बुधवार की
रात एकनाथ शिंदे की प्रेस कांफ्रेंस टलती चली गई। यह भी पता नहीं लगा कि उनकी बैठक
में क्या तय हुआ। अब आज दिन में कुछ बातें साफ होंगी। गुवाहाटी में 34 बागी विधायक
मौजूद हैं। इसका इतना मतलब है कि शिवसेना विधायक दल में उद्धव ठाकरे अल्पमत में
हैं। ऐसा कैसे सम्भव है? क्या
यह सिर्फ शिंदे और बीजेपी का खेल है? कल रात शरद पवार ने कहीं कहा कि राज्य की
इंटेलिजेंस कैसी है कि विधायकों के भागने की जानकारी तक नहीं हो पाई। दिन के अपने
टीवी प्रसारण में उद्धव ठाकरे ने कहा कि मैं इस्तीफा देने को तैयार हूँ। रात में
खबर आई कि शरद पवार ने उनसे कहा कि इस्तीफा देने की जरूरत है। शायद वे विधानसभा
में शक्ति परीक्षण के लिए तैयार हैं। उधर ठाकरे में सरकारी भवन वर्षा छोड़कर निजी
भवन मातोश्री में सामान पहुँचा दिया है। पर वे एमवीए के साथ हैं। और यह भी स्पष्ट
है कि वे काफी हद तक शरद पवार के प्रभाव में हैं।
शिवसेना के
वर्तमान उद्वेलन के पीछे चार कारण नजर आते हैं। एक, हिन्दुत्व और विचारधारा के
साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी से अलगाव और एनसीपी, कांग्रेस से दोस्ती। दो, ठाकरे
परिवार का वर्चस्व। 2019 में जब सरकार बन रही थी, तब उद्धव ठाकरे ने कोशिश की थी
कि उनके बेटे आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया जाए। तब शरद पवार ने उन्हें
समझाया था।
तीसरा कारण
है बृहन्मुम्बई महानगरपालिका (बीएमसी) का आसन्न चुनाव, जिसमें शिवसेना के
अंतर्विरोध सामने आएंगे। इन तीन कारणों की प्रकृति कमोबेश एक जैसी है। इनके अलावा
जिस कारण का जिक्र एनसीपी, कांग्रेस और उद्धव ठाकरे भी कर रहे हैं, वह है बीजेपी
का ‘ऑपरेशन कमल’। यानी कि बीजेपी ने इस उद्वेलन को हवा दी है। कुछ और
कारण भी हैं, पर इन चार वजहों में से किसी एक को केंद्र में रखकर भी बात करने के
बजाय सभी कारणों पर ध्यान देना चाहिए।
क्रॉसवोटिंग
हाल में महाराष्ट्र के अंतर्विरोध हाल में हुए राज्यसभा और विधान परिषद के
चुनावी नतीजों में व्यक्त हो गए थे। ये अंतर्विरोध केवल शिवसेना से जुड़े हुए ही
नहीं हैं। इनके पीछे एनसीपी और कांग्रेस के भीतर चल रही उमड़-घुमड़ भी जिम्मेदार
है। क्रॉसवोटिंग केवल शिवसेना में नहीं हुई थी। विधान परिषद की कुल 30 में से 10
सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा ने पांच उम्मीदवार उतारे थे जबकि उसके पास संख्या
केवल चार को जिताने लायक ही थी। पाँचों जीते और अब एकनाथ शिंदे की बगावत के अचानक
सामने आने से सबको हैरत हो रही है, पर लगता है कि शिंदे की नाराजगी पहले से चल रही
थी।
इस साल के पाँच राज्यों में हुए चुनावों बाद
महाराष्ट्र के विधायकों के मन में अपने भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे थे। एक तरफ शिवसेना,
राकांपा और कांग्रेस पार्टी के महा विकास अघाड़ी के बीच दरार बढ़ी,
वहीं तीनों पार्टियों के भीतर से खटपट सुनाई पड़ने लगी। सबसे बड़ा असमंजस कांग्रेस
के भीतर था। पार्टी के विधायकों का एक दल अप्रैल के पहले हफ्ते में हाईकमान से
मिलने दिल्ली भी आया था। विधायकों की मुलाकात पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन
