Wednesday, July 28, 2021

अफगानिस्तान में चीनी प्रवेश की तैयारी



तीन खबरों को एकसाथ मिलाकर पढ़ें। तालिबान के संस्थापकों में से एक और अमेरिका के साथ हुई बातचीत में मुख्य वार्ताकार मुल्ला अब्दुल ग़नी बारादर अपने दल-बल के साथ पहुँचे हैं। उनके चीन आगमन के ठीक पहले पाकिस्तान के विदेशमंत्री महमूद शाह कुरैशी सोमवार को चीन आए थे। इन दो खबरों के समांतर मंगलवार 27 जुलाई की शाम अमेरिकी विदेशमंत्री भारत एंटनी ब्लिंकेन दो दिन के दौरे पर दिल्ली पहुँचे। इसके पहले से खबरें हैं कि चीन और पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान को 'आतंकवाद का गढ़' नहीं बनने देने के लिए वहाँ 'संयुक्त कार्रवाई' करने का फ़ैसला किया है।

इस संयुक्त कार्रवाई की भनक अमेरिका को भी है। हालांकि अमेरिका की दिलचस्पी अब अफगानिस्तान में बहुत ज्यादा नहीं लगता है, पर चीन की दिलचस्पी पर उसकी निगाहें हैं और ब्लिंकेन के दिल्ली दौरे के पीछे यह भी एक महत्वपूर्ण कारण है। उधर पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाक़ात की है। तालिबान नेता बारादर की मुलाकात भी चीनी विदेशमंत्री से हुई है। हाल में तालिबान के प्रवक्ता सुहेल शाहीन ने कहा था कि हम चीन को अफ़ग़ानिस्तान के एक दोस्त के रूप में देखते हैं। खबरें हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान का नियंत्रण चीन के शिनजियांग प्रांत से लगी सीमा-क्षेत्र में हो गया है।

तालिबानी टीम चीन में

तालिबान नेता बारादर से चीनी विदेशमंत्री वांग की मुलाकात बुधवार 28 जुलाई को चीन के उत्तरी नगर तियानजिन में हुई। उधर अफगानिस्तान में तालिबान की बढ़त लगातार जारी है, पर हाल में अमेरिकी वायुसेना के हवाई हमलों से स्थिति में बदलाव आया है। इन हमलों को लेकर तालिबान ने कहा है कि यह दोहा में हुए समझौते का उल्लंघन है। ज़ाहिर है कि दिल्ली में भारत और अमेरिका के विदेशमंत्रियों की बातचीत का विषय भी अफगानिस्तान और वहाँ चीन की बढ़ती दिलचस्पी है।

चीन ने अफगानिस्तान में ज्यादा बड़ी भूमिका निभाने का वायदा किया है। रॉयटर्स के अनुसार चीनमी विदेशमंत्री ने तालिबान प्रतिनिधियों से कहा कि उम्मीद है आप ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमंट (ईटीआईएम) के खिलाफ कार्रवाई करेंगे, क्योंकि यह संगठन चीन की सुरक्षा के लिए खतरा है। जून में चीनी विदेशमंत्री ने अफगानिस्तान और पाकिस्तान के विदेशमंत्रियों के साथ बातचीत में कहा था कि हम तालिबान को मुख्यधारा में वापस लाएंगे और अफगानिस्तान के सभी पक्षों के बीच मध्यस्थता करने को तैयार हैं। तालिबान नेताओं ने इशारा किया है कि उन्हें उम्मीद है कि चीन से अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में निवेश करने पर बातचीत होगी। एक तरह से यह चीन के बीआरआई कार्यक्रम से जुड़ने की मनोकामना है, जिसका एक हिस्सा पाकिस्तान-चीन आर्थिक कॉरिडोर यानी सीपैक है। 

