Friday, November 4, 2011

भारत-पाक रिश्तों में कारोबारी बयार


पाकिस्तान ने अंततः भारत को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा दे दिया। इस बात का फैसला सितम्बर के आखिरी हफ्ते में मुम्बई में दोनों देशों के व्यापार मत्रियों की बातचीत के बाद हो गया था। पर मुम्बई में औपचारिक घोषणा नहीं की गई थी। पाकिस्तान ने दुनिया के सौ देशों को इस किस्म का दर्जा दे रखा है। भारत उसे 1996 में यह दर्जा दे चुका है। विश्व व्यापार संगठन बनने के बाद से दुनियाभर के देश एक-दूसरे के साथ कारोबार बढ़ाने को उत्सुक रहते हैं, पर दक्षिण एशिया के इन दो देशों की राजनीति कारोबार के रास्ते पर चलती तो इस इलाके में खुशहाली की बयार बहती। बहरहाल महत्वपूर्ण बात यह है कि इस फैसले को सेना की स्वीकृति भी प्राप्त है।


बुधवार को पाकिस्तान की कैबिनेट की बैठक के बाद सूचनामंत्री डॉ फिरदौस आशिक आवान ने प्रेस कांफ्रेंस में घोषणा की कि पाकिस्तान ने भारत को एमएफएन दर्जा देने का फैसला कर लिया है। पर इसके बाद जो सरकारी विज्ञप्ति जारी की गई उसमें इसका जिक्र नहीं था। बल्कि केवल व्यापारिक सम्बन्ध सामान्य बनाने की बात उसमें लिखी गई थी। सरकार औपचारिक रूप से भारत के साथ रिश्तों को सामान्य बनाने की बात कहने से घबराती है। व्यापार के बाबत इस घोषणा के साथ पाकिस्तान सरकार को यह भी कहना पड़ा कि इसका अर्थ यह नहीं कि कश्मीर के बाबत हमारी राय बदल गई है। कैबिनेट मीटिंग में कई मंत्रियों ने सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े किए। किसी ने कहा कि सीमा पर जो माल भारत से आएगा उसमें विस्फोटक तो नहीं हैं, इसकी जाँच होनी चाहिए।

पाकिस्तान की सारी नीतियाँ कश्मीर के साथ नत्थी हैं। डॉ आवान ने यह भी बताया था कि कश्मीर में नियंत्रण रेखा के दोनों ओर व्यापार चल रहा है और बस सेवा भी चल रही है। ज़मीन पर वास्तविक स्थिति यह है कि कश्मीर के व्यापारी चाहते हैं कि व्यापार के औपचारिक रास्ते जल्द से जल्द खुलें। दोनों देशों के बीच बैंकिंग व्यवस्था न होने के कारण अभी सारा व्यापार बार्टर पर है। फिर भी उसमें अच्छी-खासी तेजी आ गई है। भारत और पाकिस्तान के बीच तमाम तना-तनी के बावजूद सन 2010 में 1.7 अरब डॉलर का कारोबार हुआ। इसमें भारत से निर्यात 1.45 डॉलर का था और पाकिस्तान से 0.27 अरब डॉलर का। पर सिंगापुर और दुबई के रास्ते अनौपचारिक कारोबार इसका कई गुना है। इस व्यापार से दोनों देशों को टैक्स नहीं मिलता, उपभोक्ता को महंगा घटिया माल मिलता है। सितम्बर में मुम्बई में हुई बैठक में दोनों देशों ने एक साल व्यापारिक वीज़ा की बात पर सहमति जताई थी। इसके तहत व्यापारी एक से ज्यादा शहरों में यात्रा कर सकते हैं। भारत या पाकिस्तान में एक-दूसरे के यहाँ कोई नागरिक जाता है तो उसे तमाम तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। मुम्बई में भारत ने डब्ल्यूटीओ में अपनी उस आपत्ति को वापस लेने की घोषणा की थी, जो पाकिस्तान को यूरोपीय संघ द्वारा दी गई छूट के बाबत दर्ज कराई गई थी।

