देस-परदेश
भारत दुनिया के उन गिने-चुने देशों में शामिल
है, जहाँ सोवियत-व्यवस्था को तारीफ की निगाहों से देखा गया. भारत की तमाम देशों से
मैत्री रही. शीतयुद्ध के दौरान गुट-निरपेक्ष आंदोलन में भी भारत की भूमिका रही. देश
की जनता ने वास्तव में सोवियत संघ को मित्र-देश माना. आज के रूस को भी हम सोवियत
संघ का वारिस मानते हैं.
यूक्रेन पर हमले की भारत ने निंदा नहीं की. संरा
राष्ट्र सुरक्षा परिषद या महासभा में लाए गए ज्यादातर रूस-विरोधी प्रस्तावों पर
मतदान के समय भारतीय प्रतिनिधि अनुपस्थित रहे. जरूरत पड़ी भी तो रूस की आलोचना में
बहुत नरम भाषा की हमने इस्तेमाल किया.
शंघाई सहयोग संगठन के समरकंद में हुए शिखर
सम्मेलन में नरेंद्र मोदी व्लादिमीर पुतिन से सिर्फ इतना कहा कि आज युद्धों का
ज़माना नहीं है, तो पश्चिमी मीडिया उस बयान को ले दौड़ा. भारत-रूस मैत्री के
शानदार इतिहास के बावजूद रिश्तों में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है और परिस्थितियाँ
बता रही हैं कि दोनों की निकटता का स्तर वह नहीं रहेगा, जो सत्तर के दशक में था.
व्यावहारिक धरातल
सच यह है कि आज भारत न तो रूस का उतना गहरा
मित्र है, जितना कभी होता था. पर वह उतना गहरा शत्रु कभी नहीं बन पाएगा, जितनी
पश्चिम को उम्मीद हो सकती है. यूक्रेन पर हमले को लेकर भारत ने रूस की सीधी आलोचना
नहीं की, पर भारत मानता है कि रूस के इस ‘फौजी ऑपरेशन’ ने
दुनिया में गफलत पैदा की है. विदेशमंत्री एस जयशंकर कई बार कह चुके हैं कि आम
नागरिकों की जान लेना भारत को किसी भी तरह स्वीकार नहीं है.
भारत और रूस के रिश्तों के पीछे एक बड़ा कारण
रक्षा-तकनीक है. भारतीय सेनाओं के पास जो उपकरण हैं, उनमें सबसे ज्यादा रूस से
प्राप्त हुए हैं. विदेशमंत्री एस जयशंकर ने गत 10 अक्तूबर को ऑस्ट्रेलिया में एक
प्रेस-वार्ता के दौरान कहा कि हमारे पास रूसी सैनिक साजो-सामान होने की वजह है
पश्चिमी देशों की नीति. पश्चिमी देशों ने हमें रूस की ओर धकेला. पश्चिमी देशों ने
दक्षिण एशिया में एक सैनिक तानाशाही को सहयोगी बनाया था. दशकों तक भारत को कोई भी
पश्चिमी देश हथियार नहीं देता था.
रक्षा-तकनीक के अलावा कश्मीर के मामले में महत्वपूर्ण मौकों पर रूस ने संरा सुरक्षा परिषद में ऐसे प्रस्तावों को वीटो किया, जो भारत के खिलाफ जाते थे. कश्मीर के मसले पर पश्चिमी देशों के मुकाबले रूस का रुख भारत के पक्ष में था. यह बात मैत्री को दृढ़ करती चली गई. फिर अगस्त,1971 में हुई भारत-सोवियत संधि ने इस मैत्री को और दृढ़ किया.