Sunday, April 10, 2022

इमरान का गुब्बारा फूटा, अहंकार नहीं टूटा


पाकिस्तान की राष्ट्रीय असेंबली में इमरान खान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव सफल रहने के बाद सोमवार से पाकिस्तानी राजनीति का एक नया अध्याय शुरू होगा, जिसमें संभवतः शहबाज़ शरीफ देश के नए प्रधानमंत्री बनेंगे। सोमवार को असेंबली का एक विशेष सत्र होने वाला है जिसमें नए प्रधानमंत्री का चुनाव किया जाएगा, जो अगले चुनावों तक कार्यभार संभालेंगे। चुनाव समय से पहले नहीं  हुए, तो वे अक्तूबर 2023 तक प्रधानमंत्री बने रह सकते हैं। अगले एक साल और कुछ महीने का समय पाकिस्तान के लिए काफी महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था और विदेश-नीति से जुड़े कुछ बड़े फैसले इस दौरान होंगे। खासतौर से अमेरिका-विरोधी झुकाव में कमी आएगी। उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष से सहायता लेने और एफएटीएफ की ग्रे-लिस्ट से बाहर आने के लिए अमेरिकी मदद की जरूरत है।

पहले प्रधानमंत्री

शनिवार देर रात नेशनल असेंबली में उनकी सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पर हुए मतदान में 174 सदस्यों ने प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया। मतदान से पहले नेशनल असेंबली के अध्यक्ष असद कैसर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। असद कैसर के बाद पीएमएल-एन नेता अयाज़ सादिक ने सत्र की अध्यक्षता की। पाकिस्तान के इतिहास में इमरान देश के पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें अविश्वास-प्रस्ताव के मार्फत हटाया गया है। इसके पहले 2006 में शौकत अजीज और 1989 में बेनजीर भुट्टो के विरुद्ध अविश्वास-प्रस्ताव लाए गए थे, पर उन्हें हटाया नहीं जा सका था।

पिछले दो  हफ्ते के घटनाक्रम में बार-बार इमरान खान के तुरुप क पत्त का जिक्र होता रहा, जिसे कुछ पर्यवेक्षकों ने ट्रंप-कार्ड कहा। सत्ता से चिपके रहने, हार को अस्वीकार करने और भीड़ को उकसाने और भड़काने की अराजक-प्रवृत्ति। उन्होंने संसद में अविश्वास-प्रस्ताव को जिस तरीके से खारिज कराया, उससे इस बात की पुष्टि हुई। उनके समर्थकों ने उसे मास्टर-स्ट्रोक बताया। अपनी ही सरकार का कार्यकाल खत्म होने का जश्न मनाया गया। साथ ही उन 197 सांसदों को देशद्रोही घोषित कर दिया गया, जो उनके खिलाफ खड़े थे। इनमें वे सहयोगी दल भी शामिल थे, जो कुछ दिन पहले तक सरकार के साथ थे। उन्होंने इस बात पर भी विचार नहीं किया कि उनकी अपनी पार्टी के करीब दो दर्जन सदस्य उनसे नाराज क्यों हो गए। ये सब बिके हुए नहीं, असंतुष्ट लोग हैं।

Saturday, April 9, 2022

वैश्विक असमंजस के दौर में भारतीय विदेश-नीति

संरा महासभा में हुए मतदान का परिणाम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पिछले आठ साल में पहली बार कुछ जटिल सवालों का सामना कर रही है। वैश्विक-महामारी से देश बाहर निकलने का प्रयास कर रहा है। पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था को वापस लाने की कोशिशें शुरू हुई हैं। ऐसे में यूक्रेन के युद्ध ने कुछ बुनियादी सवाल खड़े कर दिए हैं। हम किसके साथ हैं
? ‘किसकेसे एक आशय है कि हम रूस के साथ हैं या अमेरिका के? किसी के पक्षधर नहीं हैं, तब हम चाहते क्या हैं? स्वतंत्र विदेश-नीति को चलाए रखने के लिए जिस ताकतवर अर्थव्यवस्था और फौजी ताकत की जरूरत है, अभी वह हमारे पास नहीं है। हमारा प्रतिस्पर्धी दबाव बढ़ा रहा है। हम क्या करें?