आर्थिक सुधार यानी मजबूरी का नाम…

भारत में आर्थिक सुधारों को आप चार जगहों पर आसानी से देख सकते हैं। सॉफ्टवेयर, ऑटोमोबाइल उद्योग और तीसरे हैल्थकेयर के क्षेत्र में। जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा सप्लायर भारत है। ‘हैल्थ टूरिज्म’ का महत्वपूर्ण पड़ाव। चौथे यानी ‘जैम’ के प्रभाव को देखने के लिए ग्रामीण इलाकों में जाना होगा। जनधन, आधार और मोबाइल की त्रिशक्ति का ‘जैम’ एक चौथा काम कर रहा है, जिसे डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) कहते हैं। स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया, स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया जैसे शब्द उदारीकरण की देन हैं।   

विडंबना है कि हमने आर्थिक-सुधार किए नहीं, समय ने मजबूर किया। इन्हें ऐसी अल्पसंख्यक-सरकार ने शुरू किया, जिसके प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री खुद संसद-सदस्य नहीं थे। फिर भी वह जबर्दस्त शुरूआत थी। उसके बाद पहले 100 दिन में जैसा बदलाव आया, वैसा शायद ही कभी देखने को मिला हो। आर्थिक-सुधारों को लेकर या तो आमराय नहीं है या उनके महत्व को राजनीतिक-दल समझ नहीं पाए हैं।  

बड़ी देर कर दी मेहरबान

हमने जब यह रास्ता पकड़ा, उसके सौ साल पहले जापान ने अपनी अर्थव्यवस्था को खोला था। चीन ने सत्तर के दशक में इसकी शुरूआत की थी। दक्षिण कोरिया और मलेशिया जैसे देशों ने भी हमसे पहले अपनी अर्थव्यवस्थाओं को खोल लिया था। भारत ने जब यह फैसला किया, देश असाधारण राजकोषीय घाटे और भुगतान संकट में था। सरकार यूनियन बैंक ऑफ स्विट्ज़रलैंड और बैंक ऑफ इंग्लैंड में 67 टन सोना गिरवी रख चुकी थी।  

जनवरी 1991 में हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 1.2 अरब डॉलर था, जो जून आते-आते इसका आधा रह गया। आयात भुगतान के लिए तकरीबन तीन सप्ताह की मुद्रा हमारे पास थी। ऊपर से राजनीतिक अस्थिरता थी। प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर की अल्पमत सरकार कांग्रेस के सहयोग पर टिकी थी। फौरी तौर पर हमें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 2.2 अरब डॉलर का कर्ज लेना पड़ा और सोना गिरवी रखना पड़ा। अगले अठारह साल में कहानी बदल गई। 1991 में सोना गिरवी रखने वाले देश ने नवम्बर 2009 में उल्टे आईएमएफ से 200 टन सोना खरीदा। 

Tuesday, July 27, 2021

राजनीतिक-जासूसी का रहस्यलोक

संसद के मॉनसून-सत्र के पहले हफ्ते की कार्यवाही को देखते हुए अंदेशा होता है कि कहीं यह स्पाईवेयर पेगासस की भेंट न चढ़ जाए। पेरिस की मीडिया संस्था फॉरबिडेन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल को विभिन्न देशों के ऐसे 50,000 फोन नम्बरों की सूची मिली, जिनके बारे में संदेह है कि उनकी हैकिंग कराई गई। इन नम्बरों में भारत के कुछ पत्रकारों सहित केंद्रीय मंत्रियों, विपक्ष के नेताओं, सुरक्षा संगठनों के मौजूदा और पूर्व प्रमुखों, वैज्ञानिकों आदि के भी शामिल होने की बात कही जा रही है।

यह सिर्फ संयोग नहीं है कि भारत में यह जासूसी तब हुई थी, जब भारत में लोकसभा चुनाव चल रहे थे। उसके पहले यूपीए सरकार के तत्कालीन वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी के दफ़्तर में और सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह के यहां भी जासूसी होने की शिकायतें थीं। कौन था उनके पीछे? इन सवालों के बीच नागरिकों की स्वतंत्रता और उनके निजी जीवन में राज्य के हस्तक्षेप का सवाल भी है। सबसे बड़ा सवाल है कि तकनीकी जानकारी के सदुपयोग या दुरुपयोग की सीमाएं क्या हैं? इस मामले के भारतीय और अंतरराष्ट्रीय संदर्भ अलग-अलग हैं, इसलिए कोई बड़ी तस्वीर उभर कर नहीं आ रही है।

