Saturday, October 31, 2020

कहाँ जा रहा है तुर्की?


अमेरिकी डॉलर की तुलना में तुर्की के लीरा की कीमत लगातार गिरती जा रही है। शुक्रवार 30 अक्तूबर को एक डॉलर में 8.35 लीरा मिल रहे थे। इस साल अगस्त में एक डॉलर में 7.6 मिल रहे थे। तब गोल्डमैन सैक्स का अनुमान था कि एक साल बाद एक डॉलर में 8.25 लीरा हो जाएंगे, पर इस महीने ही वह सीमा पार हो चुकी है। बोलीविया की मुद्रा बोलीविया बोलिवियानो के बाद शायद लीरा ही इस वक्त दुनिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बन गई है। देश के राष्ट्रपति एर्दोआन ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को चुनौती दी थी कि वे और प्रतिबंध लगाकर देखें। अमेरिका ही नहीं उन्होंने यूरोप के साथ भी अपने रिश्ते खराब कर लिए हैं।

दस साल पहले तुर्की के तत्कालीन विदेशमंत्री अलमत दावुतुगोलू ने पड़ोसी देशों के साथ जीरो प्रॉब्लम्स नीति पर चलने की बात कही थी। पर आज यह देश पड़ोसियों के साथ जीरो फ्रेंडली रह गया है। तमाम देशों के साथ उसके रिश्ते सुधर गए थे और वह अफगानिस्तान से लेकर फलस्तीन समस्याओं के समाधान में मध्यस्थ बनता जा रहा था। यहाँ तक कि अमेरिका और ईरान के रिश्तों को सुधारने का जिम्मा भी तुर्की ने अपने ऊपर ले लिया था। पर अब सीरिया, लीबिया और आर्मेनिया-अजरबैजान के झगड़े तक में तुर्की ने हिस्सा लेना शुरू कर दिया है। हर जगह वह हस्तक्षेप कर रहा है।

तुर्की की नई विदेश नीति पश्चिम विरोधी है। वह यक़ीन करता है कि विश्व में पश्चिमी देशों का प्रभाव अब घट रहा है और तुर्की को चीन और रूस जैसे देशों के साथ अपने ताल्लुकात बढ़ाने चाहिए। हाल में फ्रांस में हुए हत्याकांड और राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के बयान के बाद तुर्क राष्ट्रपति एर्दोआन ने मुस्लिम देशों से कहा है कि वे फ्रांसीसी सामान का बहिष्कार करें। हाल के महीनों में तुर्की की विदेश नीति के मुखर आलोचक रहे मैक्रों पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, ‘फ्रांस की बागडोर जिनके हाथों में है वह राह भटक गए हैं। वह सोते जागते बस एर्दोआन के बारे में सोचते हैं। आप अपने आपको देखें कि आप कहां जा रहे हैं।’

सऊदी अरब के साथ तुर्की की प्रतिद्वंद्विता जगजाहिर है। पर तमाम बातें स्पष्ट नहीं हैं। एक तरफ वह रूस से एस-400 हवाई सुरक्षा प्रणाली खरीद रहा है, जिसके कारण अमेरिका उससे नाराज है, वहीं वह आर्मेनिया के खिलाफ अजरबैजान का साथ दे रहा है, जिसमें रूस आर्मेनिया के साथ खड़ा है। हालांकि तुर्की अभी नेटो का सदस्य है, पर लगता है कि उसे नेटो छोड़ना होगा।

स्वतंत्र अभिव्यक्ति ही कट्टरपंथ से लड़ाई है


फ्रांस को लेकर दुनियाभर में जो कुछ हो रहा है, उसे कम से कम दो अलग वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। इस्लामोफोबिया से शुरू होकर सभ्यताओं के टकराव तक एक धारा जाती है। दूसरे, धर्मनिरपेक्षता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक भावनाओं के सिद्धांत और उनके अंतर्विरोध हैं। दोनों मसले घूम-फिरकर एक जगह पर मिलते भी हैं। इनकी वजह से जो सामाजिक ध्रुवीकरण हो रहा है, वह दुनिया को अपने बुनियादी मसलों से दूर ले जा रहा है।

तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों पर मुसलमानों के दमन का आरोप लगाया है। दुनिया के मुसलमानों के मन में पहले से नाराजगी भरी है, जो इन तीन महत्वपूर्ण राजनेताओं के बयानों के बाद फूट पड़ी है।

यह सब ऐसे दौर में हो रहा है, जब दुनिया के सामने महामारी का खतरा है। इसका मुकाबला करने की जिम्मेदारी विज्ञान ने ली है, धर्मों ने नहीं। बहरहाल इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक का विमर्श जिस मुकाम पर है, उसे लेकर हैरत होती है। क्या मैक्रों वास्तव में मुसलमानों को घेरने, छेड़ने, सताने या उनका मजाक बनाने की साज़िश रच रहे है? या देश के बिगड़ते अंदरूनी हालात से बचने का रास्ता खोज रहे हैं या वे यह साबित करना चाहते हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बुनियादी तौर पर जरूरी है?

