हाल में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के धरने के वक्त विरोधी दलों
की एकता के दो रूप एकसाथ देखने को मिले। एक तरफ ममता बनर्जी समेत चार राज्यों के
मुख्यमंत्रियों ने धरने का समर्थन किया, वहीं कांग्रेस पार्टी ने न केवल उसका
विरोध किया, बल्कि सार्वजनिक रूप से अपनी राय को व्यक्त भी किया। इसके बाद फिर से
यह सवाल हवा में है कि क्या विरोधी दलों की एकता इतने प्रभावशाली रूप में सम्भव
होगी कि वह बीजेपी को अगले चुनाव में पराजित कर सके।
सवाल केवल एकता का नहीं नेतृत्व का भी है। इस एकता के दो ध्रुव नजर आने लगे
हैं। एक ध्रुव है कांग्रेस और दूसरे ध्रुव पर ममता बनर्जी के साथ जुड़े कुछ
क्षेत्रीय क्षत्रप। दोनों में सीधा टकराव नहीं है, पर अंतर्विरोध है, जो दिल्ली
वाले प्रसंग में मुखर हुआ। इसके अलावा कर्नाटक सरकार की कार्यशैली को लेकर भी
मीडिया में चिमगोइयाँ चल रहीं हैं। स्थानीय कांग्रेस नेताओं और जेडीएस के
मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के बीच मतभेद की बातें हवा में हैं। पर लगता है कि
राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी कर्नाटक में किसी किस्म की छेड़खानी
करने के पक्ष में नहीं है। उधर बिहार से संकेत मिल रहे हैं कि नीतीश कुमार और
कांग्रेस पार्टी के बीच किसी स्तर पर संवाद चल रहा है।