जटिल सवाल

इसराइली कंपनी एनएसओ के पेगासस स्पाईवेयर से जुड़ा यह विवाद 2019 में भी उठा था। यह बहुत जटिल मामला है। सरकार का कहना है कि हम इसके पीछे नहीं हैं, पर तमाम सवालों के जवाब नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में केवल एक बयान से बात बनती नहीं। विरोधी-पक्ष को भी पता है कि इस रास्ते पर सिर्फ अंधेरा है, पर उसे भी अपनी राजनीतिक-मंजिलों की तलाश है। हमारा डर यह है कि इस आपाधापी में जरूरी संसदीय-कर्म को नुकसान न हो जाए। यह मामला पीआईएल की शक्ल में सुप्रीम कोर्ट में पहुँचा है।

Tuesday, July 20, 2021

कृपया तीसरी और चौथी लहरों को मत बुलाइए!


हमें लगता है कि कोरोना की दूसरी लहर उतार पर है, पर दूसरे देशों की तस्वीर अच्छी नहीं है। कहीं दूसरी लहर चल रही है और कहीं तीसरी। कुछ देश चौथी का इंतजार कर रहे हैं। नए संक्रमितों की संख्या चार हफ्तों से बढ़ रही है। अमेरिका सबसे ज्यादा संक्रमित देश है, पर तेज टीकाकरण के कारण वहाँ की स्थिति बेहतर हुई है, पर तमाम देशों में प्रतिबंधों के बावजूद संक्रमण में गिरावट नहीं हो रही है। हमारे लिए सबक है कि लापरवाही का मतलब है तबाही को दावत देना।

ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, इंडोनेशिया, क्यूबा, ब्रिटेन, रूस और दक्षिण कोरिया में स्थिति बिगड़ रही है। बुधवार 7 जुलाई को दुनिया में कोविड-19 से हुई मौतों की संख्या 40 लाख से ऊपर चली गई थी। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के डैशबोर्ड के अनुसार 13 जुलाई की सुबह मरने वालों की संख्या 40 लाख 36 हजार से ऊपर हो गई। वैश्विक कोरोना के कुल मामले 18 करोड़ 71 लाख से ऊपर हैं।

लैटिन अमेरिका में हाहाकार

रोजाना मौतों की संख्या में गिरावट है, फिर भी 6 से 8 हजार मौतें रोज हो रही हैं। अमेरिका में छह लाख, ब्राजील में पाँच लाख और भारत में चार लाख से ऊपर यह संख्या हो गई है। ब्राजील और मैक्सिको में मृत्यु दर बहुत ज्यादा है। कुछ महीनों से पेरू, कोलम्बिया और अर्जेंटाइना में मृत्यु दर बढ़ी है। पेरू में प्रति दस लाख आबादी पर 6,000 मौतों का औसत है, जबकि वैश्विक औसत 51 है। इससे फर्क पता लगता है। भारत में यह औसत 300 और अमेरिका में 1800 है। ब्राजील और कोलम्बिया में 2000 के ऊपर है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुखिया टेड्रॉस गैब्रेसस ने जिनीवा से प्रसारित वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि वायरस के डेल्टा वेरिएंट का खतरनाक प्रसार हो रहा है। जिन देशों में टीकाकरण का दायरा सीमित है, वहाँ खासतौर से दशा बहुत ख़राब है। डेल्टा वेरिएंट 104 से ज़्यादा देशों में मौजूद है और यह जल्द ही दूसरे देशों में फैल जाएगा। जिन देशों ने शुरुआती दौर में, वायरस की लहर पर क़ाबू पाने में कामयाबी हासिल की थी, वहाँ भी नई लहर का विनाशकारी रूप देखने को मिल रहा है।

