प्रशासक, विचारक, लेखक और आंशिक रूप से राजनेता गोपाल
कृष्ण गांधी की देश की ‘गंगा-जमुनी’ संस्कृति के पक्षधर के रूप में पहचान है. उन्हें
महत्वपूर्ण बनाती है उनकी विरासत और विचारधारा. उनके पिता देवदास गांधी थे और माँ
लक्ष्मी गांधी, जो राजगोपालाचारी की बेटी थीं. दादा महात्मा गांधी और नाना
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी.
गोपाल कृष्ण गांधी ‘सामाजिक बहुलता’ के पुजारी हैं, और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व
में विकसित हो रहे ‘राजनीतिक हिन्दुत्व’ के मुखर विरोधी. विपक्षी दलों ने उन्हें
उप-राष्ट्रपति पद के लिए चुनकर यह बताने की कोशिश की है कि भारत जिस सांस्कृतिक
चौराहे पर खड़ा है, उसमें वे वैचारिक विकल्प का प्रतिनिधित्व करते हैं. वे मोदी के
सामने ‘सांस्कृतिक चुनौती’ के रूप में खड़े हैं.
मई 2014 में भारतीय जनता पार्टी की विजय के बाद उन्होंने नरेंद्र मोदी के
नाम एक खुला पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने इस बहुल संस्कृति की दुहाई दी. उन्होंने लिखा,
‘मैं उन लोगों में शामिल हूँ जो नहीं चाहते थे कि आप प्रधानमंत्री के की
कुर्सी पर बैठें. फिर भी मैं आपको बधाई देता हूँ. जहाँ करोड़ों लोग आपके
प्रधानमंत्री बनने से उत्साहित हैं, वहीं करोड़ों लोगों को इस बात से धक्का लगा है.’
पत्र में उन्होंने लिखा ‘भारत के अल्पसंख्यक कोई अलग टुकड़े के रूप
में नहीं हैं, बल्कि इसके साथ गुंथे हुए हैं...’ उन्होंने लिखा, ‘मोदी जी आप अपने संघर्ष
में महाराणा प्रताप बनें, पर अपने विश्वास में अकबर को भी शामिल करें. अपने दिल
में सावरकर को रखें, पर अपने दिमाग में आम्बेडकर को भी जगह दें... मेरी
शुभकामनाएं.’
भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस की जगह लेना चाहती है. वह
कांग्रेस के तमाम रूपकों और प्रतीकों को अंगीकार कर चुकी है. केवल उसे नेहरू-गांधी
परिवार से बैर है. वामपंथियों और तमिलनाडु के द्रविड़ दलों को अलग कर दें तो देश
के ज्यादातर दलों की परम्पराएं कांग्रेस से जुड़ती हैं.
गांधी और राजगोपालाचारी दोनों को कांग्रेस की बुनियाद
खड़ी करने का श्रेय जाता है. पर दोनों के मन में कांग्रेस की राजनीतिक भूमिका को
लेकर संदेह थे. आजादी के बाद कांग्रेस के भीतर की दक्षिणपंथी और वामपंथी
प्रवृत्तियों के बीच टकराव की एक वजह नेहरू और राजगोपालाचारी के व्यक्तित्व भी
बने.
राजगोपालाचारी ने देश की पहली वास्तविक दक्षिणपंथी
स्वतंत्र पार्टी को जन्म दिया. समय के थपेड़ों में वह कभी मुख्यधारा की पार्टी
नहीं बन पाई. देश ने जब 1991 में आर्थिक उदारीकरण के रास्ते पर कदम बढ़ाए तब उसकी
बागडोर नेहरू की कांग्रेस के हाथ में थी और स्वतंत्र पार्टी का कहीं नाम भी नहीं
था.
अर्थ-व्यवस्था की गाड़ी नेहरू के रास्ते से उलटी दिशा
में चल रही है. अब सामाजिक मोर्चे पर नेहरू
के विचारों की परीक्षा है, जो सन 2019 के चुनावों में रंग लेगी. राष्ट्रपति और
उप-राष्ट्रपति पद के चुनाव उप बहस का प्रवर्तन करने वाले हैं. इसमें गोपाल कृष्ण
गांधी की महत्वपूर्ण भूमिका होगी.