पाकिस्तान इन दिनों बिजली की जबर्दस्त किल्लत झेल रहा है। अब इस बात की कोशिश शुरू हुई है कि दोनों देश अपने ग्रिड जोड़ें ताकि ज़रूरत पड़ने पर बिजली आ-जा सके। भारत में भी बिजली का संकट है, पर दोनों देशों के ग्रिड जुड़ने से कई समस्याएं सुलझ सकती हैं। पिछले 64 साल से दोनों देशों के बीच आत्मघाती अविश्वास का माहौल है। डॉ आवान ने बुधवार के अपने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि कैबिनेट ने जो फैसला किया है वह मोहम्मद अली जिन्ना के 1948 में उठाए गए कदमों के अनुरूप है। पाकिस्तानी राजनीति में जिन्ना साहब का नाम उसी तरह लिया जाता है, जिस तरह हम गांधी का नाम लेते हैं। पर इस तरफ कोई ध्यान नहीं देता कि जिन्ना ने भारत को दोस्त और सहयोगी के रूप में देखा था, दुश्मन की तरह नहीं। भारत में भी जिन्ना को लोग विलेन मानते हैं। और उनके बारे तारीफ के दो शब्द बोलने वाले आडवाणी और जसवंत सिंह की तरह अलग-थलग पड़ जाते हैं।

दोनों देशों के रिश्तों में चीन एक महत्वपूर्ण देश के रूप में उभर रहा है। जिस तरह भारत ने वियतनाम, सिंगापुर, मलेशिया और जापान के साथ रिश्ते सुधारे हैं उसके जवाब में पाकिस्तान ने भी अपनी ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ घोषित की है। पाकिस्तान सरकार ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि भारत के साथ तमाम विवादों के बावजूद चीन ने अपने कारोबारी रिश्ते बेहतर किए हैं। चीन इस वक्त भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। डॉ आवान ने कहा कि हम वैश्विक परिस्थितियों में अलग-थलग कैसे रह सकते है। पाकिस्तानी सिविल सोसायटी का एक बड़ा हिस्सा चाहता है कि हमें भारत के साथ कारोबारी रिश्ते सुधारने चाहिए। दोनों देशों के बीच अगले तीन साल में दो से छह अरब डॉलर सालाना कारोबार का लक्ष्य रखा गया है।

पाकिस्तानी अर्थशास्त्री कहते हैं कि चीन के साथ हमारे कारोबारी रिश्ते एकतरफा हैं। चीन अपना माल हमारे यहाँ डम्प कर रहा है। इसके मुकाबले भारत ऐतिहासिक रूप से स्वाभाविक व्यापारिक सहयोगी है। उसे बढ़ावा मिलना चाहिए। पाकिस्तान का एक कट्टरपंथी तबका ऐतिहासिक रूप से अपने आप को भारत से काट लेना चाहता है। वह इतिहास की किताबों में से वे सारे प्रसंग हटा देना चाहता है जहाँ भारत नज़र आए। वह संस्कृति के लिए अरब देशों की ओर देखता है और दोस्ती के लिए चीन की ओर। इस धड़े को चीन सबसे बड़ा मददगार नज़र आता है। इसी उत्साह में वहाँ की सिंध सरकार ने सन 2013 से सूबे में कक्षा 6 से आगे की चीनी भाषा की पढ़ाई अनिवार्य कर दी है। यह बात मज़ाक का विषय बनी हुई है।

सितम्बर के आखिरी दिनों में जब अमेरिका ने पाकिस्तान के वजीरिस्तान में हमले की लगभग खुली चेतावनी दी थी उस वक्त चीन के उप प्रधानमंत्री मेंग जियानझू पाकिस्तान के दौरे पर आए हुए थे। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री युसुफ रज़ा गिलानी ने चीन के साथ रिश्तों को ‘अरब सागर से गहरे और हिमालय से ऊँचे’ बताते हुए इस बात का संकेत किया था कि अमेरिका नहीं अब चीन हमारा दोस्त है। चीन के प्रति पाकिस्तान का प्रेम किस कदर है इसका पता इस बात से लगता है कि राष्ट्रपति ज़रदारी औसतन हर तीन महीने में एक बार चीन जाते हैं। पर चीन के भी कारोबारी हित हैं। वह पाकिस्तान को हथियार और दूसरे माल बेचना चाहता है। मुफ्त में नहीं देना चाहता।

