Monday, July 27, 2020

चीन-ईरान समझौते से चोट लगेगी भारत को

ईरान और चीन एक लम्बा सहयोग समझौता करने जा रहे हैं, जिससे वैश्विक समीकरण बदल जाने की संभावना है। चीन और ईरान की योजना के बरक्स यदि यूरोपीय देश निकट या सुदूर भविष्य में अमेरिकी प्रभा-मंडल से बाहर निकल गए, तो दुनिया की सूरत बदल जाएगी। साथ ही पश्चिम एशिया में चीन एक जबर्दस्त ताकत बनकर उभरेगा। ईरान को सऊदी अरब के वर्चस्व को समाप्त करने का मौका मिलेगा। पर ये सब संभावनाएं हैं और इस किस्म की हरेक अटकल के साथ उसके अंतर्विरोध भी जुड़े हैं। यह दो समान वजन वाली ताकतों का समझौता नहीं है। चीन विचारधारा से प्रेरित मूल्यबद्ध देश नहीं है। उसके पीछे अपनी महानता की जुनूनी मनोकामना है।

इलाके में ईरान अकेला ऐसा महत्वपूर्ण देश है, जो अमेरिका के खिलाफ खुलकर खड़ा हो सकता है। ऐसे देश की चीन को जरूरत है। चीन और ईरान दोनों को इस साल डोनाल्ड ट्रंप की पराजय का इंतजार भी है। जो बायडन का संभावित नया निजाम शायद ईरान को भटकने से रोके। ईरान के भीतर एक तत्व ऐसा भी है, जो चीन के दुर्धर्ष ‘आर्थिक अश्वमेध’ को समझता है। समझौते के दायरे में आर्थिक, सांस्कृतिक और सामरिक हर तरह का सहयोग शामिल होगा और यह कम से कम 25 साल के लिए किया जाएगा। अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने यह खबर इसी अंदाज में लिखी है कि यह समझौता हो गया है। सबूत के तौर पर एक दस्तावेज भी प्रकाशित किया गया है, जो समझौते का प्रारूप है।

Sunday, July 26, 2020

कांग्रेसी नेतृत्व का रसूख दाँव पर

राजस्थान में कांग्रेस पार्टी का जो संकट खड़ा हुआ है, वह है क्या? क्या यह कि अशोक गहलोत की सरकार बचे? या यह कि कांग्रेस बचे? अशोक गहलोत इसे अपने ऊपर आए संकट के रूप में भले ही देख रहे हों, पर यह संकट कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व और खासतौर से गांधी-नेहरू परिवार पर है। गहलोत सरकार बच भी गई, तो इस बात की गारंटी नहीं कि कांग्रेस का पराभव रुक जाएगा। पार्टी संकट में है। वह फिर से खड़ी होने की कोशिश में डगमगा रही है। और यह संकट केवल कांग्रेस पार्टी पर ही नहीं है, बल्कि यूपीए के गठबंधन पर भी है।

राजस्थान का विवाद जम्मू-कश्मीर के अब्दुल्ला परिवार के साथ किस तरह जुड़ गया, क्या हमने इसके बारे में सोचा है? महाराष्ट्र में एनसीपी कांग्रेस के साथ हैं, पर वह कब धोखा दे दे, इसका ठिकाना नहीं। हाल में चीन के संदर्भ में शरद पवार ने राहुल गांधी को सचेत किया कि मोदी की आलोचना ठीक नहीं। ये बातें संगठनात्मक कौशल के साथ-साथ वैचारिक भटकाव की ओर भी इशारा कर रही हैं। इनका दूरगामी असर यूपीए के स्वास्थ्य पर पड़ेगा।

