Monday, January 12, 2015

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या धार्मिक भावना की रक्षा?

शार्ली एब्दो हत्याकांड के विरोध में रविवार को पेरिस में जबर्दस्त रैली हुई। पूरा यूरोप इस घटना के बाद उठ खड़ा हुआ है, पर इस घटना ने एक नई बहस को जन्म भी दिया है। आतंकवाद पर चर्चा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर केंद्रित हो गई है। दुनियाभर के अखबार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर विचार-विमर्श में लगे हैं। भारत में यह सवाल उठ रहा है कि शार्ली एब्दो जैसी स्वतंत्रता क्या हम अपने कार्टूनिस्टों को दे सकते हैं? मकबूल फिदा हुसेन को निर्वसन में रहने को किसने मजबूर किया? संयोग से शार्ली एब्दो के एक कार्टूनिस्ट जॉर्जेस वोलिंस्की यहूदी थे। इसरायली अखबार 'हारेट्ज़' में प्रकाशित लेख में वहाँ के कलाकार इदो अमीन ने लिखा है कि शार्ली एब्दो का प्रकाशन इसरायल में सम्भव नहीं था, क्योंकि वहाँ के कानून धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के खिलाफ हैं। अमीन ने लिखा है,
Georges Wolinski, the leading caricaturist at Charlie Hebdo, was among those murdered in the terror attacks in Paris last week. He was one of my cultural heroes when I was starting out.
Neither Superman, Charlie Brown, Asterix nor "The Adventures of Tintin" spoke to me the way Wolinski’s black-and-white sketches did — with his distorted, exaggerated figures openly revealing their dark urges. This half-Polish, half-Tunisian Jew possessed an anarchist spirit that left no sacred cow standing.
Every community was insulted by his brush. His position toward readers was this: Does it bother you? So don’t read it! And if you want to ridicule me back, I won’t sue you.”
After the terrible massacre at Charlie Hebdo and the murders that followed at the Jewish market, concerned people have spoken out over the fate of France’s Jews. Don’t they see the time has come to move to Israel, as Prime Minister Benjamin Netanyahu told them after the murder at the Toulouse school?
And the sooner the better! But if Wolinski had moved to Israel and opened a Charlie weekly here, he would have had a problem.In France, freedom of speech is considered a universal right, while in Israel such a weekly would not be able to exist because of the Israeli law that bans “offending religious sensibilities.” During my years as a cartoonist I have had to become familiar with the laws restricting the Israeli press.
पूरा लेख यहाँ पढ़ें 

इस सिलसिले में कुछ और लेख पठनीय हैं।

पाकिस्तानी अखबार एक्प्रेस ट्रिब्यून में आकार पटेल का लेख Should the right to speech be absolute?

बिजनेस स्टैंडर्ड में टीएन नायनन का लेख A right to offend


जनसत्ता में प्रकाशित

इस सिलसिले में मनीषा सेठी की एक किताब काफ्कालैंड इन दिनों आई है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संदर्भ में नहीं है, पर वह आतंकवाद का पड़ताल से जुड़ी है। मनीषा सेठी से बीबीसी हिन्दी रेडियो की बातचीत को सुनना रोचक होगा। यहाँ सुने उनसे बातचीत

Sunday, January 11, 2015

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं तो कोई भी स्वतंत्रता सम्भव नहीं

पेरिस की कार्टून पत्रिका शार्ली एब्दो पर हुए हमले के बाद आतंकवाद की निंदा करने के अलावा कुछ लोगों ने यह सवाल भी उठाया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा क्या हो? क्या किसी की धार्मिक मान्यताओं को ठेस पहुँचाई जानी चाहिए? फ्री स्पीच के माने क्या कुछ भी बोलने की स्वतंत्रता है? कार्टून और व्यंग्य को लेकर खासतौर से यह सवाल है। भारत में हाल के वर्षों में असीम त्रिवेदी के मामले में और फिर उसके बाद आम्बेडकर के कार्टून को लेकर यह सवाल उठा था। कुछ लोगों की मान्यता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं हो सकती। उसकी सीमा होनी चाहिए। सवाल यह भी है कि क्या यह सीमा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ही लागू होती है? क्या धार्मिक या आस्था की स्वतंत्रता की सीमा भी नहीं होनी चाहिए? हाल में सिडनी के एक कैफे और पाकिस्तान के पेशावर में बच्चों की हत्या से जुड़े सवाल भी हमें इसी दिशा में लाते हैं? सवाल है कितनी आजादी? और किसकी आज़ादी?

Saturday, January 10, 2015

कब तक चलेगी मोदी की अध्यादेशी नैया?

भूमि अधिग्रहण कानून देश की राजनीति और प्रशासन की पोल खोलता है। लम्बे अरसे तक लटकाए रखने के बाद इसे जब पास किया गया तभी ज़ाहिर था कि कारोबार जगत को इसे लेकर अंदेशा है। जयराम रमेश ने ग्रामीण विकास मंत्रालय का पद भार ग्रहण करने के तुरंत बाद भूमि अधिग्रहण के कानून में किसानों के पक्ष में पैरवी की थी, पर जब कानून पास हो रहा था तब उन्हें भी लगने लगा था कि आर्थिक विकास की दर को तेज़ करने के लिए इसकी कड़ी शर्तें कम करनी होंगी। निवेशकों को माफिक आने वाला भूमि अधिग्रहण विधेयक लाना होगा। अब भारतीय जनता पार्टी की सरकार इसमें बदलाव लाना चाहती है, पर जब यह कानून पास हो रहा था तब पार्टी ने ये सवाल नहीं उठाए थे। फिलहाल इस मामले से जुड़े कुछ मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं:-

· सरकार शीतकालीन सत्र में ही कानून में संशोधन कराने में सफल क्यों नहीं हुई? इसी सत्र में सरकार श्रम कानूनों से सम्बद्ध कानूनी बदलाव कराने में सफल रही थी।

· क्या अध्यादेश के अधिकार का दुरुपयोग हो रहा है? अध्यादेश के बजाय सरकार ने संसद में इसे पेश क्यों नहीं किया? राज्यसभा में पास नहीं होता तो संयुक्त अधिवेशन का रास्ता था।

· आर्थिक उदारीकरण के मामले में कांग्रेस पार्टी की नीति भी भारतीय जनता पार्टी की नीतियों जैसी है। इस मामले में अड़ंगा लगाकर क्या वह अपनी छवि उदारीकरण विरोधी की बनाना चाहेगी?