गुरुवार 7 अप्रेल को संयुक्त राष्ट्र महासभा के आपात सत्र में हुए मतदान से अनुपस्थित रहकर भारत ने यों तो अपनी तटस्थता का परिचय दिया है, पर प्रकारांतर से यह वोट रूस-विरोधी है। चीन ने इस प्रस्ताव के विरोध में वोट देकर रूस का सीधा समर्थन किया। अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) से रूस को निलंबित कर दिया गया। भारत समेत 58 देश संयुक्त राष्ट्र महासभा के आपात सत्र में हुए मतदान से अनुपस्थित रहे। इनमें दक्षिण एशिया के सभी देश थे, पर ध्यान देन वाली बात यह है कि म्यांमार ने अमेरिकी-प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि उसे चीन के करीब माना जाता है। यूएनएचआरसी से रूस का निलंबन बता रहा है कि वैश्विक मंच पर रूस-चीन गठजोड़ की जमीन कमज़ोर है। निलंबन-प्रस्ताव के समर्थन में 93 वोट पड़े और 24 वोट विरोध में पड़े। अर्थात 92 देशों ने अमेरिका का साथ दिया और चीन सहित 23 देश रूस के साथ खड़े हुए।

हिंद महासागर में चीनी उपस्थिति बढ़ती जा रही है। म्यांमार में सैनिक-शासकों से हमने नरमी बरती, पर फायदा चीन ने उठाया। इसकी एक वजह है कि सैनिक-शासकों के प्रति अमेरिकी रुख कड़ा है। बांग्लादेश के साथ हमारे रिश्ते सुधरे हैं, पर सैनिक साजो-सामान और इंफ्रास्ट्रक्चर में चीन उसका मुख्य-सहयोगी है। अफगानिस्तान में तालिबान का राज कायम होने के बाद वहाँ भी चीन ने पैर पसारे हैं। पाकिस्तान के वर्तमान राजनीतिक-गतिरोध के पीछे जितनी आंतरिक राजनीति की भूमिका है, उतनी ही अमेरिका के बरक्स रूस-चीन गठजोड़ के ताकतवर होने की है।

Sunday, April 3, 2022

पाकिस्तान में एक सितारे का बुझना


इमरान खान का खिलाड़ी-करिअर विजेता के रूप में खत्म हुआ था, पर लगता है कि राजनीति का करिअर पराजय के साथ खत्म होगा। उनका दावा है कि उन्हें हटाने के पीछे अमेरिका की साजिश है। यूक्रेन पर हमले के ठीक पहले उनकी मॉस्को-यात्रा से अमेरिका नाराज है। पर बात इतनी ही नहीं है। वे देश की समस्याओं का सामना नहीं कर पाए। साथ ही सेना का भरोसा खो बैठे, जिसे पाकिस्तान में सत्ता-प्रतिष्ठान कहा जाता है। उन्होंने अपने विरोधियों को कानूनी दाँव-पेचों में फँसाने का काम किया। अब उनके विरोधी एक हो गए हैं। कोई चमत्कार नहीं हुआ, तो पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के भाई शहबाज़ शरीफ प्रधानमंत्री बनेंगे। शरीफ बंधुओं पर भी भ्रष्टाचार के आरोप हैं, पर पाकिस्तान में आरोप किस पर नहीं हैं। फिलहाल देश की व्यवस्था एक बड़ा मोड़ लेगी। इस मोड़ का भारत पर क्या असर होगा, इसपर विचार करने का समय है। अलबत्ता सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा ने अविश्वास-प्रस्ताव पर फैसला होने के एक दिन पहले दो महत्वपूर्ण बातें कहकर विदेश-नीति के मोड़ को स्पष्ट कर दिया है। उन्होंने इस्लामाबाद सिक्योरिटी डायलॉग में कहा है कि यूक्रेन पर रूसी हमला फौरन बंद होना चाहिए। उन्होंने पिछले साल इसी कार्यक्रम में भारत से रिश्ते सुधारने की जो पहल की थी, उसे शनिवार को भी दोहराया है। दोनों बातें महत्वपूर्ण हैं।

आज होगा फैसला

इमरान खान की हार पर संसद की मोहर आज लग जाएगी। उन्होंने इस हार को स्वीकार नहीं किया है और खुद को शहीद साबित करने पर उतारू हैं। नवीनतम दावा है कि उनकी हत्या की साजिश की जा रही है। उन्होंने देश की विदेश-नीति को दाँव पर लगा दिया है। जनता को अमेरिका के खिलाफ भड़का कर उन्होंने पाकिस्तानी सत्ता-प्रतिष्ठान को बुरी तरह झकझोर दिया है। अनाप-शनाप बोल रहे हैं। हालांकि 25 मार्च से संसद का सत्र शुरू हो चुका है, पर इमरान खान के इशारे पर अविश्वास-प्रस्ताव पर विचार लगातार टलता रहा। 23 मार्च को देश में ‘पाकिस्तान-दिवस’ मनाया गया, जिसमें पहली बार 57 इस्लामिक देशों के विदेशमंत्रियों के अलावा चीन के विदेशमंत्री वांग यी भी शामिल हुए थे। उस रोज इमरान खान ने दावा किया कि मेरे पास एक ‘तुरुप का पत्ता’ है, जिससे मेरे विरोधी हैरत में पड़ जाएंगे।

