सीबीआई लालू ने यादव
के परिवार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करके शुक्रवार को देशभर में 12 स्थानों पर
छापामारी की है। लालू परिवार पिछले कुछ महीनों से सीबीआई के अलावा इनकम टैक्स
विभाग और प्रवर्तन निदेशालय की निगाहों में है। इस गतिविधि के आपराधिक निहितार्थ
एक तरफ हैं और राजनीतिक निहितार्थ दूसरी तरफ। इसका फौरी असर बिहार के महागठबंधन पर
पड़ने का अंदेशा है। पर
इससे ज्यादा महत्वपूर्ण प्रभाव 2019 के
चुनाव को लेकर चल रहे विपक्षी-एकता के प्रयासों पर पड़ेगा।
अब हालात ऐसे मोड़ पर आ गए हैं, जहाँ नीतीश कुमार को बड़ा फैसला करना होगा। लालू यादव के परिसरों पर हुए छापों को लेकर अपनी टिप्पणी को उन्होंने रोक कर रखा है। वे अपने सहयोगियों के साथ विचार-विमर्श कर रहे हैं। पर उन्हें जल्द से जल्द अपना रुख साफ करना होगा। उन्हें केवल टिप्पणी ही नहीं करनी है, बिहार के महागठबंधन को लेकर अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करना है।
दूसरी ओर एनडीए की
रणनीति भी इन छापों से जुड़ी है। इस छापामारी ने महागठबंधन की राजनीति के
अंतर्विरोधों को खोला है। महागठबंधन में सेंध लगाने की एनडीए-राजनीति कितनी सफल
होगी, इसका भी इंतजार है। फिलहाल सारी निगाहें नीतीश कुमार पर हैं। उनका नजरिया इन
सभी बातों को प्रभावित करेगा।
पिछले दो-तीन हफ्ते
में नीतीश कुमार ने अचानक कुछ अप्रत्याशित फैसले किए हैं। राष्ट्रपति पद के चुनाव
में विपक्षी एकता से अलग होकर उन्होंने पहला झटका दिया और अपने दृष्टिकोण में आए
बदलाव का संकेत भी दिया। उसके बाद उन्होंने कांग्रेस की बुनियादी समझ पर प्रहार
किए। फिर भी उन्होंने खुद को व्यापक स्तर पर विपक्षी-एकता से अलग नहीं किया।
अब हालात ऐसे मोड़ पर आ गए हैं, जहाँ नीतीश कुमार को बड़ा फैसला करना होगा। लालू यादव के परिसरों पर हुए छापों को लेकर अपनी टिप्पणी को उन्होंने रोक कर रखा है। वे अपने सहयोगियों के साथ विचार-विमर्श कर रहे हैं। पर उन्हें जल्द से जल्द अपना रुख साफ करना होगा। उन्हें केवल टिप्पणी ही नहीं करनी है, बिहार के महागठबंधन को लेकर अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करना है।
उधर उप-राष्ट्रपति
पद के चुनाव के लिए विपक्षी प्रत्याशी का नाम तय करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
इस सिलसिले में 11 जुलाई को होने वाली बैठक काफी महत्वपूर्ण साबित होगी। उम्मीद है
कि जेडीयू का दृष्टिकोण इस बैठक के पहले ही स्पष्ट हो जाएगा। साथ ही भावी विपक्षी
एकता का स्वरूप भी सामने आ जाएगा।
लालू यादव ने कहा है
कि सीबीआई के छापे राजनीतिक साजिश का हिस्सा हैं। वहीं बीजेपी के नेता सुशील कुमार
मोदी ने अपने बयान में नीतीश कुमार का नाम खासतौर से जोड़ा है। बीजेपी का कहना है
कि अब नीतीश कुमार की अग्नि-परीक्षा है। पटना की जिस जमीन को लेकर सीबीआई ने
छापामारी की है, उसके मामले को सन 2008 में नीतीश कुमार ने ही उठाया था। देखना
होगा कि तेजस्वी यादव के बारे में उनकी राय क्या है।
लालू यादव को लेकर शुक्रवार
को कांग्रेस पार्टी ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया था। कांग्रेस लालू यादव की इस बात
से सहमत है कि यह छापामारी राजनीतिक है। कांग्रेस के अनुसार पी चिदंबरम और ममता
बनर्जी के खिलाफ भी बीजेपी ऐसी कार्रवाई कर रही है। पर कांग्रेस का तेजस्वी यादव
के सिलसिले में बयान ज्यादा महत्वपूर्ण है। उसने तेजस्वी के पक्ष में एक तरह से
