करीब दो दशक तक मुसलमानों की नाराजगी का केंद्र बने नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी बीजेपी ने मुसलमानों के साथ जुड़ने की कोशिशें शुरू की हैं। इंडियन एक्सप्रेस की संवाददाता लिज़ मैथ्यूस ने खबर दी है कि पार्टी ने 60 ऐसी लोकसभा सीटों को छाँटा है, जहाँ 2024 के चुनाव में मुसलमान-प्रत्याशियों को आजमाया जा सकता है। ऐसी खबरें काफी पहले से हवा में हैं कि बीजेपी ने पसमांदा मुसलमानों को आकर्षित करने का फैसला किया है। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक केवल पसमांदा ही नहीं मुसलमानों के कुछ दूसरे वर्गों को पार्टी ने अपने साथ जोड़ने का प्रयास शुरू किया है। पार्टी फिलहाल इसके सहारे बड़ी संख्या में वोट पाने या सफलता पाने की उम्मीद नहीं कर रही है, बल्कि यह मुसलमानों के बीच भरोसा पैदा करने और अपने हमदर्दों को तैयार करने का प्रयास है।
नरेंद्र मोदी ने हाल में दिल्ली में हुई
राष्ट्रीय कार्यकारिणी में कहा कि पार्टी के नेताओं को मुसलमानों के प्रति अभद्र
टिप्पणी करने से बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश में कई समुदाय भाजपा को वोट नहीं
देते हैं, लेकिन इसके बाद भी उन्हें (भाजपा कार्यकर्ताओं
को) उनके प्रति नफरत नहीं दिखानी चाहिए, बल्कि बेहतर
तालमेल स्थापित कर बेहतर व्यवहार बनाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने मुसलमानों में
पसमांदा और बोहरा समुदाय के लोगों के ज्यादा करीब जाने की बात भी कही।
पर्यवेक्षक मानते हैं कि बीजेपी अब स्थायी ताकत
के रूप में उभर रही है। उसका प्रयास अब अपने सामाजिक आधार को बढ़ाने का है। इसके
पहले प्रधानमंत्री ने हैदराबाद कार्यकारिणी में भी कुछ इसी तरह की बात कही थी। यह
सवाल अपनी जगह है कि नरेंद्र मोदी को इस तरह का बयान क्यों देना पड़ा, और क्या उनके इन बयानों के बाद मुसलमानों के प्रति भाजपा नेताओं के
नफरती बयानों में कमी आएगी?
मुसलमानों से सहानुभूति पूर्ण व्यवहार की इस नसीहत के पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि हिंदू समाज हजारों साल से गुलाम रहा है, अब उसमें जागृति आ रही है। इस वजह से कभी-कभी हिंदू समुदाय की ओर से आक्रामक व्यवहार दिखाई पड़ता है। उन्होंने इसे ठीक तो नहीं बताया, लेकिन परोक्ष रूप से इस बात का समर्थन किया कि हिंदू समुदाय का यह आक्रोश इतिहास को देखते हुए सही है। कुछ लोग इन दोनों बातों को एक-दूसरे के विपरीत मान रहे हैं।