Wednesday, July 5, 2023

रूस-चीन प्रवर्त्तित नई ‘विश्व-व्यवस्था’ के संकेत


भारत की अध्यक्षता में मंगलवार 3 जुलाई को हुआ शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (एससीओ)  का वर्चुअल शिखर सम्मेलन रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की उपस्थिति के कारण सफल रहा. इस सम्मेलन के दौरान रूस और चीन की नई विश्व-व्यवस्था की अवधारणा के संकेत भी मिले, जिसके समांतर भारत भी अपनी विश्व-व्यवस्था की परिकल्पना कर रहा है. इस सम्मेलन के दौरान भारत ने चीन के 'बेल्ट एंड रोड' कार्यक्रम को स्वीकार करने से इंकार भी किया है.  

इस सम्मेलन में इन तीनों ने हर प्रकार के आतंकवाद की निंदा की. भारत के पीएम मोदी ने भी इन नेताओं की मौजूदगी में चरमपंथी गतिविधियों को लेकर चिंता जताई. इस सम्मेलन में ईरान ने नए सदस्य के रूप में इस संगठन में प्रवेश किया.

दिल्ली घोषणा

बैठक के बाद नई दिल्ली घोषणा को स्वीकार किया गया. इसके अनुसार सदस्य देश आतंकवादी, अलगाववादी और चरमपंथी संगठनों की एकीकृत सूची बनाने के लिए सामान्य सिद्धांत और दृष्टिकोण विकसित करने का प्रयास करेंगे. इन चरमपंथी संगठनों की गतिविधियां शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों में प्रतिबंधित हैं. सदस्‍य देशों ने सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों के सैन्यीकरण का विरोध किया. इसके अलावा मादक पदार्थों के बढ़ते उत्पादन, तस्करी और दुरुपयोग तथा मादक पदार्थों की तस्करी से प्राप्त धन का आतंकवाद के वित्तपोषण के रूप में इस्‍तेमाल करने के खतरों के बारे में चिंता व्यक्त की गई.

इस बैठक के दौरान पीएम मोदी ने मूल रूप से चरमपंथ, खाद्य संकट और ईंधन संकट पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा, आतंकवाद क्षेत्रीय एवं वैश्विक शांति के लिए प्रमुख ख़तरा बना हुआ है. इस चुनौती से निपटने के लिए निर्णायक कार्रवाई आवश्यक है. कुछ देश, क्रॉस बॉर्डर टेररिज्म को अपनी नीतियों के अंग के रूप में इस्तेमाल करते हैं. वे आतंकवादियों को पनाह देते हैं. एससीओ को ऐसे देशों की निंदा करने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए. ऐसे गंभीर विषय पर दोहरे मापदंड के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए.

प्रधानमंत्री ने एससीओ की भाषा सम्बन्धी बाधाओं को हटाने के लिए भारत के एआई आधारित लैंग्वेज प्लेटफॉर्म 'भाषिणी' को सभी के साथ साझा करने की पेशकश भी की. समावेशी प्रगति के लिए डिजिटल टेक्नोलॉजी का यह एक उदाहरण बन सकता है. किसी भी क्षेत्र की प्रगति के लिए मज़बूत कनेक्टिविटी का होना बहुत ही आवश्यक है. बेहतर कनेक्टिविटी आपसी व्यापार ही नहीं, आपसी विश्वास भी बढ़ाती है. ईरान की एससीओ सदस्यता के बाद हम चाबहार पोर्ट के बेहतर उपयोग के लिए काम कर सकते हैं. मध्य एशिया के चारों ओर से भूमि से घिरे देशों के लिए इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर इंडियन ओशन तक पहुँचने का, एक सुरक्षित और सुगम रास्ता बन सकता है. हमें इनकी पूरी संभावनाएं को फायदा उठाना चाहिए.

