Friday, December 1, 2023

गज़ा में अस्थायी युद्ध-विराम के बाद


इसराइल और हमास के बीच अस्थायी पहले अस्थायी संघर्ष-विराम के चार दिन के बाद दो दिन के लिए यह विराम और आगे बढ़ाया गया. इस दौरान दोनों पक्षों ने कुछ कैदियों या बंधकों का आदान-प्रदान किया और हिंसक गतिविधियों को रोककर रखा. इस दौरान अमेरिका के विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकेन इसरायल गए, यह समझाने कि युद्ध-विराम को आगे बढ़ाने में भलाई है. इसके सहारे कुछ और बंधकों की रिहाई हो जाएगी.

उधर सीआईए के डायरेक्टर विलियम बर्न्स और मोसाद के प्रमुख डेविड बार्निया क़तर के प्रधानमंत्री और मिस्र के अधिकारियों से बातें करने के लिए दोहा गए. अमेरिका चाहता है कि युद्ध-विराम जारी रहे, पर इसराइल चाहता है कि उसकी कारवाई जल्द से जल्द शुरू हो. सवाल पूछा जा सकता है कि अब आगे क्या होगा और यह भी कि इस आंशिक-विराम से किस को क्या मिला?  

संभव है कि यह विराम एकबार और कुछ समय के लिए बढ़ा दिया जाए. अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने भी इसराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू को इस आशय का सुझाव दिया है, ताकि बंधकों की रिहाई कराई जा सके. अस्थायी युद्ध-विराम से स्थायी-समाधान के बारे में सोचने का मौका भी मिलेगा, बशर्ते दोनों पक्षों को हिंसा की निरर्थकता का आभास हो. मिस्री अधिकारियों को इस आशय के संकेत मिले हैं, पर इसराइल और हमास ने ऐसी कोई बात कही नहीं है.

जो भी होगा उसमें इन दोनों पक्षों के अलावा अमेरिका की भूमिका भी होगी. अमेरिका को दो तरह की चिंताएं है. बड़ी संख्या में नागरिकों की मौतों का अमेरिकी जनमत पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. अगले साल चुनाव को देखते हुए बाइडन अपनी छवि को लेकर संवेदनशील हैं. दूसरे लड़ाई खत्म होने के बाद खंडहर में तब्दील हो चुके गज़ा का पुनर्निर्माण. अंततः उसकी काफी कीमत अमेरिका को चुकानी होगी.

इसराइली दावा

इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने 26 नवंबर को कहा कि इस लड़ाई में हमारे तीन लक्ष्य हैं: हमास का सफाया, बंधकों की वापसी और भविष्य में गज़ा को इसराइल के लिए खतरा बनने से रोकना. हम पूर्ण विजय पाने तक लड़ते रहेंगे.

पर्यवेक्षकों के अनुसार लड़ाई का दूसरा दौर शुरू हुआ, तो वह गज़ा के दक्षिणी इलाकों में चलेगा. यह ज्यादा विवादास्पद होगा, क्योंकि यहाँ नागरिकों की ज्यादा मौतें होने का अंदेशा है.

कौन सा पक्ष पहले थकेगा, यह भी देखना होगा. हमास की ताकत का पता लगाना आसान नहीं है. उसके काफी लड़ाके अभी सुरंगों में बैठे हैं. अलबत्ता इसराइल का दावा है कि हमास की आधी ताकत खत्म कर दी गई है. लड़ाई खत्म होने के बाद यह भी देखना होगा कि हमास की लोकप्रियता का स्तर क्या है. नागरिकों का एक तबका ऐसा भी है, जो मानता है कि हमास की हरकतों के कारण उनका जीवन खतरे में पड़ गया.

