महाराष्ट्र और
हरियाणा के चुनाव में अपेक्षाकृत बेहतर परिणामों से उत्साहित कांग्रेस पार्टी ने
अपने पुनरोदय का एक कार्यक्रम तैयार किया है। इसमें संगठनात्मक बदलाव के साथ-साथ
राष्ट्रीय स्तर पर जनता से जुड़े मुद्दों पर आंदोलन छेड़ने की योजना भी है। हालांकि
इन चुनाव परिणामों को बेहतर कहने के पहले कई तरह के किन्तु-परन्तु हैं, पर पार्टी
इन्हें बेहतर मानती है। पार्टी का निष्कर्ष यह है कि हमने कुछ समय पहले जनांदोलन
छेड़ा होता, तो परिणाम और बेहतर होते। लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के लिए यह
संतोष का विषय है। उत्तर प्रदेश में पार्टी ने अपना सदस्यता कार्यक्रम लॉन्च करने
की घोषणा भी की है।
पार्टी ने अपनी
सफलता का नया सूत्र खोजा है ‘क्षेत्रीय क्षत्रपों को
बढ़ावा दो।’ यह कोई नई बात नहीं है। उसे समझना होगा कि क्षेत्रीय क्षत्रप दो रोज में तैयार नहीं होते। अपने कार्यकर्ताओं को बढ़ावा देना होता है। बड़ा सच यह है कि पार्टी ने राहुल गांधी के नेतृत्व को विकसित करने के फेर में
अपने युवा नेतृत्व को उस स्तर का समर्थन नहीं दिया, जो उन्हें मिलना चाहिए था।
पिछले साल राजस्थान और मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्रियों का चयन करते समय यह बात
अच्छी तरह साफ हो गई थी। अब क्षेत्रीय क्षत्रपों से पार्टी का आशय क्या है? पुराने
नेता, लोकप्रिय नेता या युवा नेता?
वैचारिक
अंतर्मंथन
केवल नेतृत्व की
बात ही नहीं है। पार्टी को वैचारिक स्तर पर भी अंतर्मंथन करना होगा। बीजेपी केवल
नरेंद्र मोदी के भाषणों के कारण लोकप्रिय नहीं है। उसने सामाजिक स्तर पर भी अपनी
जगह बनाई है। बहरहाल कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर सुस्त अर्थव्यवस्था को मुद्दा
बनाकर केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने जा रही है। इस मोर्चे की घोषणा के साथ
खबर यह भी आई है कि पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी फिर विदेश दौरे पर चले गए
हैं। वे कहाँ गए हैं, यह जानकारी तो
नहीं दी गई है,
पर इतना जरूर कहा
गया है कि वे 'मेडिटेशन' के लिए गए हैं।