Tuesday, July 4, 2023

खालिस्तानी आंदोलन के पीछे है पाकिस्तान

रविवार 2 जुलाई को अमेरिका में सैन फ्रांसिस्को स्थित भारतीय कौंसुलेट में कुछ खालिस्तान समर्थकों ने आग लगाने की कोशिश की। उधर कनाडा में भारतीय राजनयिकों के खिलाफ खालिस्तान-समर्थकों के पोस्टर लगे हैं। ऐसीी घटनाओं को लेकर भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूके जैसे मित्र देशों से अनुरोध किया है कि वे खालिस्तानी तत्वों को स्पेस न दें। हाल में ऐसी घटनाएं बढ़ी हैं। हाल में कुछ खालिस्तानी नेताओं की  रहस्यमय मौत भी हुई है। शायद उनके बीच आपसी झगड़े भी हैं।

बहुत से लोगों को लगता है कि खालिस्तानी आंदोलन भारत के भीतर से निकला है और उसका असर उन देशों में भी है, जहाँ भारतीय रहते हैं। गहराई से देखने पर आप पाएंगे कि यह आंदोलन पाकिस्तानी सत्ता-प्रतिष्ठान की देन है और वहाँ से ही इस आंदोलन को प्राणवायु मिल रही है। इस आंदोलन के प्रणेताओं ने अपने खालिस्तान का जो नक्शा बनाया है, उसमें लाहौर और ननकाना साहिब जैसी जगहें शामिल नहीं हैं, जो पाकिस्तान में हैं।

गत 6 मई को पाकिस्तान से खबर आई कि आतंकी संगठन खालिस्तान कमांडो फोर्स के मुखिया परमजीत सिंह पंजवड़ की लाहौर में हत्या कर दी गई। उसे जौहर कस्बे की सनफ्लावर सोसाइटी में घुसकर गोलियां मारी गईं। पंजवड़ 1990 से पाकिस्तान में शरण लेकर बैठा था और उसे पाकिस्तानी सेना ने सुरक्षा भी दे रखी थी। बताते हैं कि सुबह 6 बजे बाइक पर आए दो लोगों ने इस काम को अंजाम दिया और फिर वे फरार हो गए।

यह खबर दो वजह से महत्वपूर्ण है। पंजवाड़ का नाम आतंकवादियों की उस सूची में शामिल है, जिनकी भारत को तलाश है। दाऊद इब्राहीम की तरह वह भी पाकिस्तान में रह रहा था, पर वहाँ की सरकार ने कभी नहीं माना कि वह पाकिस्तान में है। भारत सरकार ने नवंबर, 2011 में 50 ऐसे लोगों की सूची पाकिस्तान को सौंपी थी, जिनकी तलाश है। गृह मंत्रालय ने 2020 में जिन नौ आतंकियों की लिस्ट जारी की थी, उनमें पंजवड़ का नाम आठवें नंबर पर था।

Monday, July 3, 2023

राजनीति बनाम सीबीआई यानी ‘डबल-धार’ की तलवार

महाराष्ट्र में एनसीपी की बगावत के पीछे एक बड़ा कारण यह बताया जाता है कि उसके कुछ नेता ईडी की जाँच के दायरे में हैं और उससे बचने के लिए वे बीजेपी की शरण में आए हैं। यह बात आंशिक रूप से ही सही होगी, कारण दूसरे भी होंगे, पर इस बात को छिपाना मुश्किल है कि बड़ी संख्या में राजनीतिक नेताओं पर गैर-कानूनी तरीके से कमाई के आरोप हैं। यह बात राजनीतिक-प्रक्रिया को प्रभावित करती है। तमिलनाडु में बिजली मंत्री वी सेंथिल बालाजी की गिरफ्तारी के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और सीबीआई की भूमिका को लेकर बहस एकबार फिर से शुरू हुई है। दूसरी तरफ तमिलनाडु सरकार ने राज्य में सीबीआई को मिली सामान्य अनुमति (जनरल कंसेंट) वापस लेकर जवाबी कार्रवाई भी की है। साथ ही  तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा, हम हर तरह की राजनीति करने में समर्थ हैं। यह कोरी धमकी नहीं, चेतावनी है। डीएमके के आदमी को गलत तरीके से परेशान मत करो। हम जवाबी कार्रवाई करेंगे, तो आप बर्दाश्त नहीं कर पाओगे। 

