Wednesday, February 12, 2025

आपका स्वप्न-भंग

देश में ज्यादातर राजनीति ग्राम-केंद्रित है, पर दिल्ली जैसे छोटे प्रदेश से एक आदर्श नगर-केंद्रित राजनीति का मौक़ा आम आदमी पार्टी को मिला। यह अपेक्षाकृत नया विचार था। नगर-केंद्रित राजनीति क्या हो सकती है, उसपर अलग से विचार करने की जरूरत है। यहाँ मेरा इरादा आम आदमी पार्टी को लेकर कुछ बातें लिखने का है। इस पार्टी ने धीरे-धीरे काम किया होता अपने मॉडल को सारे देश में लागू करने की बातें होतीं, तब भी बात थी। पर पार्टी ने एकसाथ सारे देश को जीतने के इरादे घोषित कर दिए। यह भी ठीक था, पर उसके लिए पर्याप्त होमवर्क और परिपक्व-विचार नहीं था। राजनीतिक-विस्तार के लिए जिन संसाधनों की जरूरत होती है, उसे बटोरने के चक्कर में यह उसी वात्याचक्र में घिर गई, जिसे शुरू में इसके नेता राजनीतिक-भ्रष्टाचार कहते थे। उसके नेताओं ने महत्वाकांक्षाओं का कैनवस इतना बड़ा बना लिया कि उसपर कोई तस्वीर बन ही नहीं सकती।

राजनीति के लिए पैसा चाहिए और आम आदमी पार्टी भी सत्ता के उन स्रोतों तक पहुँच गई, जो प्राणवायु प्रदान करते हैं। यह पार्टी इस प्राणवायु के स्रोत बंद करने के नाम पर आई थी और ख़ुद इस 'ऑक्सीजन' की शिकार हो गई। सब कुछ केवल पार्टी के विरोधियों की साज़िश के कारण नहीं हुआ। ‘आप’ का दोष केवल इतना नहीं है कि उसने एक सुंदर सपना देखा और उसे सच करने में वह नाकामयाब हुई। ऐसा होता तब भी गलत नहीं था। अब हालत यह है कि कोई नया सपना देखने वालों पर जनता भरोसा नहीं करेगी। वस्तुतः ‘आप’ यह साबित करने में फेल हुई कि वह आपकी पार्टी है।

दिसंबर 2013 में पहली बार चुनाव जीतने के बाद अरविंद केजरीवाल ने जंतर-मंतर में हुई सभा में पर कहा, ‘यहाँ जितने विधायक बैठे हैं। मैं उन सभी से हाथ जोड़कर कहूंगा कि घमंड में कभी मत आना। अहंकार मत करना। आज हम लोगों ने भाजपा और कांग्रेस वालों का अहंकार तोड़ा है। कल कहीं ऐसा न हो कि किसी आम आदमी को खड़ा होकर हमारा अहंकार तोड़ना पड़े। ऐसा न हो कि जिस चीज़ को बदलने हम चले थे कहीं हम उसी का हिस्सा हो जाएँ।’

आज कह सकते हैं कि जिस राजनीति को वे बदलने चले थे, उसने उन्हें बदल दिया है। उनका दावा था, ‘हम राजनीति करने नहीं इसे बदलने आए हैं!’ यह पार्टी वैकल्पिक राजनीति का एक सपना थी। वह सपना बहुत जल्दी टूट गया। ऐसा नहीं है कि ‘आप’ ने कुछ अलग करने की कोशिश नहीं की, पर यह कोशिश प्रचारात्मक ज्यादा थी। 2020-21 में कोविड के दौरान और उसके पहले और बाद में भी लगातार बढ़ते प्रदूषण और खासतौर से यमुना के पानी के प्रदूषण ने लोगों को परेशान कर दिया।

एक तरफ मुफ्त पानी दिया जा रहा था, वहीं कुछ ऐसे इलाके थे, जहाँ पीने के पानी की इतनी किल्लत थी कि लोगों को टैंकर खरीदने पड़ते थे। इससे टैंकर-माफिया की अवधारणा विकसित हुई। बेशक सरकारी स्कूल के जीर्णोद्धार और, कम सफलता के साथ, सब्सिडी वाले पानी और बिजली के प्रावधान के साथ मोहल्ला क्लीनिक स्थापित करने में उसने सफलता भी हासिल की, पर उससे जुड़े भ्रष्टाचार के आरोप भी हैं, जो अब सामने आएँगे।

तेजी से बढ़ते महानगर की समस्याएं और मुद्दे दूसरे भी थे, जिन पर ‘आप’ सरकार लापरवाह, लापरवाह या असहाय नजर आई। पेयजल की किल्लत, सड़कों की खराब होती हालत, कूड़े के ढेर, खुली नालियां, जाम सीवर लाइनें और बिगड़ते एक्यूआई ने ‘आप’ को हास्यास्पद बना दिया।

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