पिछले एक-डेढ़ महीने के हौलनाक-मंज़र के बाद लगता है कि कोरोना की दूसरी लहर जितनी तेजी से उठी थी, उतनी तेजी से इसके खत्म होने की उम्मीदें हैं। इस लहर का सबसे बड़ा सबक क्या है? क्या हम ईमानदारी से अपनी खामियों को पढ़ पाएंगे? ऐसा क्यों हुआ कि भारी संख्या में लोग अस्पतालों के दरवाजों पर सिर पटक-पटक कर मर गए? उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिली, दवाएं नहीं मिलीं, इलाज नहीं मिला। ऐसे तमाम सवाल हैं।
क्या सरकार (जिसमें
केंद्र ही नहीं, राज्य
भी शामिल हैं) की निष्क्रियता से ऐसा हुआ? क्या सरकारें भविष्य को लेकर चिंतित और कृत-संकल्प
है? क्या यह संकल्प
‘राजनीति-मुक्त’ है? भविष्य
का कार्यक्रम क्या है? जिस
चिकित्सा-तंत्र की हमें जरूरत है, वह
कैसे बनेगा और कौन उसे बनाएगा? हमारी
सार्वजनिक-स्वास्थ्य नीति क्या है? वैक्सीनेशन-योजना
क्या है? लड़खड़ाती
अर्थव्यवस्था क्या सदमे को बर्दाश्त कर पाएगी? सवाल यह भी है कि साल में दूसरी बार
संकट से घिरे प्रवासी कामगारों की रक्षा हम कैसे करेंगे?
प्रवासी
कामगार
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र, दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रवासी श्रमिकों को सूखा राशन प्रदान करने का निर्देश दिया। अधिकारियों को प्रवासी मजदूरों के पहचान पत्रों पर जोर नहीं देना है। मजदूरों पर यकीन करते हुए उन्हें राशन दिया जाए। इन मजदूरों के लिए एनसीआर में सामुदायिक रसोइयाँ स्थापित करने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि उन्हें दिन में दो बार भोजन मिले। उन्हें परिवहन मिले, जो अपने घरों में वापस जाना चाहते हैं। ये वही समस्याएं हैं, जो पिछले साल के लॉकडाउन के वक्त इन कामगारों ने झेली थीं।