Sunday, February 12, 2023

संसदीय-बहस ने खोले चुनाव-24 के द्वार


इस हफ्ते संसद में बजट से ज्यादा राष्ट्रपति का अभिभाषण चर्चा का विषय रहा। चर्चा का विषय यह नहीं था कि राष्ट्रपति ने क्या कहा, बल्कि इस अभिभाषण के मार्फत व्यापक सवालों से जुड़ी राजनीतिक-बहस संसद के दोनों सदनों में शुरू हुई है, जो संभवतः 2024 के लोकसभा चुनाव से जुड़े सवालों को छूकर गुजरेगी। भारत-जोड़ो यात्रा के अनुभव और आत्मविश्वास से भरे राहुल गांधी की राजनीतिक दिशा को भी इसके सहारे देखा-समझा जा सकता है। बहरहाल संसद के भीतर राहुल और उनके सहयोगियों ने सरकार को निशाना बनाया, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उतनी ही शिद्दत से उन्हें जवाब दिया। इस वाग्युद्ध की शब्दावली से अनुमान लगाया जा सकता है कि बहस का धरातल कैसा रहेगा। बहरहाल लोकसभा में प्रधानमंत्री के वक्तव्य के बाद माहौल में जो गर्मी पैदा हुई थी, उससे राज्यसभा में नाटकीयता बहुत ज्यादा बढ़ गई। इस दौरान संसदीय-बहस के कुछ मूल्य और सिद्धांतों को लेकर सवाल भी उठे हैं। सदन में किस प्रकार की शब्दावली की इस्तेमाल किया जाए, आरोप लगाते वक्त किन बातों को ध्यान में रखा जाए और किस प्रकार के बयानों को कार्यवाही से निकाला जा सकता है, ऐसे प्रश्न राष्ट्रीय-विमर्श के केंद्र में भी आए हैं। मोटे तौर पर यह सब उस राष्ट्रीय बहस का प्रस्थान-बिंदु है, जिसका समापन अब 2024 के चुनाव में ही होगा।

मोदी पर निशाना

लोकसभा में राहुल गांधी ने और राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खड़गे ने नरेंद्र मोदी को सीधा निशाना बनाया, तो मोदी ने दोनों को करारे जवाब दिए। अलबत्ता राज्यसभा में कांग्रेस पार्टी ने लगातार नारेबाजी का सहारा लिया, जबकि लोकसभा में एकबार बहिर्गमन करने के बाद पार्टी के सदस्य सदन में वापस आ गए थे।  दोनों बातों से लगता है कि पार्टी तय नहीं कर पा रही है कि उसकी रणनीति क्या होगी। उसे अपना चेहरा सौम्य बनाना है या कठोर? अतीत का अनुभव है कि केवल मोदी पर हमला होने पर जवाबी प्रतिक्रिया का लाभ मोदी को ही मिलता है। 2002 के गुजरात चुनाव के बाद से अब तक का अनुभव यही रहा है। पूरी बहस पर नज़र डालें, तो उसमें राष्ट्रपति के अभिभाषण में व्यक्त बातों को शायद ही कही छुआ गया हो। मोदी ने लोकसभा में अपना वक्तव्य शुरू करते समय इस बात का उल्लेख किया भी था। बेशक इस बहस ने माहौल को सरगर्म कर दिया है, पर संसदीय-कर्म की गुणवत्ता के लिहाज से तमाम सवाल भी इसे लेकर उठे हैं।