Thursday, November 23, 2023

मालदीव का बदला रुख और भारतीय-दृष्टि

मालदीव के राष्ट्रपति मुहम्मद मुइज़्ज़ू के साथ किरन रिजिजू

मालदीव में नव निर्वाचित राष्ट्रपति मुहम्मद मुइज़्ज़ू कार्यकाल शुरू हो गया है और अब देखना होगा कि ऐसे दौर में जब वैश्विक राजनीति लगातार टकरावों की ओर बढ़ रही है, मालदीव का सत्ता-परिवर्तन क्या गुल खिलाएगा. देश में चुनाव प्रचार के दौरान भारत को लेकर कड़वाहट का जो माहौल बना था, उसका व्यावहारिक असर अब देखने को मिलेगा.

भारत को भी सावधानी और समझदारी के साथ इस देश के साथ रिश्तों को संभालने और परिभाषित करने की जरूरत होगी. हालांकि यह बहुत छोटा देश है, पर हिंद महासागर के बेहद संवेदनशील इलाके में अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण यह महत्वपूर्ण है और उसे साधकर रखना जरूरी है. वैश्विक-राजनीति में भूमिका निभाने के साथ-साथ भारत को अपने इलाके में बेहतर संबंध बनाने होंगे. 

मालदीव के नए राष्ट्रपति अपनी संप्रभुता और राष्ट्रवादी जुनून से जुड़े दावे जरूर कर रहे हैं, पर वे डबल गेम नहीं खेल सकते. उन्हें भी भारत के साथ अपने रिश्तों को स्पष्ट परिभाषित करना होगा. भारत छोटा देश नहीं है, बल्कि इस इलाके का सबसे बड़ा देश है.

Tuesday, November 21, 2023

भारत-अमेरिका रिश्तों की अगली पायदान


भारत और अमेरिका के बीच हाल में हुई टू प्लस टू वार्ता आपसी मुद्दों से ज्यादा वैश्विक-घटनाक्रम के लिहाज से ज्यादा महत्वपूर्ण साबित हुई, फिर भी रक्षा-सहयोग और आतंकवाद से जुड़े कुछ मुद्दों ने खासतौर से ध्यान खींचा है।  कनाडा में खालिस्तानी आतंकियों को मिल रहे समर्थन के संदर्भ में भारत ने अपना पक्ष दृढ़ता से रखा, वहीं रक्षा-तकनीक में सहयोग को लेकर कुछ संदेह व्यक्त किए जा रहे हैं।

इन बातों को जून के महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका-यात्रा के दौरान किए गए फैसलों की रोशनी में भी देखना होगा, क्योंकि ज्यादातर बातें उस दौरान तय किए गए कार्यक्रमों से जुड़ी हैं। गज़ा में चल रहा युद्ध और भारत-कनाडा टकराव अपेक्षाकृत बाद का घटनाक्रम है, पर उनसे दोनों देशों के रिश्तों पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ा है। दोनों परिघटनाएं प्रत्यक्ष नहीं, तो परोक्ष रूप में पहले से चल रही थीं।  

Saturday, November 11, 2023

आइए अंधेरे को भगाएं


हमारा देश पर्वों और त्योहारों का देश है। मौसम और समय के साथ सभी पर्वों का महत्व है, पर इस समय जो पर्व-समुच्चय मनाया जा रहा है, उसका तुलना दुनिया के किसी भी समारोह से संभव नहीं है। श्री, समृद्धि, स्वास्थ्य और स्वच्छता का यह समारोह हमारे पूर्वजों के विलक्षण सोच-समझ को व्यक्त करता है। देश के सभी क्षेत्रों में ये पर्व अपने-अपने तरीके से मनाए जाते हैं, पर उत्तर भारत में इनका आयोजन खासतौर से ध्यान खींचता है। इसमें शामिल पाँच महत्वपूर्ण पर्वों में सबसे पहले धनतेरस आता है, जो इस साल कल 10 नवंबर को मनाया गया।

माना जाता है कि इस दिन भगवान धन्वंतरि हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान धन्वंतरि का जन्म समुद्र मंथन से हुआ था। धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि हाथ में सोने का अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। धन्वंतरि को प्राकृतिक चिकित्सक माना जाता है। धनतेरस के दिन नए झाडू, बर्तन, सोना चाँदी के आभूषण को खरीदना शुभ माना जाता है। दुनिया के सबसे बड़े सोने के उपभोक्ता देश भारत में इस साल सोने तथा चांदी की खरीदारी सोने की कीमतों में नरमी के साथ उपभोक्ता माँग में सुधार के चलते सकारात्मक रही। बाजार की रौनक को देखते हुए लगता है कि देश में समृद्धि का विस्तार होता जा रहा है।