तुरुप का पत्ता

उन्होंने संसदीय-प्रक्रिया को दूसरा मोड़ दे दिया। 27 मार्च को उन्होंने अपने समर्थकों की विशाल रैली आयोजित की, जिसमें दो घंटे का भाषण दिया। उन्होंने दावा किया कि विदेशी ताकतें मुझे हटाना चाहती हैं, जिसका ‘सबूत’ मेरी जेब में है। फिर एक कागज हवा में लहराते हुए कहा कि यह खत है सबूत। उन्होंने उस देश का नाम नहीं बताया था, जहाँ से यह पत्र आया था, पर 31 मार्च के राष्ट्रीय-संदेश में अमेरिका का नाम भी लिया। पाकिस्तान के अमेरिका स्थित राजदूत का वह पत्र था, जिसे राजनयिक भाषा में ‘टेलीग्राम’ कहा जाता है। यह अनौपचारिक सूचना होती है, जिसमें मेजबान देश के राजनेताओं या अधिकारियों से हुई बातों का विवरण राजदूत लिखकर भेजते हैं।

Monday, March 28, 2022

भारत ने झटका, चीनी ‘दोस्ती’ का हाथ


दो साल की तल्ख़ियों, टकरावों और हिंसक घटनाओं के बाद चीन ने भारत की ओर फिर से दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। दोस्ती मतलब फिर से उच्च स्तर पर द्विपक्षीय संवाद का सिलसिला। इसकी पहली झलक 25 मार्च को चीनी विदेशमंत्री वांग यी की अघोषित दिल्ली-यात्रा में देखने को मिली। दिल्ली में उन्हें वैसी गर्मजोशी नहीं मिली, जिसकी उम्मीद लेकर शायद वे आए थे। भारत ने उनसे साफ कहा कि पहले लद्दाख के गतिरोध को दूर करें। इतना ही नहीं वे चाहते थे कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से उनकी मुलाकात हो, जिसे शालीनता से ठुकरा दिया गया। इन दोनों कड़वी बातों से चीन ने क्या निष्कर्ष निकाला, पता नहीं, पर भारत का रुख स्पष्ट हो गया है।

दिल्ली आने के पहले वांग यी पाकिस्तान और अफगानिस्तान भी गए थे। पाकिस्तान में ओआईसी विदेशमंत्रियों के सम्मेलन में उन्होंने कश्मीर को लेकर पाकिस्तानी-दृष्टिकोण की ताईद करके उन्होंने भारत को झटका दिया है। पाकिस्तान ने इस सम्मेलन का इस्तेमाल कश्मीर के सवाल को उठाने के लिए ही किया था। उसमें चीन को शामिल करना भी दूरगामी रणनीति का हिस्सा है। अगस्त 2018 में जब भारत ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किया था, तब से चीन पाकिस्तानी-दृष्टिकोण का खुलकर समर्थन कर रहा है। चीन ने उस मामले को सुरक्षा-परिषद में उठाने की कोशिश भी की थी, जिसमें उसे सफलता नहीं मिली।

कश्मीर का मसला

पाकिस्तान में हुए ओआईसी के सम्मेलन में वांग यी ने कहा, कश्मीर के मुद्दे पर हम कई इस्लामी दोस्तों की आवाज़ सुन रहे हैं, चीन की भी इसे लेकर यही इच्छा है। कश्मीर समेत दूसरे विवादों के समाधान के लिए इस्लामी देशों के प्रयासों का चीन समर्थन जारी रखेगा। उनके इस वक्तव्य की भारत ने भर्त्सना की और कहा कि कश्मीर हमारा आंतरिक मामला है, जिसे लेकर कोई बात कहने का चीन को अधिकार नहीं है।