Monday, July 20, 2020

पायलटों पर लगी वैश्विक पाबंदियों से गिरी पाकिस्तान की साख

गरीबी, अशिक्षा और कोरोना जैसी महामारी के दुष्प्रभाव से लड़ते जूझते दक्षिण एशिया में जब भारत और पाकिस्तान के रिश्तों पर नजर डालते हैं, तो बेहद निराशाजनक तस्वीर उभर कर आती है। हाल में खबरें हैं कि पाकिस्तान ने कश्मीर मामले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने के लिए अपने प्रयास बढ़ा दिए हैं। दूसरी तरफ वह एफएटीएफ की काली सूची में जाने से वह इसलिए बच गया, क्योंकि कोरोना के कारण दुनिया के पास इन बातों के लिए वक्त नहीं है। भारत के साथ रिश्तों को सुधारने की बात करने का मतलब पाकिस्तान में पाप माना जाता है, जबकि जरूरत इस बात की है कि दोनों देश मिलकर आर्थिक-सामाजिक बदहाली से लड़ाई लड़ें।

कुछ समय पहले इमरान खान ने ट्वीट किया कि हमने कोरोना महामारी के दौर में नौ हफ्तों में देश के एक करोड़ परिवारों को 120 अरब रुपये की सहायता पहुँचाई है। भारत चाहे, तो हम उसे मदद पहुँचाने का तरीका बता सकते हैं और पैसे से मदद भी कर सकते हैं। उनके इस ट्वीट का पाकिस्तान में ही काफी मजाक बना। दूसरी तरफ खबरें हैं कि पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था नीचे गिरने के नए प्रतिमान स्थापित कर रही है। वहाँ से सत्ता परिवर्तन की अफवाहें भी आती रहती हैं। खासतौर से इमरान खान के नेतृत्व को लेकर सवाल हैं। इसी संदर्भ में ‘माइनस वन’ फॉर्मूला भी चर्चित हुआ है। इसका मतलब है इमरान खान को हटाकर सरकार के वर्तमान स्वरूप को बनाए रखना।

गिरती साख

हाल में देश का बजट पेश हुआ। उसके पहले पेश की गई आर्थिक समीक्षा में चेतावनी दी गई कि नैया डूब रही है। विदेशी कर्जा जीडीपी का 88 फीसदी हो गया है। करीब 60 फीसदी आबादी गरीबी की रेखा के नीचे जाने का अंदेशा है। अर्थव्यवस्था लगातार विदेशी कर्ज के सहारे है। कब तक कर्ज मिलेगा? देश की साख वैश्विक मंच पर लगातार गिर रही है। ऐसे में एक खराब खबर नागरिक उड्डयन के क्षेत्र से मिली है। पाकिस्तानी पायलटों के विमान संचालन पर तकरीबन पूरी दुनिया में रोक लग गई है।

Sunday, July 19, 2020

कांग्रेसी कश्ती में फिर दरार

कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई की एक बैठक में दिए गए राहुल गांधी के बयान को दो तरह से पढ़ा गया है। एक यह कि जो जाना चाहता है, वह जा सकता है। दूसरा यह कि जिसे पार्टी छोड़कर जाना है वह जाएगा ही, आप लोगों को घबराना नहीं है। जब कोई बड़ा नेता पार्टी छोड़कर जाता है तो आप जैसे लोगों के लिए रास्ते खुलते हैं। बाद में कांग्रेस पार्टी की ओर से कहा गया कि बैठक में ऐसी कोई बात नहीं हुई थी, पर खबर तो पार्टी के भीतर से ही आई थी। राहुल गांधी की बात में विसंगति है। युवाओं के लिए रास्ते तभी खुलते हैं, जब बुजुर्ग लोग उनके लिए रास्ते खोलते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट का प्रसंग बता रहा है कि पार्टी के युवा नेता नाराज हैं। यह पार्टी इतनी दुविधा और संशय में इसके पहले कभी नहीं रही। दूसरी तरफ उसके विरोधी खंडहर की ईंटें हिलाने का मौका छोड़ नहीं रहे हैं।

