‘ट्रंप-फैक्टर’ के अचानक शामिल हो जाने से भारत-पाकिस्तान और भारत-अमेरिका रिश्तों में उलझाव नज़र आने लगे हैं. कारोबारी कारणों और खासतौर से डॉनल्ड ट्रंप के तौर-तरीकों की वज़ह से ये गुत्थियाँ उलझ रही हैं.
डॉनल्ड ट्रंप ने हाल में भारत और पाकिस्तान को
एकसाथ जोड़कर देखना शुरू कर दिया है, जबकि एक दशक पहले अमेरिका ने भारत और
पाकिस्तान को एकसाथ रखने की नीति को त्याग दिया था. क्या अमेरिका की नीतियों में
बदलाव आ रहा है?
ट्रंप के बारे में माना जाता है कि वे शेखी बघारने
में माहिर हैं, ज़रूरी नहीं कि उनकी नीतियों में बड़ा बदलाव हो. अलबत्ता भारतीय
नीति-नियंताओं को सावधानी से देखना होगा कि भारत-पाकिस्तान को ‘डिहाइफनेट’ करने की अमेरिकी-नीति जारी है या उसमें बदलाव आया है.
बदले स्वर
ट्रंप के बदले स्वरों की तबतक अनदेखी की जा सकती
है, जबतक हमें लगे कि यह केवल बयानबाज़ी तक सीमित है. इसलिए हमें भारत-अमेरिका
व्यापार-वार्ता के नतीज़ों का इंतज़ार करना चाहिए, जो इस महीने के तीसरे-चौथे
हफ्ते में दिखाई पड़ेंगे.
संभव है कि पाकिस्तान के प्रति अमेरिकी-नीति में
बदलाव हो रहा हो. उसके लिए भी हमें तैयार रहना होगा. शायद निजी स्वार्थों के कारण ट्रंप,
पाकिस्तान के साथ रिश्ते बना रहे हों, जैसाकि बिटकॉइन कारोबार को लेकर कहा जा रहा
है, जिसमें उनका परिवार सीधे जुड़ा है.
अफगानिस्तान-पाकिस्तान में संभावित खनिज भंडार के दोहन का प्रलोभन भी ट्रंप को पाकिस्तान की ओर खींच भी सकता है. इन सभी बातों के निहितार्थ का हमें इंतज़ार करना होगा, पर उसके पहले हमें ट्रंप की टैरिफ-योजना पर नज़र डालनी चाहिए, जो उनके राजनीतिक-भविष्य के लिहाज से महत्वपूर्ण है.