Sunday, July 18, 2021

राजद्रोह बनाम कानूनी-अराजकता

लोकतंत्र के कुछ बुनियादी आधारों को लेकर देश में कुछ समय से जो बहस चल रही है, उससे जुड़े दो मामले पिछले हफ्ते अदालत में उठे। सोमवार को उच्चतम न्यायालय ने हैरत जताई कि अब भी आईटी कानून की धारा 66ए के तहत लोगों पर मुकदमे चलाए जा रहे हैं, जबकि इसे सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च, 2015 को असंवैधानिक घोषित किया था। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ अदालत में यह मामला लेकर गई थी। दो साल पहले इस संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि इस कानून के रद्द होने के बाद कम से कम 22 लोगों पर इसके तहत मुकदमे चलाए गए हैं। अदालत की हैरानी के बाद अब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि वे थानों को 66ए के तहत मामले दर्ज न करने के निर्देश दें। अनुमान लगाया जा सकता है कि देश में कानूनों के अनुपालन के नाम पर कैसी अराजकता है।

राजद्रोह कानून

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा दूसरा मामला राजद्रोह कानून का है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राजद्रोह कानून का इस्तेमाल अंग्रेजों ने स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए किया था, तो क्या आजादी के 75 साल बाद भी इसे जारी रखने की जरूरत है? अदालत में एक रिटायर मेजर जनरल ने धारा-124ए(राजद्रोह) कानून के वैधानिकता को चुनौती दी है। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अगुवाई वाले पीठ ने इस याचिका के परीक्षण का फैसला किया है। अदालत ने कहा कि सरकार कई कानूनों को खत्म कर चुकी है। इसे क्यों नहीं देखा गया? अदालत ने यह भी कहा कि यह फैसला नहीं है, हमने जो सोचा है उसका संकेत है।

पिछले दो महीनों में राजद्रोह कानून को लेकर जो बहस शुरू हुई है उसे तार्किक परिणति तक पहुँचना चाहिए। मसला कानून को खत्म करने से ज्यादा इसके दुरुपयोग से जुड़ा है। धारा66ए निरस्त है, फिर भी अधिकारी उसका इस्तेमाल करते हैं। लोगों को गिरफ्तार किया जाता है। कोई जवाबदेही नहीं। कोई पुलिस ऑफिसर गांवों के दूर दराज इलाकों में किसी शख्स के खिलाफ राजद्रोह कानून का आसानी से इस्तेमाल कर सकता है। जुआरियों पर राजद्रोह का आरोप।

इसी दौरान अदालत में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की ओर से अलग से अर्जी दाखिल की गई है, जिसमें राजद्रोह कानून के प्रावधान को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस अर्जी पर भी सुनवाई के लिए सहमति दे दी। अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की दूसरी बेंच में भी राजद्रोह कानून को चुनौती वाली याचिका विचाराधीन है। दो पत्रकारों की उस याचिका पर 27 जुलाई को सुनवाई होनी है।

राजद्रोह और देशद्रोह

इस विषय को व्यावहारिकता की रोशनी में देखना चाहिए। राजद्रोह और देशद्रोह के अंतर को भी समझने की जरूरत है। सरकार या सरकारी नीतियों के प्रति असंतोष व्यक्त करने की सीमा-रेखा भी तय होनी चाहिए। इस साल 26 जनवरी को लालकिले पर जो हुआ, क्या उसे स्वस्थ लोकतांत्रिक-विरोध के दायरे में रखा जाएगा? वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ राजद्रोह के एक मामले को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने 3 जून को कहा था कि पत्रकारों को राजद्रोह के दंडात्मक प्रावधानों से तबतक सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए, जबतक कि उनकी खबर से हिंसा भड़कना या सार्वजनिक शांति भंग होना साबित न हुआ हो।