कोविड-19 के वैश्विक हमले के कारण एक अरसे की अराजकता के बाद रथ का पहिया वापस चलने लगा है। आवागमन शुरू हो गया है, दफ्तर खुलने लगे हैं और कारखानों की चिमनियों से धुआँ निकलने लगा है। कोरोना ने जो भय पैदा किया था, वह खत्म नहीं हुआ है। पर दुनिया का कहना है कि सब कुछ बंद नहीं होगा। गति बदलेगी, चाल नहीं। उत्तर कोरोना परिदृश्य के तमाम पहलू हमारे जीवन की दशा और दिशा को बदलेंगे। रहन-सहन, खान-पान, सामाजिक सम्पर्क और सांस्कृतिक जीवन सब कुछ बदलेगा। सिनेमाघरों, रंगमंचों और खेल के मैदानों का रंग-रूप भी। खेल बदलेंगे, खिलाड़ी बदलेंगे। सवाल है क्या राजनीति भी बदलेगी?
जनवरी-फरवरी के बाद के वैश्विक परिदृश्य पर नजर डालें, तो पहली नजर में लगता है कि बीमारी ने राजनीति को पृष्ठभूमि में धकेल दिया। हम एक नई दुनिया में प्रवेश करने जा रहे हैं, जहाँ मनुष्य के हित सर्वोपरि होंगे, स्वार्थों के टकराव खत्म होंगे, जो राजनीति की कुटिलता के साथ रूढ़ हो गए हैं। वास्तव में ऐसा हुआ नहीं, बल्कि पृष्ठभूमि में राजनीति चलती रही। दुनिया की बात छोड़िए, हमारे देश में लॉकडाउन की घोषणा के ठीक पहले मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ। उस दौरान दोनों तरफ से खुलकर राजनीति हुई। कोरोना के बावजूद विधानसभा की बैठक हुई। नई सरकार आई। संसद के सत्र को लेकर बयानबाज़ी हुई, प्रवासी मजदूरों के प्रसंग के पीछे प्रत्यक्ष राजनीति थी। लॉकडाउन की घोषणा भी।
जनवरी-फरवरी के बाद के वैश्विक परिदृश्य पर नजर डालें, तो पहली नजर में लगता है कि बीमारी ने राजनीति को पृष्ठभूमि में धकेल दिया। हम एक नई दुनिया में प्रवेश करने जा रहे हैं, जहाँ मनुष्य के हित सर्वोपरि होंगे, स्वार्थों के टकराव खत्म होंगे, जो राजनीति की कुटिलता के साथ रूढ़ हो गए हैं। वास्तव में ऐसा हुआ नहीं, बल्कि पृष्ठभूमि में राजनीति चलती रही। दुनिया की बात छोड़िए, हमारे देश में लॉकडाउन की घोषणा के ठीक पहले मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ। उस दौरान दोनों तरफ से खुलकर राजनीति हुई। कोरोना के बावजूद विधानसभा की बैठक हुई। नई सरकार आई। संसद के सत्र को लेकर बयानबाज़ी हुई, प्रवासी मजदूरों के प्रसंग के पीछे प्रत्यक्ष राजनीति थी। लॉकडाउन की घोषणा भी।