Wednesday, May 24, 2023

नया संसद भवन, विरोधी-एकता और उसके छिद्र


राष्ट्रीय स्तर पर देश के विरोधी दलों की एकता के नए कारण जुड़ते जा रहे हैं। दिल्ली की प्रशासनिक व्यवस्था के लिए जारी केंद्र सरकार के अध्यादेश का विरोध करने के लिए विरोधी एकता के लिए आमराय बन ही रही थी कि कांग्रेस समेत 19 पार्टियों ने संयुक्त बयान जारी कर नए संसद-भवन के 28 मई को होने वाले उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने की घोषणा की है।

28 मई को दोपहर 12 बजे पीएम मोदी नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। इस पर कांग्रेस नेताओं और कई अन्य विपक्षी नेताओं का मानना है कि पीएम के बजाय राष्ट्रपति को उद्घाटन करना चाहिए। कांग्रेस का कहना है कि नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति के हाथों ही होना चाहिए। मुर्मू द्वारा नए संसद भवन का उद्घाटन लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक मर्यादा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता का प्रतीक होगा। इस बीच सूत्रों ने मंगलवार को कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ उद्घाटन के अवसर पर बधाई संदेश जारी कर सकते हैं।

19 पार्टियों ने अपने संयुक्त बयान में कहा है, "राष्ट्रपति मुर्मू को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए, नए संसद भवन का उद्घाटन करने का प्रधानमंत्री मोदी का निर्णय न केवल एक गंभीर अपमान है, बल्कि हमारे लोकतंत्र पर सीधा हमला है, जो इसके अनुरूप प्रतिक्रिया की मांग करता है।" हाल के कुछ महीनों में विरोधी दलों की एकता से जुड़ने वाले दलों की संख्या बढ़ी जरूर है, पर इतनी नहीं बढ़ी है कि उसे किसी निर्णायक स्तर की एकता माना जाए। इस एकता में जो सबसे महत्वपूर्ण नाम उभर कर आया है, वह तृणमूल कांग्रेस का है, जो पिछले कुछ वर्षों में इस एकता के साथ लुका-छिपी खेल रही थी।

श्रीनगर जी-20 ने भारत-विरोधी प्रचार की हवा निकाली


श्रीनगर में जी-20 के तीन दिन के कार्यक्रम के आगाज़ के साथ पाकिस्तानी और चीनी प्रचार की हवा ही नहीं निकली है, बल्कि कश्मीर घाटी के निवासियों का आत्मविश्वास भी वापस लौटा है. इस दौरान यह भी साबित हुआ है कि पाकिस्तान यहाँ शांति-व्यवस्था की वापसी नहीं चाहता.

श्रीनगर सम्‍मेलन को विफल साबित करने और भारत की प्रतिष्ठा को कलंकित करने के इरादे से पाकिस्तान के विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो गुलाम कश्मीर के तीन दिन के दौरे पर जा पहुँचे हैं.

जिस वक्त श्रीनगर में विदेशी मेहमान आए हुए हैं, बिलावल साहब पीओके में भारत-विरोधी जहर बो रहे हैं. तीन दिन के इस कार्यक्रम के लिए जबर्दस्त व्यवस्था की गई है, क्योंकि इसे विफल साबित करने वालों के इरादों पर भी पानी फेरना है.

Tuesday, May 23, 2023

विरोधी-एकता की पहली परीक्षा: दिल्ली-अध्यादेश को कानून बनने से क्या रोक पाएंगे विरोधी दल?


कर्नाटक में बीजेपी को परास्त करने के बाद कांग्रेस पार्टी और दूसरे विरोधी दल भविष्य की रणनीति बना रहे हैं। इस सिलसिले में मुलाकातों का सिलसिला चल रहा है। कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि शीघ्र ही बड़ी संख्या में गैर-बीजेपी दल इस विषय पर विमर्श के लिए एकसाथ मिलकर बैठेंगे। यह बात सोमवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से मुलाकात के बाद कही गई।

