आज़ादी के सपने-08
भारत को आज़ादी ऐसे वक्त पर मिली, जब दुनिया दो खेमों में बँटी हुई थी. दोनों गुटों से अलग रहकर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाए रखने की सबसे बड़ी चुनौती थी. यह चुनौती आज भी है. ज्यादातर बुनियादी नीतियों पर पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की छाप थी, जो 17 वर्ष, यानी सबसे लंबी अवधि तक, विदेशमंत्री रहे.
राजनीतिक-दृष्टि से उनका वामपंथी रुझान था. साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद और फासीवाद के वे विरोधी थे.
उनके आलोचक मानते हैं कि उनकी राजनीतिक-दृष्टि में रूमानियत इतनी ज्यादा थी कि कुछ
मामलों में राष्ट्रीय-हितों की अनदेखी कर गए. किसी भी देश की विदेश-नीति उसके
हितों पर आधारित होती है. भारतीय परिस्थितियाँ और उसके हित गुट-निरपेक्ष रहने में
ही थे. बावजूद इसके नेहरू की नीतियों को लेकर कुछ सवाल हैं.
चीन से दोस्ती
कश्मीर के अंतरराष्ट्रीयकरण और तिब्बत पर चीनी
हमले के समय की उनकी नीतियों को लेकर देश के भीतर भी असहमतियाँ थीं. तत्कालीन
राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और नेहरू जी के बीच के पत्र-व्यवहार से यह बात ज़ाहिर
होती है. उन्होंने चीन को दोस्त बनाए रखने की कोशिश की ताकि उसके साथ संघर्ष को
टाला जा सके, पर वे उसमें सफल नहीं हुए.
तिब्बत की राजधानी ल्हासा में भारत का दूतावास
हुआ करता था. उसका स्तर 1952 में घटाकर कौंसुलर जनरल का कर दिया गया. 1962 की
लड़ाई के बाद वह भी बंद कर दिया गया. कुछ साल पहले भारत ने ल्हासा में अपना दफ्तर
फिर से खोलने की अनुमति माँगी, तो चीन ने इनकार कर दिया.
1959 में भारत ने दलाई लामा को शरण जरूर दी, पर
‘एक-चीन नीति’
यानी तिब्बत पर चीन के अधिकार को मानते रहे. आज भी यह भारत की नीति है. तिब्बत को हम
स्वायत्त-क्षेत्र मानते थे. चीन भी उसे स्वायत्त-क्षेत्र मानता है, पर उसकी
स्वायत्तता की परीक्षा करने का अधिकार हमारे पास नहीं है.
सुरक्षा-परिषद की सदस्यता
पचास के दशक में अमेरिका की ओर से एक अनौपचारिक
प्रस्ताव आया था कि भारत को चीन के स्थान पर संरा सुरक्षा परिषद की स्थायी कुर्सी
दी जा सकती है. नेहरू जी ने उस प्रस्ताव को यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि चीन की
कीमत पर हम सदस्य बनना नहीं चाहेंगे.
उसके कुछ समय पहले ही चीन में कम्युनिस्टों ने सत्ता संभाली थी, जबकि संरा में चीन का प्रतिनिधित्व च्यांग काई-शेक की ताइपेह स्थित कुओमिंतांग सरकार कर रही थी. नेहरू जी ने कम्युनिस्ट चीन को मान्यता भी दी और उसे ही सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने का समर्थन भी किया.