Monday, July 13, 2020

संकट में ओली और असमंजस में नेपाल


नेपाल का राजनीतिक संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। पिछले तीन महीने का असमंजस निर्णायक मोड़ पर आता दिखाई पड़ रहा है, पर यह मोड़ क्या होगा, यह साफ नहीं है। तीन-चार संभावित रास्ते दिखाई पड़ रहे हैं। एक, ओली अध्यक्ष पद छोड़ दें और प्रधानमंत्री बने रहें। दूसरे वे अध्यक्ष बने रहें और प्रधानमंत्री पद छोड़ें। तीसरा रास्ता है, पार्टी का विभाजन। पार्टी में विभाजन हुआ, तब देश फिर से बहुदलीय असमंजस का शिकार हो जाएगा और नेपाली कांग्रेस की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाएगी। इन सब बातों की पृष्ठभूमि में नेपाल पर भारत और चीन के राजनीतिक प्रभाव की भी परीक्षा है। फिलहाल तो यही लगता है कि नेपाल पर चीन का प्रभाव है। इस हफ्ते भारत के निजी समाचार चैनलों पर रोक लगना भी इस बात की गवाही दे रहा है।

विदेश-नीति के मोर्चे पर प्रधानमंत्री केपीएस ओली की सरपट चाल के उलट परिणाम अब सामने आ रहे हैं। पुष्प दहल के साथ समझौता करके क्या वे अपनी सरकार बचा लेंगे? हालांकि यह बात मुश्किल लगती है, पर ऐसा हुआ भी तो यह स्थायी हल नहीं है। ओली साहब के सामने विसंगतियाँ कतार लगाए खड़ी हैं। संकट को टालने में चीनी राजदूत होऊ यांछी के हड़बड़ प्रयास भी चर्चा का विषय बने हैं। उन्होंने दोनों खेमों के नेताओं से मुलाकात करके समाधान की जो कोशिशें कीं, उससे इतना साफ हुआ कि चीन खुलकर नेपाली राजनीति में हस्तक्षेप कर रहा है। उन्होंने 3 जुलाई को राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी से भी मुलाकात की, जो खुद इस टकराव में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।

चीन-मुखी नीति को लेकर सवाल

औपचारिक शिष्टाचार के अनुसार ऐसी मुलाकातों के समय विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को भी उपस्थित रहना चाहिए, पर ऐसा हुआ नहीं। पता नहीं उन्हें जानकारी थी भी या नहीं। इसके पहले होऊ ने अप्रेल और मई में भी हस्तक्षेप करके पार्टी को विभाजन के रास्ते पर जाने से बचाया था। चीन ने भारत के विरुद्ध नेपाली राष्ट्रवाद के उभार का भी लाभ उठाया। नक्शा प्रकरण इसका उदाहरण है। ओली की चीन-मुखी विदेश नीति को लेकर भी अब सवाल उठने लगे हैं। मंगलवार को नेपाली कांग्रेस और जसपा की बैठक शेर बहादुर देउबा के निवास पर हुई, जिसमें विदेश नीति के झुकाव और लोकतांत्रिक संस्थाओं के क्षरण पर नाराजगी व्यक्त की गई।