· मामला केवल भूमि अधिग्रहण कानून तक सीमित नहीं है। अभी सरकार को कई कानूनों को बदलना है। क्या इसके बारे में कोई रणनीति भाजपा के पास है?

Friday, January 9, 2015

रोमन हिन्दी को लेकर असगर वजाहत का एक पुराना लेख

“रोमन” हिंदी खिल रही है, “नागरी” हिंदी मर रही है

यह लेख मार्च 2010 में जनसत्ता में छपा था। इसे यहाँ फिर से लगाया है ताकि सनद रहे। इस सिलसिले में मैं कुछ और सामग्री खोजकर यहाँ लगाता जाऊँगा। 

मुंबई से फिल्म निर्देशक का फोन आया कि फिल्म के संवाद रोमन लिपि में लिखे जाएं। क्यों? इसलिए कि अभिनेताओं में से कुछ हिंदी बोलते-समझते हैं लेकिन नागरी लिपि नहीं पढ़ सकते। कैमरामैन गुजरात का है। वह भी हिंदी समझता-बोलता है लेकिन पढ़ नहीं सकता… इसी तरह… फिल्म से जुड़े हुए तमाम लोग हैं। फिल्मी दुनिया में गहरी पैठ रखने वालों ने बाद में बताया कि फिल्म उद्योग में तो हिंदी आमतौर पर रोमन लिपि में लिखी और पढ़ी जाती है। एनडीटीवी के हिंदी समाचार विभाग में बड़े ओहदे पर बरसों काम कर चुके एक दोस्त ने बताया कि टीवी चैनलों पर हिंदी समाचार आदि रोमन लिपि में लिखे जाते हैं। वजह केवल यह नहीं है कि समाचार पढ़ने वाला नागरी लिपि नहीं जानता है बल्कि यह भी है कि समाचार की जांच-पड़ताल करने वाले नागरी लिपि के मुकाबले रोमन लिपि ज्यादा सरलता से पढ़ सकते हैं।

Thursday, January 8, 2015

रोमन हिन्दी के बारे में चेतन भगत की राय

आज यानी 8 जनवरी के दैनिक भास्कर में चेतन भगत ने रोमन हिन्दी के बारे में एक लेख लिखा है। इस लेख को पढ़कर अनेक लोगों की प्रतिक्रिया होगी कि चेतन भगत के लेख को गम्भीरता से नहीं लेना चाहिए। यह प्रतिक्रिया या दंभ से भरी होती है या नादानी से भरी। जो वास्तव में उपस्थित है उससे मुँह मोड़कर आप कहाँ जाएंगे? भाषा अपने बरतने वालों के कारण चलती या विफल होती है, विशेषज्ञों के कारण नहीं। विशेषज्ञता वहाँ तक ठीक है जहाँ तक वह वास्तविकता को ठीक से समझे। बहरहाल आपकी जो भी राय हो, यदि आप इस लेख को पढ़ना चाहें तो यहाँ पेश हैः-

हमारे भारतीय समाज में हमेशा चलने वाली एक बहस हिंदी बनाम अंग्रेजी के महत्व की रही है। वृहद स्तर पर देखें तो इस बहस का विस्तार किसी भी भारतीय भाषा बनाम अंग्रेजी और किस प्रकार हमने अंग्रेजी के आगे स्थानीय भाषाओं को गंवा दिया इस तक किया जा सकता है। यह राजनीति प्रेरित मुद्‌दा भी रहा है। हर सरकार हिंदी के प्रति खुद को दूसरी सरकार से ज्यादा निष्ठावान साबित करने में लगी रहती है। नतीजा ‘हिंदी प्रोत्साहन’ कार्यक्रमों में होता है जबकि सारे सरकारी दफ्तर अनिवार्य रूप से हिंदी में सर्कुलर जारी करते हैं और सरकारी स्कूलों की पढ़ाई हिंदी माध्यम में रखी जाती है।

इस बीच देश में अंग्रेजी लगातार बढ़ती जा रही है। बिना प्रोत्साहन कार्यक्रमों और अभियानों के यह ऐसे बढ़ती जा रही है, जैसी पहले कभी नहीं बढ़ी। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि इसमें कॅरिअर के बेहतर विकल्प हैं, समाज में इसे अधिक सम्मान प्राप्त है और यह सूचनाओं व मनोरंजन की बिल्कुल नई दुनिया ही खोल देती है तथा इसके जरिये नई टक्नोलॉजी तक पहुंच बनाई जा सकती है। जाहिर है इसके फायदे हैं।



नव संवत्सर और नवरात्र आरम्भ के मौके पर सुबह से मोबाइल फोन पर शुभकामना संदेश आने लगे। पहले मकर संक्रांति, होली-दीवाली, ईद और नव वर्ष संदेश आए। काफी संदेश हिन्दी में हैं, खासकर मकर संक्रांति और नवरात्रि संदेश तो ज्यादातर हिन्दी में हैं। और ज्यादातर हिन्दी संदेश रोमन लिपि में।
मोबाइल फोन पर चुटकुलों, शेर-ओ-शायरी और सद्विचारों के आदान-प्रदान का चलन बढ़ा है। संता-बंता जोक तो हिन्दी में ही मज़ा देते हैं। रोमन के इस्तेमाल से हिन्दी और अंग्रेजी की मिली-जुली भाषा भी विकसित हो रही है। क्या ऐसा पहली बार हो रहा है?

