फ्रांस और ऑस्ट्रिया में हुई आतंकी घटनाओं के बाद मुस्लिम देशों की प्रतिक्रियाएं कुछ विसंगतियों की ओर इशारा कर रही हैं। अभी तक वैश्विक मुस्लिम समाज की आवाज सऊदी अरब और उनके सहयोगी देशों की तरफ से आती थी, पर इसबार तुर्की, ईरान और पाकिस्तान सबसे आगे हैं। जबकि सऊदी अरब ने संतुलित रुख अपनाया है। संयुक्त अरब अमीरात ने फ्रांस सरकार का समर्थन किया है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इसे 'इस्लामिक आतंकवादी' हमला कहा था और यह भी कहा कि इस्लाम संकट में है। उन्होंने इस्लामिक कट्टरपंथी संगठनों पर कार्रवाई का भी ऐलान किया है।
भारतीय दृष्टिकोण
से इन बातों के सकारात्मक पक्ष भी हैं। आतंकवाद के विरुद्ध किसी भी लड़ाई में भारत
की भूमिका होगी, क्योंकि भारत इसका शिकार है। इन गतिविधियों में पाकिस्तानी शिरकत
दुनिया के सामने खुल चुकी है। उसका हिंसक रूप सामने है। उसे अब सऊदी अरब जैसे देश
और इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) का सहारा भी मिलने नहीं जा रहा है। इस्लामिक जगत
में उसने अब तुर्की का दामन थामा है, जिसकी अर्थव्यवस्था पतनोन्मुख है। पाकिस्तान
के भीतर विरोधी दलों ने इमरान सरकार के खिलाफ मुहिम चला रखी है। पहली बार सेना के
खिलाफ राजनीतिक दल खुलकर सामने आए हैं।
तुर्क पहलकदमी
इस्लामी देशों की प्रतिक्रिया पर ध्यान दें, तो पाएंगे कि विरोध की कमान तुर्की ने अपने हाथ में ले ली है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान उनसे सुर मिला रहे हैं। मैक्रों के बयान की प्रत्यक्षतः मुस्लिम देशों ने भर्त्सना की है, पर तुर्की, ईरान और पाकिस्तान को छोड़ दें, तो शेष इस्लामिक मुल्कों की प्रतिक्रियाएं औपचारिक हैं। जनता का गुस्सा सड़कों पर उतरा जरूर है, पर सरकारी प्रतिक्रियाओं में अंतर है।