भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एनडीए ‘400 पार’ नहीं कर पाई, यह उसकी विफलता है, पर व्यावहारिक सच यह भी है कि उसे सरकार बनाने लायक स्पष्ट बहुमत मिल गया है. जवाहर लाल नेहरू की तरह नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार लगातार तीसरी बार बनेगी.
दूसरी तरफ ‘इंडिया’ गठबंधन ने बीजेपी की अपराजेयता को एक झटके में ध्वस्त किया है. इससे पार्टी और उसके
नेतृत्व का रसूख कम होगा. ‘अमृतकाल’ का यह कड़वा अनुभव है. चुनाव-प्रचार
के दौरान नरेंद्र मोदी की रैलियों और बयानों से यह संकेत मिल भी रहा था कि उन्हें
नेपथ्य से आवाजें सुनाई पड़ रही हैं.
पहली नज़र में
जो भी परिणाम आए हैं, उनके अनुसार केंद्र में एनडीए की सरकार बन जाएगी, पर इस जीत में भी कई किस्म की
हार छिपी है. दूसरी तरफ कांग्रेस के नेतृत्व में ‘इंडिया’ गठबंधन अपनी सफलता से खुश भले ही हो ले, पर इसमें उसकी विफलता छिपी है. 295+ का
उनका दावा भी सही साबित नहीं हुआ. और बीजेपी के पास अगले पाँच साल के लिए राजदंड आ
गया है.
मतदाता
का असमंजस
इस चुनाव में बीजेपी किसी सकारात्मक संदेश को जनता तक पहुँचाने में कामयाब
नहीं हुई, पर ‘इंडिया’ गठबंधन ने
जिस नकारात्मक आधार पर चुनाव जीतने की रणनीति बनाई थी, वह भी कामयाब नहीं हुई. उनका
अभियान नरेंद्र मोदी हटाओ तक ही सीमित था. उन्होंने खुद जीत हासिल नहीं कि, बस
मोदी के नेतृत्व को नुकसान पहुँचाया है.
खबरें हैं कि वे भी जुगाड़ लगा कर सरकार बनाने का प्रयास कर रहे हं, पर इससे उन्हें बदनामी ही मिलेगी. ये चुनाव-परिणाम मतदाता की उम्मीदों से ज्यादा उसके असमंजस को व्यक्त कर रहे हैं.