Sunday, July 12, 2020

जनता के रोष को पढ़िए

विकास दुबे की मौत की खबर आने के फौरन बाद एक पत्रकार ने ट्वीट किया, विकास दुबे नहीं मरता तो शायद ये होता, 1.डर के मारे कोई उसके खिलाफ गवाही नहीं देता, 2.अपने समाज का बड़ा नेता बन जाता, 3.सन 2022 में विधायक/मंत्री होता, 4.जो पुलिस उसे पकड़ के ला रही थी, वो उसकी सुरक्षा में होती, 5.और हमलोग उसके बंगले के गेट पर उसकी बाइट लेने खड़े होते इस ट्वीट का जवाब एक और पत्रकार ने दिया, प्रक्रिया हमें थकाती है, फ्रस्ट्रेट करती है, निराश भी करती है लेकिन किसी नागरिक को हमेशा क़ानूनी प्रक्रिया के साथ ही होना चाहिए क्योंकि वही प्रक्रिया उसकी सुरक्षा भी करती है…।
दोनों बातों में ज्यादा बड़ा सच क्या है? किसी ने लिखा, पकड़ा जाता तो कुछ लोगों के नाम बताता। इसके जवाब में किसी ने लिखा, सैयद शहाबुद्दीन, गाजी फकीर, मुन्ना बजरंगी और अतीक अहमद ने किसका नाम बताया? सच तो यह भी है कि विकास दुबे ने थाने में घुस कर एक राज्यमंत्री की सरेआम हत्या कर दी थी। तीस पुलिस वालों में से एक ने भी गवाही नहीं दी। जमानत पर छूटकर बाहर आ गया।
यूपी के इस डॉन की मौत किन परिस्थितियों में हुई, यह विचार का अलग विषय है। सच यह है कि बड़ी संख्या में लोग इस कार्रवाई से खुश हैं। उन्हें लगता है कि जब कुछ नहीं हो सकता, तो यही रास्ता है। पिछले साल के अंत में जब हैदराबाद में चार बलात्कारियों की मौत पुलिस मुठभेड़ में हुई, तब जनता ने पुलिस वालों का फूल मालाओं से स्वागत किया था। क्यों किया था? ऐसा नहीं कि लोग फर्जी मुठभेड़ों को सही मानते हैं। सब मानते हैं कि कानून का राज हो, पर कैसे? न्याय-व्यवस्था की सुस्ती और उसके भीतर के छिद्र उसे नाकारा बना रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि सरकारें पुलिस सुधार से बच रही हैं। राजनीतिक कारणों से मुकदमे वापस लिए जाते हैं और राजनीतिक कारणों से मुकदमे चलाए भी जाते हैं। सिर्फ न्यायपालिका को दोष देना भी गलत है। सरकार समझती है कि अपराधियों को ठोकने से काम चल जाएगा, तो वह गलत सोचती है।

Saturday, July 11, 2020

चीन का खुफिया हथियार, सायबर तलवार

जून के आखिरी हफ्ते में सायबर इंटेलिजेंस फर्म सायफर्मा के हवाले से खबर थी कि पिछले एक महीने में चीन से होने वाले सायबर हमलों में 200 फीसदी की वृद्धि हुई है। आमतौर पर चीनी हमलों के निशाने पर अमेरिका, कनाडा, जापान और ऑस्ट्रेलिया होते हैं, पर गलवान के टकराव के बाद चीनी हमलों का निशाना भारत के सार्वजनिक रक्षा उपक्रम और कुछ संवेदनशील ठिकाने हैं। जून के आखिरी हफ्ते की खबर थी कि चीनी हैकरों ने पाँच दिन में भारत पर 40,000 सायबर हमले किए। चीनी हैकर विदेश और रक्षा जैसे संवेदनशील मंत्रालयों, बड़े उद्योगों के आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर को टार्गेट कर रहे हैं। बैंकों, न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन और एचएएल जैसी संस्थाओं के डेटा में सेंध लगाने का प्रयास भी।

न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 के इस दौर में चीनी हैकर वैक्सीन रिसर्च की चोरी भी कर रहे हैं। अमेरिका ने इस सिलसिले में अपना आधिकारिक विरोध दर्ज कराया है। हाल में ऑस्ट्रेलिया में हुए सायबर हमलों का आरोप भी अमेरिकी विदेशमंत्री माइक पॉम्पियो ने चीन पर लगाया है। अमेरिका के संघीय जाँच ब्यूरो ने भी चीन का नाम लेकर आलोचना की है। भारत में चीन के 59 एप पर पाबंदियाँ लगने के पीछे के कारण आर्थिक से ज्यादा सुरक्षा-सम्बद्ध हैं और अमेरिका भी चीनी एप पर पाबंदियाँ लगाने पर विचार कर रहा है।

भारतीय चेतावनी

भारतीय कंप्यूटर इमर्जेंसी रेस्पांस टीम (सीईआरटी-इन) ने गत 21 जून को एडवाइज़री जारी की कि देश के लाखों व्यक्ति सायबर हमले के शिकार हो सकते हैं। पिछले साल हमारी थलसेना, वायुसेना और नौसेना के साथ नई सायबर और स्पेस कमांड जोड़ी गई हैं। पिछले साल अगस्त में सेना की नॉर्दर्न कमांड के एक वरिष्ठ ऑफिसर के कंप्यूटर में सायबर घुसपैठ हुई थी। इसका पता इसलिए लग पाया, क्योंकि अब सेना सायबर हमलों की निगहबानी कर रही है।

Thursday, July 9, 2020

अपने ही बुने जाल में फँसे नेपाली प्रधानमंत्री ओली

China's Desperate Efforts To Save Nepal PM Oli May Bear Fruit, But ...