कांग्रेस ने इस बात का संकेत भी किया है कि दिल्ली के प्रशासनिक नियंत्रण के लिए लाए गए अध्यादेश के स्थान पर जब संसद में विधेयक पेश होगा, तब पार्टी की दृष्टिकोण क्या होगा, इस विषय पर भी विरोधी दलों के नेताओं से बातचीत की जाएगी। अलबत्ता उसकी तरफ से यह भी कहा गया कि पार्टी ने अभी तक इस विषय पर कोई फैसला नहीं किया है। पार्टी के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने सोमवार को इस आशय का ट्वीट किया। साथ ही बैठक के बाद उन्होंने संवाददाताओं को बताया कि इस सिलसिले में विरोधी दलों के नेताओं की बैठक के स्थान और तारीख की घोषणा एक-दो दिन में कर दी जाएगी।

नीतीश कुमार चाहते हैं कि यह बैठक पटना में हो, पर कांग्रेस के सूत्रों ने कहा कि दूसरे सभी नेताओं की सुविधा को देखते हुए फैसला किया जाएगा। कुछ नेता विदेश-यात्रा पर जाने वाले हैं। मसलन तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन सिंगापुर और जापान की नौ दिन की यात्रा पर जा रहे हैं। सोनिया गांधी भी विदेश जा रही हैं। स्टैनफर्ड विवि के एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए राहुल गांधी भी 28 मई को अमेरिका जा रहे हैं।

नीतीश कुमार ने कांग्रेस के नेताओं से मुलाकात करने के एक दिन पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की थी। उन्होंने अध्यादेश प्रकरण पर केजरीवाल का समर्थन किया था। नीतीश कुमार ने इस बात पर जोर दिया था कि सभी दलों को एकसाथ मिलकर संविधान के बदलने की केंद्र सरकार की कोशिश का विरोध करना चाहिए। नीतीश के साथ जेडीयू के अध्यक्ष ललन सिंह भी थे। बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इस बैठक में शामिल नहीं हो पाए, क्योंकि वे अस्वस्थ थे।

Sunday, May 21, 2023

जी-7 और बदलती दुनिया में भारत


हिरोशिमा में ग्रुप ऑफ सेवन के शिखर सम्मेलन से एक बात यह निकल कर आ रही है कि चीन-विरोधी मोर्चे को खड़ा करने में अमेरिका और जापान की दिलचस्पी यूरोपियन देशों की तुलना में ज्यादा है. जापान और अमेरिका चाहते हैं कि चीन के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया जाए, जबकि जर्मनी और फ्रांस जैसे यूरोपियन देशों को अब भी लगता है कि चीन के साथ दोस्ताना रिश्ते बनाए रखने में समझदारी है। शुक्रवार को शुरू हुआ तीन दिन का यह सम्मेलन रविवार को समाप्त होगा। इस दौरान दो बातें साफ हो गई हैं। एक, रूस के खिलाफ आर्थिक पाबंदियों को और कड़ा किया जाएगा और दूसरे चीन की घेराबंदी जारी रहेगी। ताइवान की सुरक्षा और हिंद-प्रशांत क्षेत्र सम्मेलन में छाए हुए हैं। हिरोशिमा जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा का गृहनगर भी है। उन्होंने सम्मेलन में भाग लेने कि लिए जिन सात गैर जी-7 देशों को आमंत्रित किया है, उन्हें देखते हुए इस बात को समझा जा सकता है। भारत, ब्राज़ील और इंडोनेशिया जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की उपस्थिति और दक्षिण कोरिया, वियतनाम और ऑस्ट्रेलिया की उपस्थिति इस बात को स्पष्ट करती है। इसके समांतर क्वाड का शिखर सम्मेलन भी हो रहा है, जिसे पिछले हफ्ते ऑस्ट्रेलिया में होना था। जो बाइडेन के कार्यक्रम में बदलाव के कारण वह सम्मेलन स्थगित कर दिया गया था। जो बाइडेन के दिमाग में अमेरिका-नीत विश्व-व्यवस्था है। उसके केंद्र में वे जी-7 को रखना चाहते हैं। बावजूद इसके यूरोपियन यूनियन और अमेरिकी दृष्टिकोणों में एकरूपता नहीं है।