Friday, November 10, 2023

आपके पास समाधान हों तो बताइए


फ्रांचेस्का ऑर्सीनी की किताब हिंदी का लोकवृत्त’ को पढ़ते हुए मैंने 2012 में लिखे अपने एक पुराने लेख को फिर से देखा। उसके एक अंश को मैं थोड़ा बदल कर फिर से अपने ब्लॉग में प्रकाशित कर रहा हूँ।

हमारा सामुदायिक जीवन क्या है? सोशल नेटवर्किंग में हम काफी आगे चले गए हैं। पर सारी नेटवर्किंग अपने व्यावसायिक हितों और स्वार्थों के लिए है। शाम को दारू-पार्टी पर बैठने और गॉसिप करने को हम सोशल होना मानते हैं। जो इसमें शामिल नहीं है, वह अन-सोशल है। दरअसल सोशल होने का मतलब व्यावहारिक रूप में ऊपर चढ़ने की सीढ़ियाँ तलाशना है। सामाजिक जीवन की गुत्थियों को सुलझाना या सामूहिक एक्शन के बारे में सोचना सोशल नेटवर्किंग का अंग नहीं है। लोग चाहें तो अपने आसपास की खराबियों को आपसी सहयोग से दूर कर सकते हैं। कई जगह करते हैं और ज्यादातर जगहों पर नहीं करते।

ज्यादातर लोग ऐसा क्यों नहीं करते? मुझे लगता है कि हम वैचारिक कर्म से भागते हैं और खुद को असुरक्षित मानते हुए आत्मकेंद्रित होते चले गए हैं। सोशल मीडिया पर देखें, तो पाएंगे कि ज्यादातर लोग छोटी, चटपटी और मसालेदार बातों को पसंद करते हैं। संज़ीदा बातों को भारी काम मानते हैं। मामूली सी बात को भी समझना नहीं चाहते। उनपर रास-रंग हावी है। उसमें भी खराबी नहीं, पर आप विमर्श से भागते क्यों हैं?

आपने गौर किया होगा नई कॉलोनियों की योजनाओं में जीवन की सारी चीजें मुहैया कराने का वादा होता है। मॉल होते हैं, मेट्रो होती है, ब्यूटी सैलून, जिम और स्पा होते हैं। मल्टीप्लेक्स, वॉटर स्पोर्ट्स होते हैं। जमीन पर अवैध कब्जा करके धर्म स्थल भी खड़े कर दिए जाते हैं, पर इस योजना में लाइब्रेरी नहीं होती। कम्युनिटी सेंटर होते हैं तो वे शादी-बारात के लिए होते हैं, बैठकर विचार करने के लिए नहीं। ऐसे सामुदायिक केंद्र की कल्पना नहीं होती, जो विमर्श का केंद्र बने। छोटा सा ऑडिटोरियम। पढ़ने, विचार करने, सोचने और उसे अपने एक्शन में उतारने को कोई बढ़ावा नहीं।

भौतिक रूप से चौपाल, चौराहों और कॉफी हाउसों की संस्कृति खत्म हो रही है। इस विमर्श की जगह वर्चुअल-विमर्श ने ले ली है। यह वर्चुअल-विमर्श ट्विटर और फेसबुक में पहुँच गया है। यहाँ वह सरलीकरण और जल्दबाज़ी का शिकार है। अक्सर अधकचरे तथ्यों पर अधकचरे निष्कर्ष निकल कर सामने आ रहे हैं। एकाध गंभीर ब्लॉग को छोड़ दें तो नेट का काफी बड़ी संख्या में विमर्श अराजक है। यह ज्यादा बड़े धरातल पर पूरे समाज की है।