Tuesday, January 6, 2015

संरचनात्मक निरंतरता की देन है ‘नीति आयोग’

नीति आयोग बन जाने के बाद जो शुरुआती प्रतिक्रियाएं हैं उनके राजनीतिक आयाम को छोड़ दें तो ज्यादातर राज्य अभी इसके व्यावहारिक स्वरूप को देखना चाहते हैं। इस साल वार्षिक योजनाओं पर विचार-विमर्श नहीं हुआ है। असम सरकार ने छठी अनुसूची के तहत आने वाले क्षेत्रों के लिए साधनों को लेकर चिंता व्यक्त की है। वहीं आंध्र सरकार अपनी नीति आयोग बनाने की योजना बना रहा है। तेलंगाना सरकार की समझ कहती है कि अब राज्य को बगैर किसी योजना आयोग की शर्तों से बँधे सीधे धनराशि मिलेगी। देखना यह है कि नीति आयोग का नाम ही बदला है या काम भी बदलेगा। केंद्र सरकार के वित्त मंत्रालय में भी भारी बदलाव होने जा रहे हैं। नए मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम आर्थिक सर्वेक्षण का रंग-रूप पूरी तरह बदलने की योजना बना रहे हैं। अब सर्वेक्षण के दो खंड होंगे। पहले खंड में अर्थ-व्यवस्था का विश्लेषण और विवेचन होगा। साथ ही इस बात पर जोर होगा कि किन क्षेत्रों में सुधार की जरूरत है। दूसरा खंड पिछले वर्षों की तरह सामान्य तथ्यों से सम्बद्ध होगा।

Monday, January 5, 2015

प्राचीन भारत में विज्ञान

मुम्बई में 102वीं साइंस कांग्रेस के दौरान वैदिक विमानन तकनीक पर अपने पर्चे में कैप्टन आनंद जे बोडास ने कहा, 'भारत में सदियों पहले भी विमान मिथक नहीं थे, वैदिक युग में भारत में विमान ना सिर्फ एक से दूसरे देश, बल्कि एक दूसरे ग्रह से दूसरे ग्रह तक उड़ सकते थे, यही नहीं इन विमानों में रिवर्स गियर भी था, यानी वे उल्टा भी उड़ सकते।' केरल में एक पायलट ट्रेनिंग सेंटर के प्रिंसिपल पद से रिटायर हुए कैप्टन बोडास ने अपने पर्चे में कहा, 'एक औपचारिक इतिहास है, एक अनौपचारिक। औपचारिक इतिहास ने सिर्फ इतना दर्ज किया कि राइट बंधुओं ने 1903 में पहला विमान उड़ाया। उन्होंने भारद्वाज ऋषि के वैमानिकी तकनीक को अपने पर्चे का आधार बताया। साइंस कांग्रेस के 102 सालों में पहली बार संस्कृत साहित्य से वैदिक विज्ञान के ऊपर परिचर्चा का आयोजन हुआ है। आयोजकों के मुताबिक यह विषय रखने का मकसद था कि संस्कृत साहित्य के नजरिए से भारतीय विज्ञान को देखा जा सके। इस परिचर्चा में वैदिक शल्य चिकित्सा का भी ज़िक्र हुआ। इस बात के दो पहलू हैं। केप्टेन बोडास की बात मुझे समझ में नहीं आती। सदियों पहले हमारे पूर्वज विमान बनाना जानते थे तो बाद में वे विमान गायब क्यों हो गए? जो समाज विज्ञान के लिहाज से इतना उन्नत था तो वह समाज विदेशी हमलों का सामना क्यों नहीं कर पाया? आर्थिक रूप से पिछड़ा क्यों रह गया वगैरह। विज्ञान कांग्रेस में बोडास का यह पर्चा पेश न किया जाए इसके लिए नासा में भारतीय मूल के वैज्ञानिक डॉ राम प्रसाद गांधीरामन ने एक मुहिम भी शुरू की थी। यह पर्चा चूंकि पढ़ा जा चुका है इसलिए अब विज्ञान से जुड़े लोगों को विचार करना चाहिए कि वे कह क्या रहे हैं।

Sunday, January 4, 2015

‘नीति आयोग’ की राजनीति

नए साल पर सरकार ने योजना आयोग की जगह नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया यानी संक्षेप में नीति आयोग बनाने की घोषणा की है। पहले कहा जा रहा था कि नई संस्था का नाम 'व्यय आयोग' होगा। उसके बाद इसका नाम नीति आयोग सुनाई पड़ा, जिसमें नीति माने पॉलिसी था। अब नीति को ज्यादा परिभाषित किया गया है। मोटे तौर पर यह छह दशक से चले आ रहे नेहरूवादी समाजवाद की समाप्ति की घोषणा है। इसका असर क्या होगा और नई व्यवस्था किस रूप में काम करेगी अभी स्पष्ट नहीं है। फिलहाल यह कदम प्रतीकात्मक है और व्यावहारिक रूप से संघीय व्यवस्था को रेखांकित करने की कोशिश भी है। कुछ लोगों ने इसे राजनीति आयोग बताया है। बड़ा फैसला है, जिसके राजनीतिक फलितार्थ भी होंगे। कांग्रेस पार्टी चाहती थी कि इसका नाम न बदले, भले ही काम बदल जाए।