सात देशों का समूह

दुनिया के सात सबसे ताकतवर देशों के नेता हिरोशिमा में एकत्र हुए हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान एटम बम का पहला शिकार बना था हिरोशिमा शहर। संयोग से आज दुनिया फिर से उन्हीं सवालों को लेकर परेशान है, जो दूसरे विश्वयुद्ध के समय उभरे थे। केवल कुछ नाम इधर-उधर हुए हैं। सात देशों के समूह में जापान और जर्मनी शामिल हैं, जो दूसरे विश्वयुद्ध में शत्रु-पक्ष थे। वहीं चीन और रूस जैसे मित्र-पक्ष के देश आज शत्रु-पक्ष माने जा रहे हैं। कुछ साल पहले तक रूस भी इस समूह का सदस्य था, जो अब दूसरे पाले में है। इस अनौपचारिक समूह के सदस्य हैं कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, युनाइटेड किंगडम और अमेरिका। जी-7 की बैठकों में कुछ मित्र देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को बुलाने की भी परंपरा है। इस साल ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कोमोरोस, कुक आइलैंड्स, भारत, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया और वियतनाम को आमंत्रित किया गया है। इन सम्मेलनों में आर्थिक नीतियाँ, सुरक्षा से जुड़े सवालों, ऊर्जा, लैंगिक प्रश्नों से लेकर पर्यावरण तक सभी सवालों पर चर्चा होती है। इस सम्मेलन को लेकर हमारी विदेश-नीति के साथ भी कुछ बड़े सवाल जुड़े हुए हैं।

Friday, May 19, 2023

एससीओ में उभरेगी भारतीय विदेश-नीति की दिशा


एससीओ विदेशमंत्रियों के सम्मेलन के हाशिए पर भारत-पाकिस्तान मसलों के उछलने की वजह से एससीओ की गतिविधियाँ पृष्ठभूमि में चली गईं. रूस-चीन प्रवर्तित इस संगठन का विस्तार यूरेशिया से निकल कर एशिया के दूसरे क्षेत्रों तक हो रहा है. जब दुनिया में महाशक्तियों का टकराव बढ़ रहा है, तब इस संगठन की दशा-दिशा पर निगाहें बनाए रखने की जरूरत है. खासतौर से इसलिए कि इसमें भारत की भी भूमिका है.

इस साल भारत में हो रहे जी-20 और एससीओ के कार्यक्रमों में वैश्विक-राजनीति के अंतर्विरोध उभर रहे हैं और उभरेंगे. ज़ाहिर है कि भारत दो ध्रुवों के बीच अपनी जगह बना रहा है. एससीओ पर चीन और रूस का वर्चस्व है. यहाँ तक कि संगठन का सारा कामकाज रूसी और चीनी भाषा में होता है. जी-20 संगठन नहीं एक ग्रुप है, पर उसकी भूमिका बहुत ज्यादा है.

रूस और चीन मिलकर नई विश्व-व्यवस्था बनाना चाहते हैं. यूक्रेन-युद्ध के बाद से यह प्रक्रिया तेज हुई है. इसमें एससीओ और ब्रिक्स की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. एससीओ के अलावा भारत, रूस और चीन ब्रिक्स के सदस्य भी हैं. ब्राजील हालांकि बीआरआई में शामिल नहीं है, पर वहाँ हाल में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद उसका झुकाव चीन की ओर बढ़ा है.

भारत की दिलचस्पी

रूस और चीन के बीच भी प्रतिस्पर्धा है. रूस के आग्रह पर ही भारत इसका सदस्य बना है. चीन के साथ भारत दूरगामी संतुलन बैठाता है. सवाल है कि भारत इस संगठन में अलग-थलग तो नहीं पड़ेगा? हमारी दिलचस्पी रूस से लगे मध्य एशिया के देशों के साथ कारोबारी और सांस्कृतिक संपर्क बनाने में है.

भारत क्वाड का सदस्य भी है, जो रूस और चीन दोनों को नापसंद है. अमेरिका, जापान और यूरोप के साथ भारत के अच्छे रिश्ते हैं. इन बातों में टकराव है, जिससे भारत बचता है. फिलहाल संधिकाल है और आर्थिक-शक्ति हमारे महत्व को स्थापित करेगी.