दक्षिण एशिया की समस्याओं की जड़ में पाकिस्तान की भारत-ग्रंथि है। पिछले 64 साल में पाकिस्तानी सत्ता ने भारत-द्वेष को राष्ट्रीय लक्ष्य बना लिया है। बावजूद इसके पाकिस्तान के भीतर भारत से रिश्ते सुधारने और खुद को आधुनिक विकसित देश बनाने की कामनाएं भी मौज़ूद हैं। पिछले कुछ महीनों की घटनाओं पर गौर करें तो पता लगेगा कि हम लगातार सुधार की ओर बढ़ रहे हैं। जुलाई में अचानक 34 वर्षीय हिना रब्बानी खार को देश के विदेश मंत्री पद की शपथ दिलाई। नई विदेशमंत्री 22-23 जुलाई को बाली में हो रहे आसियान फोरम में भाग लेने के बाद 27 जुलाई को भारत के विदेश मंत्री एसएम कृष्ण से बातचीत के लिए दिल्ली आईं। बावजूद इसके कि उसके दो हफ्ते पहले 13 जुलाई के मुम्बई में बम धमाके हुए थे।

26 नवम्बर 2008 के मुम्बई हमले के बाद के माहौल से अबकी तुलना करें तो काफी फर्क नज़र आएगा। मुम्बई धमाकों का नाम लेकर कोई बातचीत नहीं टली। अगले हफ्ते 10-11 नवम्बर को मालदीव में हो रहे सार्क शिखर सम्मेलन में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की मुलाकात होने वाली है। दोनों के रिश्ते दो दिन में नहीं बदल सकते। लाहौर बस यात्रा से मोस्ट फेवर्ड नेशन तक का अनुभव यही है। पर वे लगातार खराब भी नहीं रह सकते। इन्हें बेहतर बनाने में व्यापार की बड़ी भूमिका है। यही वजह है कि राजनीतिक रिश्ते कितने ही खराब रहे हों, दोनों देशों के व्यापारियों के रिश्ते हमेशा अच्छे रहे हैं।
जनवाणी में प्रकाशित

3 comments:

  1. लिखते समय शायद ही आपने सोचा हो कि इतनी जल्दी पाकिस्तान पलट जाएगा। इसे धूर्तता कहें या अंदरुनी मजबूरी लेकिन इस बीच तमाम अंतर्राष्टीय बिरादरी से पाकिस्तान ने साधुवाद भी पा लिया। अमेरिका से लेकर चीन तक भारत की एक-एक गतिविधियों पर नज़र गड़ाए इन देशों ने पाकिस्तान के इस क़दम की प्रशंसा की।...फिर भी इतना ज़रुर है कि भारत पाक कुछ करीब आए हैं। लेकिन भारत को ये ख़ास दर्जा देने के लिए भी पाकिस्तान के अंदर इतनी बड़ी उठापटक है ये आखिर क्या दर्शाता है?

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  2. यह दर्शाता है कि पाकिस्तान की राजनीति ने भारत-विरोध को अपनी विचारधारा बना लिया है। पर व्यावहारिक परिस्थितयाँ िससे मेल नहीं खातीं। यह अंतर्विरोध है, जो देर-सबेर दूर होगा।

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  3. आपने सही कहा, सकारात्मक मन तो यही कहता है कि ये पाकिस्तान का अंतर्विरोध है, लेकिन कई बार ये उसकी मजबूरी की जगह गुणधर्म के रुप में दिखता है। यही कारण है कि हालात सुधरने का हम इतने समय से इंतज़ार ही करते रहे हैं। इसलिए उसके प्रति आश्वस्ति की जगह इस बात को हमेशा ध्यान में रखकर अगर नीतियां बनाई जाएं तो शायद ज्यादा कारगर हों...जैसे कोई बड़ा भाई, बिगड़ैल अनुज के साथ सह अस्तित्व को अपनाने के लिए कुछ कायदा तय करता है। जबकि आज तक हम विश्वास का माहौल बनाने के लिए ऐसे मनोभाव को अपनाने की जगह उसकी आलोचना करते रहे हैं।

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