Saturday, January 3, 2015

भारत सौर ऊर्जा पर 100 अरब डॉलर खर्च करेगा

राजस्थान में जयपुर के पास सांभर झील के निकट प्रस्तावित विश्व का सबसे
 बड़ा सौर ऊर्जा प्लांट
रायटर्स की खबर के मुताबिक भारत सरकार ने अगले सात साल में सौर ऊर्जा पर 100 अरब डॉलर के निवेश की योजना बनाई है। लक्ष्य है सौर ऊर्जा की क्षमता एक लाख मेगावाट करना। भारत में सात लाख से 21 लाख मेगावॉट तक सौर बिजली बनाने लायक यानी यूरोपीय देशों के मुकाबले दुगनी धूप उपलब्ध है। हैंडबुक ऑन सोलर रेडिएशन ओवर इंडिया के अनुसार, भारत के अधिकांश भाग में एक वर्ष में 250-300 धूप निकलने वाले दिनों सहित प्रतिदिन प्रति वर्गमीटर 4-7 किलोवाट घंटे का सौर विकिरण प्राप्त होता है। राजस्थान और गुजरात में प्राप्त सौर विकिरण उड़ीसा में प्राप्त विकिरण की अपेक्षा ज्यादा है। देश में 30-50 मेगावाट/ प्रतिवर्ग किलोमीटर छायारहित खुला क्षेत्र होने के बावजूद उपलब्‍ध क्षमता की तुलना में देश में सौर ऊर्जा का दोहन काफी कम है (जो 31-5-2014 की स्थिति के अनुसार 2647 मेगावाट है)। यूपीए सरकार ने सन 2009 में जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन योजना की शुरुआत की थी। यह जलवायु परिवर्तन पर राष्‍ट्रीय कार्य योजना के एक हिस्‍से के रूप में थी। इस मिशन का लक्ष्य 2022 तक 20 हजार मेगावाट क्षमता वाली ग्रिड से जोड़ी जा सकने वाली सौर बिजली की स्‍थापना और 2 हजार मेगावाट के समतुल्‍य गैर-ग्रिड सौर संचालन के लिए नीतिगत कार्य योजना का विकास करना है। इसमें सौर तापीय तथा प्रकाशवोल्टीय दोनों तकनीकों के प्रयोग का अनुमोदन किया गया। इस मिशन का उद्देश्‍य सौर ऊर्जा के क्षेत्र में देश को वैश्विक नेता के रूप में स्‍थापित करना है।

इस दिशा में जो महत्वाकांक्षी कार्यक्रम तैयार किया जा रहा है उसे देखते हुए भारत सौर ऊर्जा के मामले में दुनिया के ज्यादातर देशों से आगे जाना चाहता है। खासतौर से हमें जर्मनी से प्रेरणा मिल रही है, जिसने अपना परमाणु ऊर्जा का कार्यक्रम पूरी तरह समाप्त करने का ऐलान किया है। हाल में हरियाणा सरकार ने बड़े प्लॉटों और मॉल में सौर बिजली संयंत्र लगाना अनिवार्य कर दिया है। पंजाब, दिल्ली और उत्तर प्रदेश सरकारों ने इस मामले में पहल की है। पिछले साल मध्य प्रदेश के नीमच की जावद तहसील के भगवानपुरा (डिकेन) में शुरू हुआ सौर एनर्जी प्लांट एशिया का सबसे बड़ा सौर एनर्जी प्लांट बताया जाता है। इस सबसे बड़ी सौर ऊर्जा परियोजना का शुभारंभ 26 फरवरी 2014 को हुआ था। इसी तरह राजस्थान में सांभर झील इलाके में दुनिया का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा प्लांट लगाया जा रहा है।

सौर ऊर्जा संयंत्र महंगे होते हैं, पर भारत सरकार को लगता है कि जब बड़े स्तर पर उन्हें लगाया जाएगा तो एक समय के बाद वे सस्ते पड़ेंगे। अनुमान है कि इतने बड़े स्तर पर सौर ऊर्जा प्लांट लगाने से तीन साल के भीतर ताप बिजलीघरों के मुकाबले उनकी लागत का अंतर खत्म हो जाएगा। उनसे उत्पादित बिजली की लागत कम होगी और यह बिजली पर्यावरण-मित्र भी होगी। रायटर की खबर के अनुसार Solar energy in India costs up to 50 percent more than power from sources like coal. But the government expects the rising efficiency and falling cost of solar panels, cheaper capital and increasing thermal tariffs to close the gap within three years.,,,Foreign companies say they are enthused by Modi's personal interest, but red tape is still an issue. "The policy framework needs to be improved vastly. Documentation is cumbersome. Land acquisition is time-consuming. Securing debt funding in India and financial closures is a tough task," said Canadian Solar's Vinay Shetty, country manager for the Indian sub-continent.

पूरी खबर पढ़ें रायटर्स की वैबसाइट पर





Thursday, January 1, 2015

कैलेंडर नहीं, समय की चाल को देखिए

 देश की सवा अरब की आबादी में पाँच से दस करोड़ लोगों ने कल रात नए साल का जश्न मनाकर स्वागत किया. इतने ही या इससे कुछ ज्यादा लोगों को पता था कि नया साल आ गया है, पर वे इस जश्न में शामिल नहीं थे. इतने ही लोगों ने किसी न किसी के मुँह से सुना कि नया साल आ गया है और उन्होंने यकीन कर लिया. इतने ही और लोगों ने नए साल की खबर सुनी, पर उन्हें न तो यकीन हुआ और न अविश्वास. इस पूरी संख्या से दुगनी तादाद ऐसे लोगों की थी, जिन्हें किसी के आने और जाने की खबर नहीं थी. उनकी यह रात भी वैसे ही बीती जैसे हर रात बीतती थी.

Wednesday, December 31, 2014

बच्चों के सवाल पूछने को बढ़ावा दें

लेखक मंच’ प्रकाशन की चौथी पुस्‍तक ‘अपने बच्चे को दें विज्ञान दृष्टि’ अंग्रेजी पुस्‍तक का अनुवाद है।  इस किताब में लेखिका ने लिखा है कि बच्चों को सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। एकबार नोबेल पुरस्कार विजेता भौतिकविद इसीडोर आई राबी से उनके एक दोस्त ने पूछा, आप अपने आस-पड़ोस के बच्चों की तरह डॉक्टर, वकील, या व्यापारी बनने के बजाय वैज्ञानिक क्यों बने? 
राबी ने जवाब दिया, मेरी माँ ने अनजाने में ही मुझे वैज्ञानिक बना दिया। ब्रुकलिन में रहने वाली हर यहूदी माँ स्कूल से लौटने वाले अपने बच्चे से पूछती थी, तो तुमने आज स्कूल में कुछ सीखा कि नहीं? लेकिन मेरी माँ ऐसा नहीं करती थी। वह हमेशा एक अलग तरह का सवाल मुझसे पूछती थी, इज्जी क्या तुमेन आज क्लास में कोई अच्छा सवाल पूछा? दूसरी माताओं से उनके इस फर्क यानी अच्छे सवाल को महत्व देने की उनकी खूबी ने मुझे वैज्ञानिक बना दिया। 