पिछले साल नवम्बर में जब सीमा के नक्शे को लेकर नेपाल में आक्रोश पैदा हुआ था, तब काफी लोगों को आश्चर्य हुआ। नेपाल तो हमारा मित्र देश है, वहाँ से ऐसी प्रतिक्रिया का आना विस्मयजनक था। वह बात आई-गई हो पाती, उसके पहले ही लद्दाख में चीनी घुसपैठ की खबरें आने लगीं। उन खबरों के साथ ही नेपाल सरकार ने फिर से सीमा विवाद को उठाना शुरू कर दिया और देखते ही देखते वहाँ की संसद ने संविधान संशोधन पास करके नया नेपाली नक्शा जारी कर दिया। इस घटनाक्रम से यह जरूर स्पष्ट हुआ कि नेपाल की पीठ पर चीन का हाथ है। यह भी कि किसी योजना के तहत नेपाल सरकार ऐसी हरकतें कर रही है। प्रकारांतर से देश के सेनाध्यक्ष मनोज मुकुंद नरवणे ने इशारों-इशारों में यह बात कही भी कि नेपाल किसी के इशारे पर यह सब कर रहा है।

नक्शा प्रकरण ठंडा पड़ भी नहीं पाया था कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के विरुद्ध उनकी ही नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर से आवाजें उठने लगीं। उनके प्रतिस्पर्धी पुष्प दहल कमल इस अभियान में सबसे आगे हैं, जो ओली के साथ पार्टी अध्यक्ष भी हैं। यानी ओली के पास दो पद हैं। एक प्रधानमंत्री का और दूसरे पार्टी अध्यक्ष का। उनके व्यवहार को लेकर पिछले कुछ महीनों से पार्टी के भीतर हस्ताक्षर अभियान चल रहा था। संभवतः इस अभियान से जनता का ध्यान हटाने के लिए ओली ने भारत के साथ सीमा का विवाद उठाया था।

Monday, July 6, 2020

भारत क्या नए शीतयुद्ध का केंद्र बनेगा?


लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून की रात हुए हिंसक संघर्ष के बाद दुबारा कोई बड़ी घटना नहीं हुई है, पर समाधान के लक्षण भी नजर नहीं आ रहे हैं। सन 1962 के बाद पहली बार लग रहा है कि टकराव रोकने का कोई रास्ता नहीं निकला, तो वह बड़ी लड़ाई में तब्दील हो सकता है। दोनों पक्ष मान रहे हैं कि सेनाओं को एक-दूसरे से दूर जाना चाहिए, पर कैसे? अब जो खबरें मिली हैं, उनके अनुसार टकराव की शुरूआत पिछले साल सितंबर में ही हो गई थी, जब पैंगांग झील के पास दोनों देशों के सैनिकों की भिड़ंत हुई थी, जिसमें भारत के दस सैनिक घायल हुए थे।

शुरूआती चुप्पी के बाद भारत सरकार ने औपचारिक रूप से 25 जून को स्वीकार किया कि मई के महीने से चीनी सेना ने घुसपैठ बढ़ाई है। गलवान घाटी में पेट्रोलिंग पॉइंट-14 (पीपी-14) के पास हुई झड़प के बाद यह टकराव शुरू हुआ है। लगभग उसी समय पैंगांग झील के पास भी टकराव हुआ। दोनों घटनाएं 5-6 मई की हैं। उसी दौरान हॉट स्प्रिंग क्षेत्र से भी घुसपैठ की खबरें आईं। देपसांग इलाके में भी चीनी सैनिक जमावड़ा है।

