अमेरिकी संसद की प्रतिनिधि सभा यानी हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव
ने सरकार की ऋण-सीमा बढ़ाने वाले विधेयक को स्पष्ट
बहुमत से पारित कर
दिया है. विधेयक के समर्थन में 314
और विरोध में 117
मत पड़े. दोनों ही पक्षों की तरफ़ से विरोध में मतदान हुआ है.
विधेयक के समर्थन में 165
डेमोक्रेट (राष्ट्रपति जो बाइडेन की पार्टी) और 149
रिपब्लिकन सदस्यों ने मतदान किया है. इससे अमेरिकी सरकार के क़र्ज़ संकट का समाधान
हो सकता है और सरकार के डिफॉल्टर होने का ख़तरा टल सकता है. सरकार को डिफॉल्ट होने
से बचाने के लिए अब सोमवार से पहले इस विधेयक को सीनेट में पारित कराना अनिवार्य
होगा.
रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टियों के बीच इस समझौते
के कारण व्यवस्था के बिखर जाने का खतरा टल जरूर गया है, पर देश का आर्थिक
संकट बरकरार है. उधर रिपब्लिकन
पार्टी को इस बात का संतोष है कि राष्ट्रपति जो बाइडन से उसने कुछ सरकारी खर्च कम
करवा लिए हैं. अनुमान है कि अगले एक दशक में सरकारी खर्चों में 1.3 ट्रिलियन डॉलर
की कटौती होगी. ये कटौतियाँ 2024 और 2025 से लागू होंगी.
संसद की प्रतिनिधि सभा में रिपब्लिकन पार्टी का
बहुमत है. जबकि, सीनेट में डेमोक्रेटिक पार्टी का बहुमत
है. ऐसे में इस बिल का प्रतिनिधि सभा में पास होना महत्वपूर्ण है. इस बिल को पारित
कराने में दोनों पार्टियों के बीच समझौता कराने में अहम भूमिका निभाने वाले
रिपब्लिकन पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता केविन मैकार्थी ने इसे ऐतिहासिक कहा है.
वर्चुअली होगा एससीओ शिखर सम्मेलन
दूसरी बड़ी अंतरराष्ट्रीय खबर यह है कि जुलाई
के महीने में भारत में होने वाला शंघाई सहयोग संगठन का शिखर सम्मेलन अब वर्चुअल होगा. केंद्र सरकार
ने मंगलवार को एलान किया कि 4 जुलाई को दिल्ली में प्रस्तावित एससीओ की बैठक अब
वर्चुअली आयोजित होगी. इस साल एससीओ की अध्यक्षता भारत के पास है, जिसकी वजह से ये बैठक दिल्ली में आयोजित होनी थी.
इस बैठक में शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों
के राष्ट्राध्यक्षों को हिस्सा लेना था. इनमें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग,
पाकिस्तानी पीएम शाहबाज़ शरीफ़ और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन
जैसे नेता शामिल होते.
केंद्र सरकार इस बैठक को आयोजित करने के लिए
पिछले कई महीनों से तैयारी भी कर रही थी. इन नेताओं को भारत आने का न्यौता भी भेजा
गया था. मंगलवार को सरकार ने एकाएक अपना फ़ैसला
बदल दिया. दो-तीन बातें हवा में हैं. एक, दिल्ली में सम्मेलन की तैयारी पूरी
नहीं है. दूसरे चीन, पाकिस्तान और रूस के राष्ट्राध्यक्षों ने अभी तक सम्मेलन में
आने की पुष्टि नहीं की है. संभवतः रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन-युद्ध
के कारण आने की स्थिति में नहीं हैं.