पाकिस्तानी राजनीति में इमरान खान का जितनी तेजी से उभार हुआ था, अब उतनी ही तेजी से पराभव होता दिखाई पड़ रहा है. उनकी पार्टी के वफादार सहयोगी एक-एक करके साथ छोड़ रहे हैं. कयास हैं कि उन्हें जेल में डाला जाएगा, देश-निकाला हो सकता है, उनकी पार्टी को बैन किया जा सकता है वगैरह.
पाकिस्तान में कुछ भी हो सकता है. ऊपर जो बातें
गिनाई हैं, ऐसा अतीत में कई बार हो चुका है. पहले भी सेना ने ऐसा किया था और इस
वक्त इमरान के खिलाफ कार्रवाई भी सेना ही कर रही है. परीक्षा पाकिस्तानी नागरिकों
की है. क्या वे यह सब अब भी होने देंगे?
कुल मिलाकर यह लोकतंत्र की पराजय है. इमरान खान
ने सेना का सहारा लेकर प्रतिस्पर्धी राजनीतिक दलों को पीटा, अब वे खुद उसी लाठी से
मार खा रहे हैं. पर उन्होंने अपनी इस गलती को कभी नहीं माना.
ब्रिटिश पत्रिका ‘इकोनॉमिस्ट’ ने लिखा है कि इमरान
को पिछले साल अपदस्थ करने के बजाय, लँगड़ाते हुए ही चलने दिया जाता, तो अगले चुनाव
में जनता उसे रद्द कर देती. लोकतंत्र में खराब सरकारों को जनता खारिज करती है. इसकी
नज़ीर बनती है और आने वाले वक्त की सरकारें डरती हैं.
सेना का
हस्तक्षेप
जनरलों ने किसी भी सरकार को पूरे पाँच साल काम करने नहीं दिया. पिछले साल इमरान को हटाने के पीछे भी जनरल ही थे, जिन्होंने एक विफल राजनेता को सफल बनने का मौका दिया. इमरान ने साजिशों की कहानियाँ गढ़ लीं, और उनके समर्थकों की तादाद बढ़ती चली गई.