एक अकेला, सब पर भारी

लोकसभा में मोदी ने कहा कि देश की 140 करोड़ जनता मेरे लिए ढाल का काम करती है, वहीं राज्यसभा में कहा, मैं अकेला बोल रहा हूं, उन्हें नारेबाजी के लिए लोग बदलने पड़ रहे हैं। और यह भी, कीचड़ उनके पास था, मेरे पास गुलाल। जो भी जिसके पास था, उसने दिया उछाल। जितना कीचड़ उछालोगे, कमल उतना ही ज्यादा खिलेगा। राज्यसभा में प्रधानमंत्री का भाषण शुरू होने के पहले ही विपक्ष ने नारेबाजी शुरू कर दी, जो उनके 90 मिनट के भाषण के दौरान लगातार जारी रही। इस पर मोदी बोले, देश देख रहा है कि एक अकेला कितनों पर भारी पड़ रहा है। नारे बोलने के लिए भी लोग बदलने पड़ रहे हैं। मैं अकेला घंटे भर से बोल रहा हूं, रुका नहीं। उनके अंदर हौसला नहीं है, वे बचने का रास्ता ढूंढ रहे हैं। एक अकेला, सब पर भारी 2024 के चुनाव में यह राजनीतिक नारा बनकर उभरे तो हैरत नहीं होगी। बजट सत्र शुरू होने के ठीक पहले गौतम अडानी की कंपनियों को लेकर हिंडनबर्ग रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद कांग्रेस के पास इससे जुड़े सवाल करने का यह बेहतरीन मौका था। राहुल गांधी ने अपने भाषण में इन सवालों को उठाया, जबकि प्रधानमंत्री ने इनका जिक्र भी नहीं किया। क्यों नहीं किया? इसके दो कारण बताए गए हैं। पहला कारण तकनीकी है। राहुल गांधी के वक्तव्य के वे अंश कार्यवाही से निकाल दिए गए हैं, जिनमें अडानी से जुड़े सवाल थे। जब सवाल ही कार्यवाही में नहीं है, तब जवाब कैसे? दूसरा कारण रणनीतिक है। जवाब देने पर उसमें विसंगतियाँ निकाली जातीं। पार्टी अभी उनसे बचना चाहती है।

यूपीए बनाम बीजेपी

प्रधानमंत्री ने लोकसभा के भाषण में यूपीए सरकार के दस वर्षों से अपनी सरकार के नौ वर्षों की तुलना करते हुए एक तरह से 2024 के चुनाव की पृष्ठभूमि तैयार कर दी। साथ ही उन्होंने राहुल गांधी की भारत-यात्रा के संदर्भों को भी जोड़ा और अपनी कश्मीर यात्रा का हवाला दिया। उन्होंने कहा, जब मैंने झंडा फहराया तब दुश्मन बारूद की सलामी दे रहा था। बम फोड़ रहा था। जो अभी-अभी जम्मू कश्मीर घूमकर आए हैं, उन्होंने देखा होगा कि कितनी शान से आप वहां आ जा सकते हैं। मोदी ने कहा, कुछ लोग अपने लिए अपने परिवार के लिए बहुत कुछ तबाह करने पर लगे हुए हैं। मोदी तो 140 करोड के परिवार के साथ जी रहा है। 140 करोड़ का आशीर्वाद मोदी के साथ है। वे 2014 से लगातार कोस रहे हैं कि भारत कमजोर हो रहा है। यूपीए के शासन के दौरान देश में हिंसा का माहौल था। देश में 10 साल तक खून बहता रहा। उन 10 साल में भारत की आवाज ग्लोबल प्लेटफॉर्म पर इतनी कमजोर थी कि कोई सुनने को तैयार नहीं था। देश में घोटालों का बोलबाला था। अर्थव्यवस्था खस्ताहाल हो गई। महंगाई डबल डिजिट रही। हमारी सरकार पूर्ण बहुमत से चुनी हुई सरकार है। रिफॉर्म आउट ऑफ कनविक्शन हो रहे हैं। हम इस मार्ग से हटने वाले नहीं है।

