अठारहवीं लोकसभा के चुनाव का पहला मतदान होने में अभी दो हफ्ते शेष हैं, पर राजनीतिक माहौल तेजी से गरमा गया है। 2014 का चुनाव करीब तीन साल से ज्यादा समय तक चले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बाद हुआ था, फिर भी तब ऐसी लू-लपट नहीं थी, जैसी इसबार है। अनुमान था कि अबके चुनाव में कांग्रेस पार्टी के ‘सुप्रीमो’ राहुल गांधी अपनी ‘जोड़ो-तोड़ो यात्राओं’ के रथ पर सवार होकर आएंगे। पर उसके पहले ही आम आदमी पार्टी के ‘सुप्रीमो’ अरविंद केजरीवाल और उनकी कट्टरपंथी-मंडली ने खड़ताल बजाना शुरू कर दिया। इससे इंडी-गठबंधन की दरारों पर चढ़ी कलई एकबारगी उतर गई।
चुनाव के पहले दौर में जैसा होता है पार्टियों
के टिकट नहीं मिलने पर भगदड़ होती है, दल-बदल होते हैं और तीखी बयानबाजियाँ होती
हैं। टिकट वितरण अपेक्षाकृत जल्दी होने के कारण यह सब जल्दी निपट गया है। कुछ समय
पहले लग रहा था कि विरोधी दलों की एकता सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए
चुनौती बनकर उभरेगी और बड़ी संख्या में सीटों पर सीधे मुकाबले होंगे। कुल मिलाकर
यह संभावना रेत के ढेर की तरह बिखर गई है।
ईडी को धमकी
अभी चुनाव प्रचार पूरे रंग पर नहीं है, पर राहुल गांधी ने सीबीआई और ईडी को ‘देख लेंगे’ की धमकी देकर कुछ कड़वाहट पैदा कर दी है। इसके अलावा ईवीएम को लेकर जिस तरह की बातें कही जा रही हैं, उनसे लगता है कि राजनीतिक दलों की दिलचस्पी न तो चुनाव-सुधारों में है और न इस मामले में आमराय बनाने में।