ोन के रूप में बड़ी आसानी से काम कर सकता है.

इस इलाके की सकल अर्थ-व्यवस्था को जोड़ा जाय तो यह दुनिया की तीसरे-चौथे नंबर की अर्थ-व्यवस्था साबित होगी. इसके जुड़ने पर इसका विकास किस गति से होगा, इसका आप अनुमान नहीं लगा सकते.

पाकिस्तान को बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और श्रीलंका के अलावा दक्षिण पूर्व एशिया के देशों से जोड़ने में भारत की भूमिका हो सकती है. और भारत को अफगानिस्तान तथा मध्य एशिया से जोड़ने में पाकिस्तान की.

राजनीतिक कारण

पाकिस्तान में सत्तारूढ़ पीएमएल-एन ने अपने 'व्यापार समर्थक' नज़रिए के साथ, भारत से बेहतर व्यापारिक-संबंधों की वकालत की है, पर राजनीतिक कारणों से उसे हाथ खींचने पड़े हैं. उनके प्रधानमंत्री और विदेशमंत्री दोनों व्यापार संबंधों को बेहतर बनाने के समर्थक हैं.  

उनके वित्तमंत्री ने वाशिंगटन में जो सुझाव दिया है, उसमें कुछ भी नया नहीं है. मुद्दा यह है कि संबंधों को सामान्य बनाना है तो देश के सभी हितधारकों को इसमें शामिल होना होगा. व्यापार के लिए सरकारी उत्साह के बावजूद, पाकिस्तानी विदेश कार्यालय ने अगस्त में कहा कि दिल्ली के साथ कारोबारी रिश्तों को सामान्य बनाना हमारे एजेंडे में नहीं है.

ज़ाहिर है कि पाकिस्तान का प्रभावशाली तबका उत्साहित नहीं है. भारत ने 2019 में जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किया, तभी पाकिस्तान ने न केवल भारत के साथ व्यापार बंद कर दिया, साथ ही भारत स्थित अपने उच्चायुक्त को भी वापस बुला लिया. जवाब में भारत ने भी अपने उच्चायुक्त को बुलाया. जब तक इन दोनों की वापसी नहीं होगी, तब तक रिश्ते कैसे सुधरेंगे?

सहायक-सुविधाएँ

कारोबारी-संबंधों को पनपाने के लिए, मैत्रीपूर्ण वीज़ा व्यवस्था, सीधी उड़ानों और बैंकिंग चैनलों की ज़रूरत भी होगी. विश्व बैंक की दक्षिण एशिया से जुड़ी एक रिपोर्ट बताती है कि आज के हालात में भी दोतरफा व्यापार 2019 से पहले के स्तर से 18 गुना अधिक हो सकता है. अपार व्यापार क्षमता को बढ़ती तस्करी में देखा जा सकता है. लाहौर के बाजारों में भारतीय माल तिगुने-चौगुने दाम पर बिकता है.

विश्व बैंक के अनुसार रिश्ते सुधरने पर पाकिस्तान के निर्यात-कारोबार में 80 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है. ऐसे देश के लिए यह वरदान होगा, जो विदेशी-मुद्रा संकट से घिरा है. भारत के साथ जिंस-बाजार खुलने पर खाद्य-सामग्री और ईंधन की कीमतों को कम करने में मदद मिलेगी, जनता को राहत मिलेगी.

भारतीय गेहूँ के आयात से पाकिस्तान में आटे की कीमतों को काफी हद तक कम किया जा सकता है. भारत और पाकिस्तान के कुछ अलग-अलग फसल कटाई चक्र दोनों देशों में मौसमी खाद्य कमी को कम करने में मदद कर सकते हैं. यह प्राकृतिक-रिश्ता हजारों साल पुराना है.

दोनों देशों के बीच पर्यटन की जबर्दस्त संभावनाएं हैं. ट्रांज़िट-व्यापार खुले, तो पाकिस्तान के रास्ते भारतीय माल अफगानिस्तान और मध्य एशियाई बाजारों तक पहुँचने लगेगा. इससे भारत समेत इन सभी देशों में लाखों रोज़गार पैदा होंगे.  

आवाज़ द वॉयस में प्रकाशित

 

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