बिहार के चुनाव परिणामों पर डेटा-आधारित विश्लेषण कुछ समय
बाद सामने आएंगे। महत्वपूर्ण राजनीति शास्त्रियों की टिप्पणियाँ भी कुछ समय बाद
पढ़ने को मिलेंगी, पर आज (यानी 11 नवंबर 2020) की सुबह इंडियन एक्सप्रेस में
परिणामों के समाचार के साथ चार बातों ने मेरा ध्यान खींचा। ये चार बातें चार
अलग-अलग पहलुओं से जुड़ी हैं। पहला है तेजस्वी यादव पर वंदिता मिश्रा का विवेचन,
दूसरे कांग्रेसी रणनीति पर मनोज जीसी की टिप्पणी, तीसरे बीजेपी की भावी रणनीति पर
सुहास पालशीकर का विश्लेषण और चौथा एक्सप्रेस का बिहार के भविष्य को लेकर संपादकीय।
किसी एक चुनाव के तमाम निहितार्थ हो सकते हैं। पता नहीं हमारे समाज-विज्ञानी
अलग-अलग चुनावों के दौरान होने वाली गतिविधियों के सामाजिक प्रभावों का अध्ययन
करते हैं या नहीं, पर मुझे लगता है कि बिहार के बदलते समाज का अध्ययन करने के लिए यह
समय अच्छा होता है। बहरहाल इन चारों को विस्तार से आप एक्सप्रेस में जाकर पढ़ें।
मैंने सबके लिंक साथ में दिए हैं। अलबत्ता हरेक बात का हिंदी में संक्षिप्त विवरण
भी दे रहा हूँ. ताकि संदर्भ स्पष्ट रहे।
नैरेटिव
विहीन तेजस्वी
वंदिता मिश्रा ने लिखा है कि बिहारी अंदाज में लमसम
(Lumpsum) में कहें, तो एक या दो बातें कही जा सकती हैं। एक नीतीश कुमार का पराभव।
मुख्यमंत्री के रूप में उनकी वापसी हो सकती है और नहीं भी हो सकती है, पर वे वही
नीतीश कुमार नहीं होंगे। वे अब 2010 के सड़क-पुल-स्कूली लड़कियों के साइकिल हीरो
नहीं हैं, जिसने राज्य में व्यवस्था को फिर से कायम किया था। वे 2015 के सुशासन बाबू भी नहीं हैं, जिसकी
दीप्ति कम हो गई थी, फिर भी जिसे काम करने वाला नेता माना जाता था। यह वह राज्य है
जहाँ लालू राज ने विकास को पीछे धकेल दिया था, जिसका नारा था-सामाजिक न्याय बनाम
विकास।