स्टालिन की इस चेतावनी में राजनीति के कुछ सूत्र छिपे हैं। सरकारी संस्थाएं और व्यवस्थाएं कुछ उद्देश्यों और लक्ष्यों को लेकर बनी हैं। उनके सदुपयोग और दुरुपयोग पर पूरी व्यवस्था निर्भर करती है। स्टालिन की बात के जवाब में बीजेपी का कहना है कि हम भ्रष्टाचारियों का पर्दाफाश करेंगे। यह उसका राजनीतिक नारा है, रणनीति और राजनीति भी। उसके पास आयकर विभाग, सीबीआई और ईडी तीन एजेंसियाँ हैं, जो उस नश्तर की तरह हैं, जो इलाज करता है और कत्ल भी। उच्चतम न्यायालय ने धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को मिले अधिकार को उचित ठहराकर सरकार के हाथ और मजबूत कर दिए हैं। आर्थिक अपराधों की बारीकियों को समझना आसान नहीं है। आम आदमी पार्टी जिन नेताओं को कट्टरपंथी ईमानदार बताती है, उनका महीनों से कैद में रहना इसीलिए आम आदमी को समझ में नहीं आता। क्या वास्तव में किसी ईमानदार व्यक्ति को इस तरह से सताने की इजाजत हमारी व्यवस्था देती है?  

द्रमुक के नेता और बिजली मंत्री बालाजी को ‘नौकरी के बदले नकदी’ घोटाले से जुड़े धन-शोधन के एक मामले में 14 जून को ईडी ने गिरफ्तार किया। वे वर्तमान डीएमके सरकार के पहले मंत्री हैं, जिन्हें गिरफ्तार किया गया है। हालांकि मुख्यमंत्री इसे बदले की कार्रवाई बता रहे हैं, पर ईडी का कहना है कि उसके पास मंत्री के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं। गिरफ्तारी के बावजूद मुख्यमंत्री ने उन्हें मंत्रिपद पर बरकरार रखा है। स्टालिन का कहना है कि बीजेपी अपने उन विरोधियों को डराने के लिए आयकर विभाग, सीबीआई और ईडी जैसी जांच-एजेंसियों का इस्तेमाल करती है, जिनका वह राजनीतिक मुकाबला नहीं कर सकती। स्टालिन के अनुसार ईडी ने बीजेपी के सरकार में आने से पहले 10 साल में 112 छापे मारे थे, जबकि 2014 में बीजेपी के केंद्र में आने के बाद लगभग 3000 छापे मारे गए हैं।

Sunday, July 2, 2023

समान नागरिक संहिता के किंतु-परंतु


संसद का मॉनसून सत्र 20 जुलाई से 11 अगस्त के बीच होने की घोषणा हो गई है। कहा जा रहा है कि इस सत्र के दौरान समान नागरिक संहिता से जुड़ा विधेयक भी पेश हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में कहा है कि कुछ राजनीतिक दल समान नागरिक संहिता के नाम पर मुसलमानों को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी तरफ उनके विरोधी नेताओं का कहना है कि यह मुद्दा मुसलमानों को टारगेट करने के लिए ही उठाया गया है। सच यह है कि इसका असर केवल मुसलमानों पर ही नहीं पड़ेगा। देश के सभी धर्मावलंबी और जनजातीय समुदाय इससे प्रभावित होंगे। फिर भी पर्सनल लॉ की चर्चा जब भी छिड़ती है तब हिंदू-मुसलमान पर चली जाती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इन दो समुदायों की संख्या बड़ी है और वोट के सहारे सत्ता हासिल करने में इन दो में से किसी एक का समर्थन हासिल करना उपयोगी होता है। इसे ध्रुवीकरण कहते हैं। इसकी वजह से पिछले 75 वर्ष में राजनीतिक वोट-बैंक की अवधारणा विकसित हुई है।

सब पर समान रूप से लागू होने वाला कानून अच्छा विचार है, पर वह तभी संभव है, जब समाज अपने भीतर सुधार के लिए तैयार हो। पता नहीं वह दिन कब आएगा। हिंदू कोड बिल ने सामाजिक की शुरुआत की, पर उससे ही हिंदू-राजनीतिको बल मिला। वह सुधार भी आसानी से नहीं हुआ। हिंदू-कोड बिल समिति 1941 में गठित की गई थी, पर कानून बनाने में14 साल लगे। वह भी एक कानून से नहीं तीन कानूनों, हिंदू-विवाह, उत्तराधिकार और दत्तक-ग्रहण, के मार्फत। कांग्रेस के भीतर प्रतिरोध हुआ। सरदार पटेल, पट्टाभि सीतारमैया, एमए अयंगार, मदन मोहन मालवीय और कैलाश नाथ काटजू जैसे नेताओं की राय अलग थी। इसी कानून को लेकर 1951 में भीमराव आंबेडकर ने कानून मंत्री पद से इस्तीफा दिया। डॉ राजेंद्र प्रसाद ने कहा, मैं इस कानून पर दस्तखत नहीं करूँगा। बिल रोका गया और बाद में नए कानून बने। फिर भी 1955 के कानून में बेटियों को संपत्ति का अधिकार नहीं मिला। यह अधिकार 2005 में मिला।