Sunday, July 5, 2020

लद्दाख से मोदी की गंभीर चेतावनी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लद्दाख यात्रा जितनी सांकेतिक है, उससे ज्यादा सांकेतिक है उनका वक्तव्य। यदि हम ठीक से पढ़ पा रहे हैं, तो यह क्षण भारतीय विदेश-नीति के लिए महत्वपूर्ण साबित होने वाला है। मोदी के प्रतिस्पर्धियों को भी उनके वक्तव्य को ठीक से पढ़ना चाहिए। यदि वे इसे समझना नहीं चाहते, तो उन्हें कुछ समय बाद आत्ममंथन का मौका भी नहीं मिलेगा। बहरहाल पहले देखिए कि यह लद्दाख यात्रा महत्वपूर्ण क्यों है और मोदी के वक्तव्य की ध्वनि क्या है।

प्रधानमंत्री की इस यात्रा के एक दिन पहले रक्षामंत्री लद्दाख जाने वाले थे। वह यात्रा अचानक स्थगित कर दी गई और उनकी जगह अगले रोज प्रधानमंत्री खुद गए। सवाल केवल सैनिकों के मनोबल को बढ़ाने का ही नहीं है, बल्कि देश की विदेश-नीति में एक बुनियादी मोड़ का संकेतक भी है। अप्रेल के महीने से लद्दाख में शुरू हुई चीनी घुसपैठ के बाद से अब तक भारत सरकार और खासतौर से प्रधानमंत्री मोदी के बयानों में तल्खी नहीं रही। ऐसा लगता रहा है कि भारत की दिलचस्पी चीन के साथ संबंधों को एक धरातल तक बनाए रखने की है। भारत चाहता था कि किसी तरह से यह मसला सुलझ जाए।

Friday, July 3, 2020

चीन-पाकिस्तान पर नकेल डालने की जरूरत

21 नवंबर 2011 के टाइम का कवर
भारत-चीन सीमा पर गत 16 जून को हुए हिंसक संघर्ष के बाद दोनों देशों के बीच शुरू हुई बातचीत का दौर इन पंक्तियों के प्रकाशन तक किसी न किसी रूप में चल रहा है, पर किसी स्थायी हल के आसार नहीं हैं। वर्तमान घटनाक्रम से हमें दो सबक जरूर सीखने चाहिए। चीन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। दूसरे घुसपैठ की किसी भी हरकत का उसी समय करारा जवाब देना चाहिए। इसके पहले 1967 में नाथूला और 1986-87 में सुमदोरोंग में करारी कार्रवाइयों के कारण चीन की हिम्मत नहीं पड़ी। लद्दाख में इसबार की घुसपैठ के बाद भारत ने शुरूआती चुप्पी के बाद तीन स्तर पर जवाबी कार्रवाई की है। एक, बड़े स्तर पर सेना की सीमा पर तैनाती। दूसरे, कारोबारी स्तर पर कुछ बड़े फैसले किए, जिनसे चीन को हमारे इरादों का संकेत मिले। तीसरे राजनयिक स्तर पर अपनी बात को दुनिया के सामने रखा और अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल किया है। इस तीसरे कदम का दीर्घकालीन प्रभाव भारत-चीन रिश्तों पर पड़ेगा।


अभी तक का अनुभव है कि चीन के बरक्स भारत की नीति अपेक्षाकृत नरम रही है। बावजूद इसके कि चीन ने भारत में पाक-समर्थित आतंकवाद को खुला समर्थन दिया है। जैशे मोहम्मद के सरगना मसूद अज़हर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने को प्रस्ताव को पास होने से अंतिम क्षण तक चीन ने रोक कर रखा। एनएसजी की सदस्यता और संरा सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता में अड़ंगे लगाए। अब जम्मू-कश्मीर राज्य के पुनर्गठन पर भारतीय संसद के प्रस्ताव पर चीनी प्रतिक्रिया हमारी संप्रभुता पर खुला हमला है। इसे सहन नहीं किया जाना चाहिए। लगता है कि अब हमारी नीति में बदलाव आ रहा है। लद्दाख पर चल रही बातचीत पर काफी कुछ निर्भर करेगा कि हमारी नीति की दिशा क्या होगी। चीनी सेना यदि अप्रेल में हथियाई जमीन छोड़ेगी, तो संभव है कि कड़वाहट ज्यादा न बढ़े। पर चीन यदि अपनी सी पर अड़ा रहा, तो भारत को अपनी नीति में आधारभूत बदलाव करना होगा।