Tuesday, December 30, 2014

‘छवि’ की राजनीति से घिरी कांग्रेस

कांग्रेस के लिए आने वाला साल चुनौतियों से भरा है। चुनौतियाँ बचे-खुचे राज्यों में इज्जत बचाए रखने और अपने संगठनात्मक चुनावों को सम्पन्न कराने की हैं। साथ ही पार्टी के भीतर सम्भावित बगावतों से निपटने की भी। पर उससे बड़ी चुनौती पार्टी के वैचारिक आधार को बचाए रखने की है। इस हफ्ते अचानक खबर आई कि राहुल गांधी ने पार्टी के महासचिवों से कहा है कि वे कार्यकर्ताओं से सम्पर्क करके पता करें कि क्या हमारी छवि हिन्दू विरोधी पार्टी के रूप में देखी जा रही है। लगता है कि राहुल का आशय केवल हिन्दू विरोधी छवि के सिलसिले में पता लगाना ही नहीं है, बल्कि पार्टी की सामान्य छवि को समझने का है। राहुल ने यह काम देर से शुरू किया है। खासतौर से पराजय के बाद किया है। इसके खतरे भी हैं। पिछले तीनेक दशक में कांग्रेस संगठन हाईकमान-मुखी हो गया है। कार्यकर्ता जानना चाहता है कि हाईकमान का सोच क्या है। पार्टी के भीतर नीचे से ऊपर की ओर विचार-विमर्श की कोई पद्धति नहीं है। यह दोष केवल कांग्रेस का दोष नहीं है। भारतीय जनता पार्टी से लेकर जनता परिवार से जुड़ी सभी पार्टियों में यह कमी दिखाई देगी। आम आदमी पार्टी ने इस दोष को रेखांकित करते हुए ही नए किस्म की राजनीति शुरू की थी, पर कमोबेश वह भी इसकी शिकार हो गई।

Monday, December 29, 2014

रक्षा और तकनीक की चुनौतियाँ

विज्ञान, तकनीक और खासतौर से रक्षा तकनीक के मामलों में हमें सन 2015 में काफी उम्मीदें हैं। पिछले साल की शुरूआत भारत के मंगलयान के प्रक्षेपण की खबरों से हुई थी। सितम्बर में मंगलयान अपने गंतव्य तक पहुँच गया। साल का अंत होते-होते दिसम्बर जीएसएलवी मार्क-3 की सफल उड़ान के बाद भारत ने अंतरिक्ष में समानव उड़ान का एक महत्वपूर्ण चरण पूरा कर लिया है। अंतरिक्ष में भारत अपने चंद्रयान-2 कार्यक्रम को अंतिम रूप दे रहा है। साथ ही शुक्र और सूर्य की ओर भारत के अंतरिक्ष यान उड़ान भरने की तैयारी कर रहे हैं। एक अरसे से रक्षा के क्षेत्र में हमें निराशाजनक खबरें सुनने को मिलती रही हैं। पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह की तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखी गई चिट्ठी के लीक होने के बाद इस आशय की खबरें मीडिया में आईं कि सेना के पास पर्याप्त सामग्री नहीं है।

रक्षा से जुड़े अनेक फैसलों का कार्यान्वयन रुका रहा। युद्धक विमान तेजस, अर्जुन टैंक और 155 मिमी की संवर्धित तोप के विकास में देरी हो रही है। मोदी सरकार के सामने रक्षा तंत्र को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी है। कई प्रकार की शस्त्र प्रणालियाँ पुरानी पड़ चुकी हैं। मीडियम मल्टी रोल लड़ाकू विमानों के सौदे को अंतिम रूप देना है। सन 2011 में भारत ने तय किया था कि हम फ्रांसीसी विमान रफेल खरीदेंगे और उसका देश में उत्पादन भी करेंगे। वह समझौता अभी तक लटका हुआ है। तीनों सेनाओं के लिए कई प्रकार के हेलिकॉप्टरों की खरीद अटकी पड़ी है। विक्रमादित्य की कोटि के दूसरे विमानवाहक पोत के काम में तेजी लाने की जरूरत है। अरिहंत श्रेणी की परमाणु शक्ति चालित पनडुब्बी को पूरी तरह सक्रिय होना है। इसके साथ दो और पनडुब्बियों के निर्माण कार्य में तेजी लाने की जरूरत है।

Sunday, December 28, 2014

हिन्दू विरोधी नहीं उलझनों भरी पार्टी है कांग्रेस

'हिंदू विरोधी’ छवि कांग्रेस के पतन का कारण ?

  • 1 घंटा पहले
राहुल गांधी, सोनिया गांधी, कांग्रेस
लोकसभा चुनावों में हार के बाद विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे कांग्रेस पार्टी के लिए निराशाजनक रहे हैं.
मीडिया में आई ख़बरों के अनुसार पार्टी अपनी 'बिगड़ती छवि' पर चिंतन करने के मूड में है. वहीं यह भी कहा गया कि एक के बाद एक हार मिलने की वजह है पार्टी की 'हिंदू विरोधी' छवि.
हालांकि कांग्रेस के बारे में ऐसे बयान नए नहीं हैं.
लेकिन पार्टी की लोकप्रियता में कमी के कारण शायद कुछ और हैं, जिन्हें समझने के लिए ज़रूरी आत्ममंथन से पार्टी शायद गुज़रना नहीं चाहती?

पढ़ें, लेख विस्तार से

राहुल गांधी, कांग्रेस
कांग्रेस क्या वास्तव में अपनी बिगड़ती छवि से परेशान है? या इस बात से कि उसकी छवि बिगाड़कर ‘हिंदू विरोधी’ बताने की कोशिश की जा रही हैं?
इससे भी बड़ा सवाल यह है कि वह अपनी बदहाली के कारणों को समझना भी चाहती है या नहीं?
छवि वाली बात कांग्रेस के आत्ममंथन से निकली है. पर क्या वह स्वस्थ आत्ममंथन करने की स्थिति में है? आंतरिक रूप से कमज़ोर संगठन का आत्ममंथन उसके संकट को बढ़ा भी सकता है.
अस्वस्थ पार्टी स्वस्थ आत्ममंथन नहीं कर सकती. कांग्रेस लम्बे अरसे से इसकी आदी नहीं है. इसे पार्टी की प्रचार मशीनरी की विफलता भी मान सकते हैं. और यह भी कि वह राजनीति की ‘सोशल इंजीनियरिंग’ में फेल हो रही है.