गोपाल कृष्ण गांधी को ममता बनर्जी का समर्थन हासिल है और
वामपंथी दलों का भी. बंगाल के राज्यपाल के रूप में उन्हें दोनों के साथ काम करने
का मौका मिला. मूलतः वे राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के रूप में सामने आ रहे थे.
उनके नाम की पेशकश वामपंथी और गैर-कांग्रेसी दलों ने की थी. अचानक स्थितियाँ बदलीं
और कांग्रेस ने मीरा कुमार का नाम आगे कर दिया. फिलहाल अबकी बार कांग्रेस ने उनके
नाम को स्वीकार कर लिया.
दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में
मास्टर्स की डिग्री हासिल करने के बाद गोपाल कृष्ण गांधी भारतीय प्रशासनिक सेवा में
आ गए, जिसके अंतर्गत उन्होंने 1968 से 1985 तक तमिलनाडु में प्रशासनिक पदों पर काम
किया. इसके बाद 1985 से 1987 के दौरान वे उप-राष्ट्रपति के सचिव पद पर, फिर 1992
तक राष्ट्रपति के संयुक्त सचिव पद पर काम किया.
सन 1992 में वे लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग में मिनिस्टर
(संस्कृति) के पद पर नियुक्त हुए और नेहरू केंद्र, लंदन के डायरेक्टर भी बनाए गए.
इसके बाद वे कई तरह के डिप्लोमैटिक पदों पर काम करते रहे. इनमें दक्षिण अफ्रीका,
लेसोथो और श्रीलंका में उच्चायुक्त, नॉर्वे और आइसलैंड में राजदूत के पद शामिल
हैं. बीच में 1997 से 2000 के बीच वे राष्ट्रपति के सचिव पद पर भी रहे.
सन 2003 में वे सरकारी सेवा से निवृत्त हो गए. 14
दिसम्बर 2004 को उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया गया. इस पद पर रहते हुए सन
2006 में कुछ महीनों के लिए उन्होंने बिहार के राज्यपाल का पदभार भी सँभाला. सन
2009 तक वे बंगाल के राज्यपाल रहे.
यह वह दौर था, जब बंगाल ने नंदीग्राम की हिंसा देखी.
बताया जाता है कि राज्यपाल के पद पर रहते हुए भी वे बगैर किसी प्रचार के और अकसर
सामान्य व्यक्ति के रूप में बंगाल के ग्रामीण इलाकों का दौरा करते थे. उन्होंने
नंदीग्राम हिंसा की भी निंदा की.
इन पदों के अलावा वे कला और संस्कृति से जुड़ी तमाम
संस्थाओं के पदाधिकारी भी रहे, खासतौर से इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज
की गवर्निंग बॉडी के चेयरमैन और इसकी सोसायटी का अध्यक्ष पद सँभाला. इन दिनों वे
अशोक युनिवर्सिटी में इतिहास और राजनीति के प्रोफेसर पद पर काम रहे हैं.
उनकी लेखकीय अभिरुचि भी इस दौरान लगातार देखने को मिली.
अक्सर राष्ट्रीय अखबारों में उनके लेख पढ़ने को मिलते रहे हैं. हिन्दी वालों के
लिए यह महत्वपूर्ण जानकारी है कि उन्होंने विक्रम सेठ के ‘अ सूटेबल बॉय’ का हिन्दी अनुवाद किया. हिन्दी में उनकी दो
और उल्लेखनीय रचनाएं शरणम और दूसरी दारा शिकोह हैं. दक्षिण अफ्रीका और श्रीलंका से
जुड़ी कुछ किताबें भी उनके नाम हैं.
http://hindi.firstpost.com/politics/opposition-candidate-for-vice-president-gopalkrishna-gandhi-a-direct-challenger-to-the-ideology-of-modi-40497.html
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