इलाहाबाद में अखिलेश समर्थक एक पोस्टर |
अंततः यह सब ड्रामा साबित हुआ. गुरुवार की रात एक अंदेशा था कि कहीं
यह नूरा-कुश्ती तो नहीं थी? आखिर में यही साबित हुआ.
मुलायम परिवार के झगड़े का अंत जिस तरह हुआ
है, उससे तीन निष्कर्ष आसानी से निकलते हैं. पहला, यह कि यह अखिलेश की छवि बनाने
की एक्सरसाइज़ थी. दूसरा, मुलायम सिंह को बात समझ में आ गई कि अखिलेश की छवि
वास्तव में अच्छी है. तीसरा, दोनों पक्षों को समझ में आ गया कि न लड़ने में ही
समझदारी है.
कुल मिलाकर निष्कर्ष यह है कि अखिलेश यादव
ज्यादा बड़े नेता के रूप में उभर कर सामने आए हैं. और शिवपाल की स्थिति कमजोर हो
गई है. टीप का बंद यह कि रामगोपाल यादव ने 1 जनवरी को जो राष्ट्रीय प्रतिनिधि
सम्मेलन बुलाया था, वह भी होगा.