आरोप नया नहीं

सोनिया गांधी, कांग्रेस
यह मामला केवल ‘हिंदू विरोधी छवि’ तक सीमित नहीं है.
पचास के दशक में जब हिंदू कोड बिल पास हुए थे, तबसे कांग्रेस पर हिंदू विरोधी होने के आरोप लगते रहे हैं पर कांग्रेस की लोकप्रियता में तब कमी नहीं आई.
साठ के दशक में गोहत्या विरोधी आंदोलन भी उसे हिंदू विरोधी साबित नहीं कर सका.
वस्तुतः इसे कांग्रेस के नेतृत्व, संगठन और विचारधारा के संकट के रूप में देखा जाना चाहिए. एक मोर्चे पर विफल रहने के कारण पार्टी दूसरे मोर्चे पर घिर गई है.
कांग्रेस की रणनीति यदि सांप्रदायिकता विरोध और धर्मनिरपेक्षता की है, तो वह उसे साबित करने में विफल रही.

Ironies of INDIA हमारी विसंगतियाँ

A policeman makes us nervous rather than feeling safe

A boy writes a brilliant 1500 words essay in IAS exam on how Dowry is a social evil. One year later He demands a dowry of 1 crore.

We are obsessed with screen guards on our smartphones but don't wear helmet riding bikes.


We teach 'Not to Get Raped', rather 'Don't Rape' !

Worst movies earn most.

A porn-star is accepted as celebrity, but a rape victim is not accepted as a normal human being.

इधर-उधऱ से जोड़ी गई कुछ और सामग्री



Saturday, December 27, 2014

मोदी के अलोकप्रिय होने का इंतज़ार करती कांग्रेस

सन 2014 कांग्रेस के लिए खौफनाक यादें छोड़ कर जा रहा है। इस साल पार्टी ने केवल लोकसभा चुनाव में ही भारी हार का सामना नहीं किया, बल्कि आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, हरियाणा, महाराष्ट्र, सिक्किम के बाद अब जम्मू-कश्मीर और झारखंड विधान सभाओं में पिटाई झेली है। यह सिलसिला पिछले साल से जारी है। पिछले साल के अंत में उसे राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीस गढ़ और दिल्ली में यह हार गले पड़ी थी। हाल के वर्षों में उसे केवल कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में सफलता मिली है। आंध्र के वोटर ने तो उसे बहुत बड़ी सज़ा दी। प्रदेश की विधान सभा में उसका एक भी सदस्य नहीं है। चुनाव के ठीक पहले तक उसकी सरकार थी। कांग्रेस ने सन 2004 में दिल्ली में सरकार बनाने की जल्दबाज़ी में तेलंगाना राज्य की स्थापना का संकल्प ले लिया था। उसका दुष्परिणाम उसके सामने है।

Friday, December 26, 2014

धर्मांतरण पर बहस का दायरा और बड़ा कीजिए

बहस धर्मांतरण की हो या किसी दूसरे मसले की उसे खुलकर सामने आना चाहिए। अलबत्ता बातें तार्किक और साधार होनी चाहिए। धार्मिक और अंतःकरण की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण मानवाधिकार है, पर हमें धर्म, खासतौर से संगठित धर्म की भूमिका पर भी तो बात करनी चाहिए। जितनी जरूरी धार्मिक स्वतंत्रता  है उतनी ही जरूरी है धर्म-विरोध की स्वतंत्रता। धर्म का रिश्ता केवल आस्तिक और नास्तिक होने से नहीं है। वह विचार का एक अलग मामला है। व्यक्ति के दैनिक आचार-विचार में धर्म बुनियादी भूमिका क्यों अदा कर रहे हैं? उनकी तमाम बातें निरर्थक हो चुकी हैंं। धार्मिकता को जितना सुन्दर बनाकर पेश किया जाता है व्यवहार में वह वैसी होती नहीं है। इसमें अलग-अलग धर्मों की अलग-अलग भूमिका है। रोचक बात यह है कि नए-नए धर्मों का आविष्कार होता जा रहा है। हम उन्हें पहचान नहीं पाते, पर वे हमारे जीवन में प्रवेश करते जा रहे हैं। अनेक नई वैचारिक अवधारणाएं भी धर्म जैसा व्यवहार करती हैं। सामान्य व्यक्ति की समझदारी की इसमें सबसे बड़ी भूमिका है। चूंकि बातें कांग्रेस-भाजपा और राष्ट्रीय स्वंसेवक संघ को लेकर हैं इसलिए तात्कालिक राजनीति का पानी इसपर चढ़ा है।   धर्म निरपेक्षता के हामियों का नजरिया भी इसमें शामिल है। दुनिया में कौन सा धर्म है जो अपने भीतर सुधार के बारे में बातें करता है? जिसमें अपनी मान्यताओं को अस्वीकार करने  और बदलने की हिम्मत हो? हम जिस धार्मिक स्वतंत्रता की बात कर रहे हैं उसका कोई लेवल फील्ड है या नहीं? आज के सहारा में मेरा एक लेख छपा है इसे देखें:-