पेशबंदी कर दी है।
कांग्रेस का कहना है
कि बाबरी मस्जिद मामले में अभियोग पत्र दाखिल होने के बावजूद उमा भारती ने मंत्री
पद नहीं छोड़ा तो तेजस्वी यादव से केवल एफआईआर के आधार पर इस्तीफा माँगने का
औचित्य नहीं है। सवाल है कि कांग्रेस ने यह बयान देने के पहले नीतीश कुमार से मशवरा किया था
या नहीं? यहाँ कांग्रेस का दृष्टिकोण महत्वपूर्ण नहीं है।
महत्वपूर्ण है नीतीश कुमार का नजरिया। क्या वे महागठबंधन को बनाए रखना चाहेंगे? जेडीयू और आरजेडी के रिश्ते सामने से खराब
नहीं लगते, पर वे सामान्य नहीं है।
सवाल है कि क्या नीतीश कुमार को लालू यादव के साथ मिलकर चलने का औचित्य समझ
में आता है? और क्या वे सन 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव तक
महागठबंधन के चलने की सम्भावना देख रहे हैं? यदि यह सम्भावना है तो
वे तेजस्वी यादव को हटाने की माँग को स्वीकार नहीं करेंगे। पर यदि उनके मन में
भविष्य की कोई और योजना है तो शायद निर्णायक घड़ी अब आ गई है। इस लिहाज से उनके और
कांग्रेस के बीच का विमर्श ज्यादा महत्वपूर्ण है।
5 अगस्त को
होने वाले उप-राष्ट्रपति पद के चुनाव में बीजेपी का प्रत्याशी आसानी से जीत जाएगा।
इस चुनाव में केवल संसद सदस्य ही भाग लेते हैं और दोनों सदनों में कुल मिलाकर
एनडीए का बहुमत है। पर कांग्रेस पार्टी की दिलचस्पी इस चुनाव से ज्यादा 2019 के
चुनाव में और विपक्षी एकता में है। राष्ट्रपति चुनाव के लिए प्रत्याशी के चयन में
हुई चूक से कांग्रेस परिचित है। काफी समय तक पार्टी गोपाल कृष्ण गांधी के नाम पर
सहमत होती रही। सम्भवतः उसने अपने सहयोगी दलों को अपने इरादों से परिचित नहीं
कराया।
नीतीश कुमार ने हाल में कांग्रेस को लेकर कुछ कड़ी बातें
कही हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को ‘रिएक्टिव’ नहीं ‘प्रोएक्टिव’ राजनीति करनी चाहिए। उसे केंद्र के विरोध
से ज्यादा अपने एजेंडा को स्पष्ट करना चाहिए। उनके इस बयान के बाद कांग्रेस के रुख
में नरमी आई है। पर उसके पहले गुलाम नबी आजाद समेत कई नेता नीतीश कुमार की आलोचना
कर चुके थे।
बहरहाल इधर राहुल गांधी ने नीतीश कुमार से सम्पर्क साधा
है और उन्हें उप-राष्ट्रपति पद के चुनाव में विपक्ष के साथ रहने पर राज़ी कर लिया
है। इस बीच बिहार कांग्रेस के कुछ नेताओं ने नीतीश कुमार के विरुद्ध बयानबाज़ी की
है। राहुल ने ऐसे नेताओं को फटकार लगाने का निर्देश भी दिया है। नीतीश कुमार ने
कहा था कि कांग्रेस अपनी दीर्घकालीन रणनीति को स्पष्ट करे। 11 जुलाई की बैठक में
18 विरोधी दलों के बीच भविष्य में समन्वय के लिए एक समिति बनाने की घोषणा की जा
सकती है। इससे इस एकता को आगे बढ़ाया जा सकेगा।
क्या इतने भर से नीतीश कुमार संतुष्ट हो जाएंगे? जेडीयू प्रवक्ता केसी त्यागी ने हाल में
कहा है कि दोनों पार्टियों के बीच कड़वाहट खत्म हो गई है। कड़वाहट से ज्यादा नीतीश
कुमार की दिलचस्पी दूरगामी राजनीति में है। लालू यादव के साथ रिश्तों को लेकर भी
वे चिंतित होंगे। पिछले दो साल में लालू यादव का वर्चस्व फिर से नजर आने लगा है।
लालू यादव 2019 में मोदी और बीजेपी के खात्मे की घोषणा कर रहे हैं और उम्मीद जाहिर
कर रहे हैं कि प्रियंका गांधी, ममता बनर्जी, सीताराम येचुरी, नवीन पटनायक, अरविंद
केजरीवाल, मायावती और अखिलेश यादव एकसाथ आ जाएंगे। इस हफ्ते का घटनाक्रम बताएगा कि
वास्तव में क्या होने वाला है।
हरिभूमि में प्रकाशित
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