राहुल और खड़गे के भाषण

अपनी भारत-जोड़ो यात्रा से प्राप्त अनुभव और आत्मविश्वास से लैस राहुल गांधी ने लोकसभा में काफी बातें अपनी यात्रा पर केंद्रित रखीं। उन्होंने कहा, हमने हजारों लोगों से बात की और जनता की आवाज़ हमें गहराई से सुनाई पड़ने लगी। यात्रा हमसे बात करने लगी। किसानों ने पीएम-बीमा योजना के तहत पैसा नहीं मिलने की बात कही। आदिवासियों से उनकी जमीन छीन ली गई। उनकी संवाद-शैली में नयापन था। उनका कहना था, देश ने जो मुझसे कहा, उन बातों को मैं संसद में रख रहा हूँ। ये बातें जनता ने उनसे कहीं या नहीं कहीं, यह अलग विषय है, पर राजनेता के रूप में उन्होंने अपनी यात्रा का इस्तेमाल किया। अगले रोज प्रधानमंत्री के भाषण के पहले जानकारी मिली कि उनके भाषण के कुछ अंशों को लोकसभा अध्यक्ष के आदेश पर संसदीय-रिकॉर्ड से हटा दिया गया है। भाषण के उस अंश में राहुल ने सरकार पर अडानी मुद्दे को लेकर हमला बोला था और अडानी का नाम लेकर कई आरोप लगाए थे। उन्होंने कुछ तस्वीरें भी सदन में दिखाई थीं। लोकसभा अध्यक्ष ने उसी समय उन्हें तस्वीरें दिखाने से रोका था। राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खड़गे के वक्तव्य में से भी कुछ शब्द हटाए गए हैं।

कार्यवाही से बाहर

संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत, संसद में कही गई किसी भी बात के लिए कोई सांसद किसी कोर्ट के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है। यानी कि किसी भी बात को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है। दूसरी तरफ पीठासीन अधिकारी के पास सदन में कही गई किसी बात को कार्यवाही से निकालने का अधिकार भी है। हालांकि इसके बाद भी जिस व्यक्ति की बात निकाली गई है, वह पीठासीन अधिकारी के सामने अपनी बात रख सकता है और उसकी एक प्रक्रिया है। टिप्पणियों को संसदीय कार्यवाही से हटा दिए जाने का अर्थ होता है कि मीडिया उन टिप्पणियों को नहीं दिखा या लिख सकता है। हालांकि कई अखबारों ने बुधवार को राहुल गांधी की टिप्पणियों को छापा, ऐसा इसलिए भी हुआ होगा, क्योंकि मीडिया को इस बात की जानकारी नहीं थी कि कौन से अंश हटाए गए हैं। अलबत्ता कांग्रेस की ओर से कहा गया कि राहुल के भाषण के 18 अंशों को संसदीय रिकॉर्ड से हटाया गया है। ये बातें अब संसदीय-प्रक्रिया से जुड़ी बहस में शामिल होंगी। अलबत्ता इतना स्पष्ट है कि चुनावी-राजनीति के दरवाजे खुल गए हैं।

राजनीति के द्वार

इन सवालों को लेकर संसदीय प्रक्रिया जारी रहेगी, पर चुनावी-राजनीति अब सड़क पर उतरेगी। इस साल नौ राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। इनमें से पहले तीन राज्यों में इस समय चुनाव-प्रचार चल रहा है। त्रिपुरा में 16 फरवरी को, मेघालय और नगालैंड में 27 फरवरी को मतदान होगा। तीनों जगह 2 मार्च को मतगणना होगी। पूर्वोत्तर के तीनों राज्यों की राष्ट्रीय राजनीति में बहुत बड़ी भूमिका नहीं है, पर भारतीय जनता पार्टी इन राज्यों को महत्वपूर्ण मानकर चलती है, क्योंकि तीनों में वह सरकार में शामिल रही है। इस साल मई में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव होंगे, जिनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। नवंबर में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश और मिजोरम के चुनाव हैं। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश कांग्रेस के लिए भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं, जितने बीजेपी के लिए। दिसंबर के महीने में राजस्थान और तेलंगाना में चुनाव होने की संभावना है। राजस्थान ऐसा राज्य है, जहाँ कांग्रेस और बीजेपी का सीधा मुकाबला होता है। इस राज्य में कांग्रेस और बीजेपी दोनों के भीतर संगठनात्मक दिक्कतें हैं। तेलंगाना टीआरएस से अब बीआरएस बनी पार्टी की परीक्षा है, जिसके नेता के चंद्रशेखर राव के मन में राष्ट्रीय नेता बनने की महत्वाकांक्षा है। इन सभी राज्यों के परिणामों का असर 2024 के लोकसभा चुनाव पर पड़ने वाला है। इसलिए इन सभी की गतिविधियों पर नजरें बनाएं रखें।

हरिभूमि में प्रकाशित

 

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