हमारा देश धर्म-निरपेक्ष है, पर वह धर्म-विरोधी नहीं है। संविधान में वर्णित स्वतंत्रताओं में धर्म की स्वतंत्रता और अधिकार भी शामिल है। इस स्वतंत्रता में धर्मांतरण भी शामिल है या नहीं, इसे लेकर कई तरह की धारणाएं हैं। देश के पाँच राज्यों में कमोबेश धर्मांतरण पर पाबंदियाँ हैं। इनके अलावा राजस्थान में इस आशय का कानून बनाया गया है, जो राष्ट्रपति की स्वीकृति का इंतज़ार कर रहा है। अरुणाचल ने भी इस आशय का कानून बनाया, जो किसी कारण से लागू नहीं हुआ। तमिलनाडु सरकार ने सन 2002 में इस आशय का कानून बनाया, जिसे बाद में राजनीतिक विरोध के कारण वापस ले लिया गया। ये ज्यादातर कानून धार्मिक स्वतंत्रता के कानून हैं, पर इनका मूल विषय है धर्मांतरण पर रोक। धर्मांतरण क्या वैसे ही है जैसे राजनीतिक विचार बदलना? मसलन आज हम कांग्रेसी है और कल भाजपाई? पश्चिमी देश धर्मांतरण की इजाजत देते हैं, पर काफी मुस्लिम देश नहीं देते।

Wednesday, December 24, 2014

Modi year ends on Modi note आज के कुछ पठनीय आलेख

आज के अखबारों में जम्मू-कश्मीर और झारखंड के चुनाव परिणाम छाए हैं। मीडिया अभी तय नहीं कर पा रहीा है कि मोदी वेव थमी है या चल रही है। यह वेव कभी थी भी या नहीं। ज्यादातर लोग अपनी पूर्व निर्धारित धारणाओं के आधार पर फैसले कर रहे हैं। ज्यादातर निष्कर्ष कश्मीर को लेकर हैं। कश्मीर की राजनीति अचानक देश की सुर्खियों में है। इस राज्य में बीजेपी की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकती है, पहले ऐसा सोचा न गया होगा। देखें आज की कुछ कतरनें
हिंदू में केशव का कार्टून
आज के कुछ पठनीय आलेख
No rabbit in his hat
Suhas Palshikar in Indian express

The distance between Jammu and Kashmir
Muzamil Jaleel in Indian Express

क्षेत्रीय दलों के बिखराव का नतीजा

प्रभात खबर, रांची

प्रभात खबर, रांची
‘राज्य’ से आगे निकलता ‘राष्ट्रीय’
प्रभात खबर, रांची

क्या नरेंद्र 'अटल' बनेंगे

अमर उजाला

अमर उजाला

Tuesday, December 23, 2014

राजनीति अब और करवट लेगी

राष्ट्रीय राजनीति में भारी बदलाव की आहट

  • 3 मिनट पहले
जम्मू-कश्मीर, चुनाव
भारत प्रशासित जम्‍मू कश्‍मीर राज्य और झारखंड के विधानसभा चुनाव परिणामों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रभाव क्षेत्र के विस्तार को स्थापित किया है.
दोनों राज्यों में उसे अब तक की सबसे बड़ी सफलता हासिल हुई है. जम्मू-कश्मीर में पार्टी पहली बार असाधारण रूप से महत्वपूर्ण स्थिति में पहुँच गई है.
इससे केवल राज्य की राजनीति ही प्रभावित नहीं होगी, बल्कि इसका व्यापक राष्ट्रीय असर होगा. सम्भवतः भाजपा की अनेक अतिवादी धारणाएं पृष्ठभूमि में चली जाएंगी.
उसे राष्ट्रीय राजनीति के बरक्स अपने भीतर लचीलापन पैदा करना होगा.

पढ़ें लेख विस्तार से

भाजपा, समर्थक
भाजपा का दावा है कि जम्मू-कश्मीर का मौजूदा चुनाव उसकी दीर्घकालीन राजनीति का एक चरण है. यानी वह राज्य में ज़्यादा बड़ी भूमिका निभाने का इरादा रखती है.
इसकी परीक्षा अगले एक-दो दिन में ही हो जाएगी. देखना यह होगा कि क्या पार्टी कश्मीर में सरकार बनाने की कोशिश करेगी.
दूसरी ओर झारखंड में भाजपा को पिछली बार की तुलना में सफलता ज़रूर मिली है, पर उसे गठबंधन का सहारा लेना होगा.
यानी राज्य को गठबंधन-राजनीति से पूरी तरह मुक्ति नहीं मिलेगी. इसका मतलब यह भी है कि पार्टी ने सही समय पर वक़्त की नब्ज़ को पढ़ा और आजसू (ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन) से गठबंधन किया.

Monday, December 22, 2014

कट्टरता का जवाब है वैचारिक समझदारी


आज के इंडियन एक्सप्रेस के दो आइटम ध्यान खींचने वाले हैं। अखबार के एक्सप्रेस अड्डा कार्यक्रम में अमर्त्य सेन ने नरेंद्र मोदी के साथ अपने मतभेदों का जिक्र करते हुए यह भी कहा कि मोदी ने इस उम्मीद को कायम किया कि बहुत कुछ हो भी सकता है। उन्होंने मोदी के शौचालय कार्यक्रम की प्रशंसा की और यह भी माना कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने दूसरे कार्यकाल में काम करके दिखा नहीं पाए। आज के एक्सप्रेस ने गोवा के एक कार्यक्रम से सुषमा स्वराज के एक वक्तव्य को उधृत किया है, जिसमें स्वराज ने उदारता और सहिष्णुता के रास्ते को उचित बताया है। हार्डकोर हिन्दुत्व से जुड़े बयानों के बीच सुषमा स्वराज का यह बयान आश्वस्तिकारक है। आज के एक्सप्रेस में पाकिस्तानी पत्रकार हामिद मीर का लेख भी कुछ बुनियादी सवाल उठाता है। एक्सप्रेस में पाकिस्तान के पूर्व विदेशमंत्री खुरशीद महमूद कसूरी का इंटरव्यू भी पढ़ने लायक है, जिसमें उन्होंने ट्रैक टू की बातचीत को उपयोगी बताया है। 