संविधान सभा में अनुच्छेद 44 पर बहस को भी पढ़ना चाहिए। अनुच्छेद 44 में शब्द यूनिफॉर्म का इस्तेमाल हुआ है, कॉमन का नहीं। इसका मतलब है समझने की जरूरत भी है। पचास के दशक की बहस के बीच श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने (तब जनसंघ का गठन नहीं हुआ था और श्यामा प्रसाद की राजनीति दूसरी थी) कहा कि समरूप (यूनिफॉर्म) नागरिक-संहिता बनाई जाए। बहरहाल हिंदू-कोड बिल आने के बाद कहा गया कि हिंदू-समाज परिवर्तन के लिए तैयार है, मुस्लिम-समाज नहीं। इस दौरान पाकिस्तान में पर्सनल लॉ में सुधार हुआ। इन सब बातों के कारण मुस्लिम-तुष्टीकरणएक राजनीतिक-अवधारणा बनकर उभरी, जिसने इस विचार को पनपने का मौका दिया। हमारा लोकतंत्र इतना प्रौढ़ नहीं है कि सामान्य वोटर इन बारीकियों को पढ़ सके। पर यह मानना भी ठीक नहीं कि संविधान निर्माताओं ने जिस समझदारी के साथ देश पर समान नागरिक संहिता लागू नहीं की, उसे देखते हुए यह मामला हमेशा के लिए जस का तस रह पाएगा। सवाल है कि वह समय कब आएगा, जब इसे को उठाया जाएगा? पर असली चुनौती उद्देश्य की नहीं, इरादों की है। साथ ही ऐसा कानून बनाने की, जिसे सभी समुदाय स्वीकार करें।

Wednesday, June 28, 2023

प्राइवेट-सेना की बगावत से स्तब्ध रूसी रणनीतिकार


यूक्रेन में लड़ रही रूसी सेनाओं के अभियान को पिछले शुक्रवार और शनिवार को अचानक उस समय धक्का लगा, जब उसका साथ दे रही वागनर  ग्रुप की प्राइवेट सेना ने बगावत कर दी. आग को हवा देने का काम किया राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की इस घोषणा ने कि वागनर ग्रुप के प्रमुख येवगेनी प्रिगोज़िन के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की जाएगी.

हालांकि बेलारूस के राष्ट्रपति के हस्तक्षेप से बगावत थम गई है, पर उससे जुड़े सवाल सिर उठाएंगे. रूसी सेना यूक्रेन में लंबी लड़ाई की रणनीति पर चल रही थी, ताकि पश्चिमी देश थककर हार मान लें, पर उसकी रणनीति विफल साबित हो रही है. उल्टे पिछले कुछ महीनों में यूक्रेन ने अपनी पकड़ बना ली है और रूसी सेना थकती नज़र आ रही है.

प्रिगोज़िन के साथ डील

बगावती प्राइवेट-सेना एक डील के तहत ही पीछे हटी है. रूसी सरकार ने प्रिगोज़िन को बेलारूस तक जाने के लिए सुरक्षित रास्ता देने की घोषणा की है. उनके सैनिकों को किसी भी प्रकार की सजा नहीं दी जाएगी, और उन्हें रूसी सेना के साथ एक कांट्रैक्ट पर दस्तखत करने का मौका दिया जाएगा.

सवाल है कि वागनर के सैनिक अब युद्धस्थल पर जाएंगे, तो क्या उनपर पूरा  भरोसा होगा? यदि उन्हें हाशिए पर डाला गया, तो करीब तीस से पचास हजार के बीच हार्डकोर लड़ाकों की कमी कैसे पूरी की जाएगी? एक अनुमान है कि अब पुतिन अपने रक्षामंत्री सर्गेई शोइगू का पत्ता भी साफ करेंगे, जो पिछले एक दशक से उनके विश्वस्त रहे हैं. इससे पूरी सेना की व्यवस्था गड़बड़ हो जाएगी.