खड़गे और महासचिव केसी वेणुगोपाल से ही हुई, जबकि वे सोनिया गांधी या
राहुल गांधी से मिलने आए थे। दिल्ली आए विधायकों ने एक टीवी चैनल से बात करते हुए
कहा 'सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद ही सनसनीखेज खुलासे
होंगे।'
मोदी की तारीफ
गत 10 मार्च को पाँच राज्यों के विधान सभा चुनाव
परिणाम आने के कुछ दिन बाद शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा
सदस्य मजीद मेमन ने एक ट्वीट में लिखा कि पीएम मोदी में कुछ गुण होंगे या उन्होंने
कुछ अच्छे काम किए होंगे, जिसे विपक्षी नेता ढूंढ नहीं पा रहे
हैं। उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय में आई थी, जब नवाब मलिक की गिरफ्तारी को लेकर उनकी पार्टी
और केंद्र सरकार के बीच तलवारें तनी हुईं थीं। मजीद मेमन वाली बात तो आई-गई हो गई,
पर अघाड़ी सरकार के भीतर की कसमसाहट छिप नहीं पाई।
कांग्रेस के नेता दबे-छुपे पंजाब और उत्तर
प्रदेश में पार्टी की दुर्दशा देखकर परेशान हैं और उन्हें लगने लगा है कि यहाँ अब
और रुकना खतरे से खाली नहीं है। उनका विचार है कि 2024 के विधान सभा चुनाव तक
अघाड़ी बना भी रहा, तो वह सफल नहीं होगा। इसीलिए उन्होंने विकल्प की तलाश शुरू कर
दी है।
कांग्रेस के विधायकों का कहना है कि राज्य में
जब अघाड़ी सरकार बनी थी, तब मंत्रियों को जिम्मेदारी दी गई थी कि वे विधायकों की
बातों को सुनें। हरेक मंत्री के साथ तीन-तीन विधायक जोड़े गए थे। यह व्यवस्था हुई
भी होगी, तो हमें पता नहीं। अलबत्ता सरकार बनने के ढाई साल बाद जब एक मंत्री एचके
पाटील ने जब तीन विधायकों के साथ बैठक की, तब इस व्यवस्था की जानकारी शेष विधायकों
को हुई।
विधायकों को कई तरह की शिकायतें हैं, जिन्हें
लेकर उन्होंने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी भी लिखी। दूसरी तरफ शरद पवार
दिल्ली में बीजेपी-विरोधी राष्ट्रीय मोर्चा बनाने की गतिविधियों में जुड़े हैं, पर
इस बीच भाजपा और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के बीच अचानक सम्पर्क बढ़ने से भी अघाड़ी
सरकार के भीतर चिंता बढ़ गई। उसी दौरान नितिन गडकरी ने राज ठाकरे से मुलाकात की। कांग्रेस
के पार्टी 25 विधायक गठबंधन की सरकार से नाराज हैं और उन्होंने सोनिया गांधी को
चिट्ठी लिखी थी।
सब नाराज
उधर केंद्रीय राज्य मंत्री रावसाहेब दानवे ने कहा
कि अघाड़ी के 25 विधायक भाजपा के सम्पर्क में हैं। उन्होंने यह नहीं बताया था कि किस
पार्टी के नेताओं ने सम्पर्क किया है, किन्तु यह संकेत जरूर किया कि ये सभी नेता
सरकार में अपनी उपेक्षा से नाराज हैं। ज्यादातर पर्यवेक्षक मानते हैं कि नाराजगी मुख्यतः
राकांपा से है सरकार के भीतर और बाहर भी शिवसेना और राकांपा हावी हैं।
दूसरी तरफ अघाड़ी गठबंधन में सिर्फ कांग्रेस के नेता ही नाराज नहीं हैं। शिवसेना के पास मुख्यमंत्री पद होने के बावजूद उसके नेता भी नाराज हैं। गत 22 मार्च को शिवसेना के सांसद श्रीरंग बारने ने कहा था कि सबसे ज्यादा फायदा शरद पवार की राकांपा ने उठाया है। नेतृत्व करने के बावजूद शिवसेना को नुकसान उठाना पड़ रहा है। शिवसेना विधायक तानाजी सावंत ने भी ऐसी ही बात कही थी।