Sunday, December 21, 2014

कांग्रेस का सबसे डरावना साल

कांग्रेस के लिए यह साल आसमान से जमीन पर गिरने का साल था। दस साल पहले कुछ ऐसी परिस्थितियाँ बनीं जिनमें कांग्रेस पार्टी को न केवल सत्ता में आने का मौका मिला बल्कि नेहरू-गांधी परिवार को फिर से पार्टी की बागडोर हाथ में लेने का पूरा मौका मिला। इस साल अचानक सारी योजना फेल हो गई और अब पार्टी गहरे खड्ड की और बढ़ रही है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सबसे बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। उसके ठीक पहले और बाद में हुए सभी विधानसभा चुनावों में भी उसकी हार हुई। इन दिनों हो रहे जम्मू-कश्मीर और झारखंड विधानसभा चुनावों के परिणाम 23 दिसम्बर को आने के बाद पराभव का पहिया एक कदम और आगे बढ़ जाएगा।

उत्साहवर्धक है कश्मीर की वोटिंग

बहुत कुछ कहता है भारी मतदान

  • 51 मिनट पहले

चुनाव, कश्मीर

झारखंड और भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव अपने राजनीतिक निहितार्थ के अलावा सुरक्षा व्यवस्था के लिहाज़ से महत्वपूर्ण होते हैं.
इन दोनों राज्यों में शांतिपूर्ण तरीक़े से मतदान होना चुनाव व्यवस्थापकों की सफलता को बताता है और मतदान का प्रतिशत बढ़ना वोटर की जागरूकता को.
दोनों राज्यों के हालात एक-दूसरे से अलग हैं, पर दोनों जगह एक तबक़ा ऐसा है जो चुनावों को निरर्थक साबित करता है.
इस लिहाज से भारी मतदान होना वोटर की दिलचस्पी को प्रदर्शित करता है.

पढ़ें लेख विस्तार से


चुनाव, कश्मीर

भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों ने चुनाव के बहिष्कार का आह्वान किया था और झारखंड में माओवादियों का डर था.
दोनों राज्यों में भारी मतदान हुआ. यूं भी सन 2014 को देश में भारी मतदान के लिए याद किया जाएगा. साल का अंत भारतीय लोकतंत्र के लिए कुछ अच्छी यादें छोड़कर जा रहा है.
भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर में पिछले 25 साल का सबसे भारी मतदान इस बार हुआ है.
सन 2002 के विधान सभा चुनावों ने कश्मीर में नया माहौल तैयार किया था, पर घाटी में मतदान काफ़ी कम होता था. पर इस बार कहानी बदली हुई है.
इस चुनाव का सबसे महत्वपूर्ण पहले और दूसरे दौर का मतदान था. दोनों में 71 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट पड़े.

Saturday, December 20, 2014

भारत बनाम चीन : निर्माण क्षेत्र की भावी प्रतियोगिता

 Well before the arrival of Modi, Indian leaders had talked about promoting manufacturing. The slowdown in China, however, could make a big difference this time. China became an export powerhouse because of its vast pool of low-wage workers, but it’s no longer so cheap to manufacture there. Pinched by double-digit increases in China’s minimum wages, many companies are looking for low-cost alternatives. Southeast Asian countries such as Vietnam and Indonesia are attractive, but they lack the deep supply of workers available in India. “It’s the only country that has the scale to take up where China is leaving off,” says Frederic Neumann, a senior economist with HSBC (HSBC). Vietnam and Indonesia? “Neither one is big enough to take up the slack,” he says, leaving India with a “golden opportunity.
Read full article in BloombergBusinessweek









क्या चीन ने अमरीका को पीछे छोड़ दिया है?

पिछले 140 सालों में यह पहली बार हुआ है. अमरीका ने दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का रुतबा खो दिया है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के मुताबिक़ अब ये हैसियत चीन के पास है. लेकिन सवाल उठता है कि इस दावे को मजबूती देने वाले आंकड़ों पर किस हद तक भरोसा किया जा सकता है. बीबीसी के आर्थिक मामलों के संपादक रॉबर्ट पेस्टन बता रहे हैं कि आख़िर चीन क्यों हम सबके लिए मायने रखता है.
चीन की मौजूदा अर्थव्यवस्था 17.6 ट्रिलियन डॉलर की है जबकि आईएमएफ़ ने अमरीका के लिए 17.4 ट्रिलियन का अनुमान लगाया है.


Friday, December 19, 2014

इंटरनेट की स्वतंत्रता और उस पर नियंत्रण का सवाल


हाल में बेंगलुरु में आईएस के ट्वीट हैंडलर मेहदी विश्वास की गिरफ्तारी के बाद यह बहस आगे बढ़ी है कि  इंटरनेट पर विचारों और सूचना के आदान-प्रदान की आजादी किस हद तक होनी चाहिए। इस बात की जानकारी मिल रही है कि इराक में बाकायदा लड़ाई लड़ रहा आईएस सोशल मीडिया का भरपूर इस्कतेमाल कर रहा है। एक ओर लोकतांत्रिक आजादी का सवाल है और दूसरी ओर आतंकवादी और यहाँ तक कि समुद्री डाकू भी इसका सहारा ले रहे हैं। 

Thursday, December 18, 2014

India's GSLV Mk.III with prototype crew capsule


India debuts GSLV Mk.III with prototype crew capsule

no altThe Indian Space Research Organisation has launched the first test flight of its newest rocket – the GSLV Mk.III – on Thursday, conducting a suborbital flight that also demonstrated a prototype crew capsule (CARE) for India’s proposed manned missions. Liftoff from the Satish Dhawan Space Centre occurred at 09:30 local time (04:00 UTC).

ISRO Launch:
India’s new rocket, which the Indian Space Research Organisation (ISRO) refers to by the names GSLV Mk.III and LVM3, is a completely new vehicle marking the third generation for India’s orbital launch systems.
The two-stage rocket is designed to place around 10 tonnes (9.8 Imperial tons, 11 US tons) of payload into low earth orbit or four tonnes (3.9 Imperial tons, 4.4 US tons) to a geosynchronous transfer orbit.
2014-12-18 01_00_29-LIVE_ GSLV Mk-3 1st test launch (X1) December 18, 2014 (ETD 0400UTC)For Thursday’s mission only the first stage and boosters were live, while the inert second stage was loaded with liquid nitrogen to simulate propellant.