भारतीय विदेश-नीति के बुनियादी तत्वों को स्पष्ट करने की घड़ी भी अब आ रही है। गुट निरपेक्षता की अवधारणा ने लम्बे अरसे तक हमारा साथ दिया, पर आज वह व्यावहारिक नहीं है। आज शीतयुद्ध की स्थिति भी नहीं है और दो वैश्विक गुट भी नहीं है। इसके बावजूद हमें अपने मित्र और शत्रु देशों की दो श्रेणियाँ बनानी ही होंगी। ऑस्ट्रेलिया, जापान, वियतनाम, फिलीपींस और इंडोनेशिया जैसे देश हैं, जो चीनी उभार की तपिश महसूस कर रहे हैं। हमें उन्हें साथ लेना चाहिए। बेशक हम अमेरिका के हाथ की कठपुतली न बनें, पर चीन को काबू में करने के लिए हमें अमेरिका का साथ लेना चाहिए। इस सवाल को न तो हमें अपने देश की आंतरिक राजनीति की नजर से देखना चाहिए और न अमेरिकी राजनीति के नजरिए से। अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी भी चीन की उतनी ही आलोचक है, जितनी ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी। चीनी अहंकार बढ़ता ही जा रहा है। उसे रोकने के लिए वैश्विक गठबंधन तैयार करने में कोई हमें हिचक नहीं होनी चाहिए। यह नकेल अकेले चीन पर नहीं होगी, बल्कि उसके साथ पाकिस्तान पर भी डालनी होगी। 

Thursday, July 2, 2020

दिव्यांगों और वृद्धों की सामाजिक सुरक्षा योजनाएं


देश के कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए भारत सरकार ने नागरिकों के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज के साथ आत्मनिर्भर भारत अभियान शुरू किया है| इस पैकेज के माध्यम से सरकार ने समाज के अलग-अलग वर्गों की सहायता का प्रयास किया है। उद्यमियों, कारोबारियों, श्रमिकों और विभिन्न सामाजिक वर्गों की सहायता करने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह था कि कोविड-19 के कारण हुए लॉकडाउन का सभी वर्गों पर प्रभाव पड़ा था। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत सरकार ने 1.70 लाख करोड़ रुपये के जिस आर्थिक पैकेज की घोषणा की, उसमें गरीबों, मजदूरी करने वाली महिलाओं, शारीरिक और मानसिक चुनौतियों का सामना कर रहे व्यक्तियों और वृद्धों के लिए अलग से व्यवस्थाएं की गई हैं। ये योजनाएं विभिन्न कार्यक्रमों का हिस्सा हैं। इनमें केंद्र और राज्यों की योजनाएं भी शामिल हैं।


कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के तहत असहाय व्यक्तियों का सहारा भी राज्य है। बेशक उन्हें सामाजिक संस्थाएं और निजी तौर पर अपेक्षाकृत सबल व्यक्ति कमजोरों, वंचितों और हाशिए पर जा चुके लोगों की सहायता के लिए आगे आते हैं, पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी राज्य की होती है। हमारे संविधान का अनुच्छेद 41 कहता है, राज्य अपनी आर्थिक सामर्थ्य और विकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने के, शिक्षा पाने के और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और निःशक्तता तथा अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करेगा। इसके साथ अनुच्छेद 42 और 43 भी सामाजिक वर्गों की सहायता के लिए राज्य की भूमिका की ओर इशारा करते हैं।