इमरान ने हर तरह के कार्ड को खेला


पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने रविवार को राजधानी इस्लामाबाद की  रैली में अपने हर कार्ड को खेल लिया। इसमें उन्होंने अपने खिलाफ विदेशी साजिश का हवाला दिया, भुट्टो की मौत के लिए नवाज शरीफ को जिम्मेदार ठहराकर पीपीपी और पीएमएल-एन के बीच मतभेद पैदा करने की कोशिश की, बार-बार दीन का नाम लेकर धर्म का जमकर इस्तेमाल किया और अपने विरोधियों को भ्रष्ट और बेईमान साबित करने की पूरी कोशिश की। आज दिन में संसद में उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव रखा जाएगा, जिसपर विचार के बाद संभव है कि 3 या 4 अप्रेल को इसपर मतदान हो।

उन्होंने कहा, "मैं अपने दिल की बात रखना चाहता हूं और मैं चाहता हूं कि आप ख़ामोशी से मुझे सुने। मैंने आपको अच्छाई का साथ देने के लिए बुलाया है। हमारे पाकिस्तान की बुनियाद इस्लामी कल्याणकारी राज्य की विचारधारा पर पड़ी थी। हमें अपने देश को रियासत-ए-मदीना के आधार पर बनाना है।" उन्होंने  कहा, "मुझसे लोग पूछते हैं कि आप दीन को सियासत के लिए क्यों इस्तेमाल करते हैं, तो मैं अपने दिल की बात कहूंगा कि आज से पच्चीस साल पहले जब मैंने अपनी पार्टी बनाई थी तो मैं सिर्फ़ इसलिए सियासत में आया तो मेरा एक मक़सद था कि मेरा मुल्क जिस नज़रिए के तहत बना था। जब तक हम अपने नज़रिए पर नहीं खड़े होंगे, हम एक राष्ट्र नहीं बन पाएंगे।"

इमरान ने कहा, "ब्रिटेन में फ्री मेडिकल इलाज मिलता है, फ्री शिक्षा मिलती है, बेरोज़गारों को फ़ायदे मिलते हैं और लोगों को फ्री क़ानूनी सलाह भी दी जाती है। हमारे पैगंबर ने रियासत-ए-मदीना में ऐसा ही निज़ाम बनाया था जहां राज्य लोगों का खयाल रखता था।"

सेना पर टिप्पणी

इमरान ने उन्होंने परोक्ष रूप से सेना की भूमिका पर भी टिप्पणी की। वे जबर्दस्त भीड़ को जमा करने में कामयाब हुए, जिससे साबित यह भी होता है कि उन्होंने हार मान ली है और अब आने वाले वक्त की राजनीति का संकेत दे रहे हैं, जो उन्होंने नवाज़ शरीफ के कार्यकाल में अपनाई थी। यानी कि वे अब विरोध में बैठकर आंदोलन का सहारा लेंगे।

इमरान ने अपनी इस रैली का नाम अम्र बिन मारूफ़ रखा है, जिसका मतलब होता है अच्छाई के साथ आओ। इस्लामाबाद के परेड ग्राउंड में अपने समर्थकों की भारी भीड़ को संबोधित करते हुए इमरान ख़ान ने कहा, मेरे ख़िलाफ़ बाहर से साज़िश की जा रही है और मैं  किसी की ग़ुलामी स्वीकार नहीं करूँगा। यह बात वे पिछले दो-तीन हफ्तों से कह रहे हैं। जब यूरोपियन यूनियन के राजदूतों ने यूक्रेन के मामले में समर्थन माँगते हुए पत्र लिखा, तब उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि हम किसी के गुलाम नहीं हैं। अमेरिका को लेकर भी वे यह बात बार-बार कह रहे हैं। उन्होंने कहा, "हमारे देश को हमारे पुराने नेताओं की करतूतों की वजह से धमकियां मिलती रही हैं। हमारे देश में अपने लोगों की मदद से लोगों तब्दील किया जाता रहा।"

इमरान ख़ान ने कहा, "ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने जब देश की विदेश नीति को आज़ाद करने की कोशिश की तो फजलुर्रहमान और नवाज़ शरीफ़ की पार्टियों ने अभियान चलाया जिसकी वजह से उन्हें फाँसी दे दी गई। आज उसी भुट्टो के दामाद और उनके नवासे दोनों कुर्सी के लालच में अपने नाना की क़ुर्बानी को भुलाकर उसके क़ातिलों के साथ बैठे हुए हैं।"

इमरान ने कहा, "मेरे ख़िलाफ़ साज़िश बाहर से की जा रही है, बाहर से हमारी विदेश नीति को प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है। ये जो आज क़ातिल और मक़तूल इकट्ठा हो गए हैं, इन्हें इकट्ठा करने वालों का भी हमें पता है।"