Friday, October 30, 2020

यूरोप में फिर से लॉकडाउन


यूरोप में कोविड-19 की एक और लहर के खतरे को देखते हुए फ्रांस और जर्मनी ने लॉकडाउन की घोषणा की है। ब्रिटेन भी लॉकडाउन लागू करने पर विचार कर रहा है, पर उसके आर्थिक निहितार्थ को देखते हुए संकोच कर रहा है। कुछ शहरों में उसे लागू कर भी दिया गया है। गत बुधवार 28 अक्तूबर को टीवी पर राष्ट्र के नाम संबोधन में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि शुक्रवार से लॉकडाउन शुरू होगा, जो करीब एक महीने तक लागू रहेगा। इस दौरान लोगों से अपने घरों में रहने को कहा गया है। रेस्त्रां और बार बंद कर दिए गए हैं। गैर-जरूरी वस्तुओं की दुकानों को भी बंद किया जा रहा है।

उधर जर्मनी की चांसलर अंगेला मार्केल ने कहा है कि देश की संघीय और राज्य सरकारों ने कम प्रतिबंधों के साथ एक महीने के शटडाउन का फैसला किया है। इस दौरान रेस्त्रां, बार, फिटनेस स्टूडियो, कंसर्ट हॉल, थिएटर वगैरह बंद रहेंगे। यह शटडाउन सोमवार से शुरू होगा।

Thursday, October 29, 2020

पाकिस्तान ने घबराकर अभिनंदन को छोड़ा था

 

अयाज सादिक

गुरुवार को दो वीडियो के वायरल होने से भारत और पाकिस्तान में सनसनी फैल गई। दोनों वीडियो पाकिस्तानी संसद में दो महत्वपूर्ण व्यक्तियों के बयानों से जुड़े थे। पाकिस्तान की संसद के पूर्व स्पीकर और पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नून) के वरिष्ठ नेता अयाज सादिक ने बुधवार 28 अक्तूबर को देश की संसद में एक ऐसा बयान दिया, जिसकी तवक्को न सेना को की थी और न इमरान खान की सरकार को। उनका कहना था कि बालाकोट में एयर स्ट्राइक के अगले दिन हुए पाकिस्तानी हवाई हमले में एफ-16 विमान को मार गिराने वाले भारतीय सैनिक विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान की रिहाई पाकिस्तान सरकार ने इस बात से घबरा कर की थी कि भारत हमला कर देगा। उन्होंने पाकिस्तानी विदेशमंत्री शाह महमूद कुरैशी और सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा को अभिनंदन की रिहाई के लिए जिम्मेदार ठहराया। सादिक ने संसद में बयान दिया कि अभिनंदन की कब्जे में लेने के बाद भारत हमला न कर दे इसको लेकर बाजवा के पैर कांप रहे थे।

अयाज सादिक के इस बयान पर टीका-टिप्पणी चल ही रही थी कि पाकिस्तान के मंत्री फवाद चौधरी ने संसद में एक और बयान दिया, जो और ज्यादा सनसनीखेज था। उन्होंने कहा कि पिछले साल फरवरी में हुए पुलवामा के हमले में इमरान खान सरकार का हाथ था। बाद में वे अपने बयान से मुकर गए और बोले कि हमारा देश आतंकवाद का समर्थन नहीं करता है। और पुलवामा हमले पर उनकी टिप्पणी की गलत व्याख्या की गई थी। मुझे गलत समझा गया। पहले फवाद चौधरी का बयान देखें:-


कश्मीर की आड़ में इमरान

पाकिस्तानी साप्ताहिक फ्राइडे टाइम्स से साभार

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने मंगलवार 27 अक्तूबर को कहा कि हम भारत के साथ बातचीत के लिए तैयार हैं, बशर्ते
कश्मीरियों का उत्पीड़न रोका जाए और समस्या का समाधान हो। उन्होंने यह बात कश्मीर के काले दिन के मौके पर एक वीडियो संदेश में कही। कश्मीर का यह कथित काल दिन पाकिस्तानी दृष्टिकोण से काला है, क्योंकि इस दिन 1947 में महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर के विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे।

भारत ने इस साल पहली बार 22 अक्तूबर को काल दिन मनाया था, जिस दिन 1947 में पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर पर हमला किया था। इमरान खान ने अपने संदेश में शांति के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि इस क्षेत्र की समृद्धि के लिए शांति आवश्यक है। इमरान खान ने पिछले ढाई साल में न जाने कितनी बार बातचीत की पेशकश की है, साथ ही यह भी कहा है कि हम तो बातचीत करना नहीं चाहते।