Wednesday, October 11, 2017

खेल के मैदान में लिखी है बदलते भारत की इबारत

फीफा की अंडर-17 विश्वकप फुटबॉल प्रतियोगिता के बहाने हमें बदलते भारत की कहानी देखने की कोशिश करनी चाहिए. यह जूझते भारत और उसके भीतर हो रहे सामाजिक बदलाव की कहानी है. भारत ने अपना पहला मैच 8 अक्तूबर को खेला, जिसमें अमेरिका की टीम ने हमें 3-0 से हराया. इस हार से हमें निराशा नहीं हुई, क्योंकि फुटबॉल के वैश्विक मैदान में हमारी स्थिति अमेरिका से बहुत नीचे है. हमारे लिए महत्वपूर्ण बात यह थी कि भारत की कोई टीम विश्वकप फुटबॉल की किसी भी प्रतियोगिता में पहली बार शामिल हुई और उसने बहादुरी के साथ खेला. पहले मैच ने भारतीय टीम का हौसला बढ़ाया.

Sunday, October 8, 2017

गालियों का ट्विटराइज़ेशन

चौराहों, नुक्कड़ों और भिंडी-बाजार के स्वर और शब्दावली विद्वानों की संगोष्ठी जैसी शिष्ट-सौम्य नहीं होती। पर खुले गाली-गलौज को तो मछली बाजार भी नहीं सुनता। वह भाषा हमारे सोशल मीडिया में प्रवेश कर गई है। हम नहीं जानते कि क्या करें। जरूरत इस बात की है कि हम देखें कि ऐसा क्यों है और इससे बाहर निकलने का रास्ता क्या है? सोशल मीडिया की आँधी ने सूचना-प्रसारण के दरवाजे अचानक खोल दिए हैं। तमाम ऐसी बातें सामने आ रहीं हैं, जो हमें पता नहीं थीं। कई प्रकार के सामाजिक अत्याचारों के खिलाफ जनता की पहलकदमी इसके कारण बढ़ी है। पर सकारात्मक भूमिका के मुकाबले उसकी नकारात्मक भूमिका चर्चा में है। 

Tuesday, October 3, 2017

मोदी का नया सूत्र ‘गाँव और गरीब’


पिछला हफ़्ता अर्थ-व्यवस्था को लेकर खड़े किए गए सवालों के कारण विवादों में रहा, पर बहुत कम लोगों ने ध्यान दिया कि बीजेपी ने 2019 के मद्देनजर एक महत्वपूर्ण दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। पार्टी ने अपने राष्ट्रवादी एजेंडा के साथ-साथ भ्रष्टाचार के विरोध और गरीबों की हित-रक्षा पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया है। अब मोदी का नया सूत्र-वाक्य है, गरीब का सपना, मेरी सरकार का सपना है। प्रधानमंत्री ने 25 सितम्बर को दीनदयाल ऊर्जा भवन का लोकार्पण करते हुए देश के हरेक घर तक बिजली पहुँचाने की सौभाग्य योजना का ऐलान किया, जो इस दिशा में एक कदम है। इस योजना के तहत 31 मार्च 2019 तक देश के हरेक घर तक बिजली कनेक्शन पहुँचा दिया जाएगा।

पिछले साल मई में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की घोषणा हुई थी, जो काफी लोकप्रिय हुई है। इस योजना के अंतर्गत गरीब महिलाओं को मुफ्त एलपीजी गैस कनेक्शन दिए जाते हैं। इस कार्यक्रम ने गरीब महिलाओं को मिट्टी के चूल्हे से आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बताते हैं कि इस साल उत्तर प्रदेश के चुनावों में पार्टी को मिली जीत के पीछे दूसरे कारणों के साथ-साथ उज्ज्वला योजना की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। ग्रामीण महिलाओं की रसोई में अब गैस के साथ-साथ बिजली की रोशनी का और इंतजाम किया जा रहा है।

Monday, October 2, 2017

साख कायम रखनी है तो फर्जी खबरों से निपटना होगा

चुनींदा-2
समाचार मीडिया को तलाशने होंगे फर्जी खबरों से निपटने के तरीके

बिजनेस स्टैंडर्ड में वनिता कोहली-खांडेकर / 

September 29, 2017
फेसबुक ने अंग्रेजी, गुजराती और कुछ अन्य भाषाओं में जारी विज्ञापनों में फर्जी खबर की पहचान करने के बारे में सुझाव दिए हैं। इस विज्ञापन को देखकर ऐसा लगता है कि फेसबुक अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फर्जी खबरों का प्रसार रोकने की अपनी जिम्मेदारी को लेकर आखिरकार सचेत हुआ है। यह एक ऐसे 'इको-चैम्बर' की तरह हो चुका है जिसके भीतर करीब 2 अरब लोग अपनी राय जाहिर करते हैं, दूसरे लोगों के विचारों, खबरों, तस्वीरों या वीडियो पर टिप्पणी करते हैं और सूचनाओं को साझा करते हैं। सोशल मीडिया का लोगों के मतदान व्यवहार, उनके खानपान और खरीदारी के तरीके तय करने में भी बड़ी भूमिका होती है। लोग इस पर भरोसा करते हैं और उनके इस भरोसे की ही वजह से फेसबुक को मोटी कमाई होती है। गूगल के साथ मिलकर फेसबुक पूरी दुनिया में डिजिटल विज्ञापन हासिल करने वाली सबसे बड़ी कंपनी है। इसके नाते उसकी जिम्मेदारी भी बनती है।

Saturday, September 30, 2017

असमानता भरा विकास

चुनींदा-1
बिजनेस स्टैंडर्ड के सम्पादक टीएन नायनन के साप्ताहिक कॉलम में इस बार टॉमस पिकेटी और लुकास चैसेल के एक ताजा शोधपत्र का विश्लेषण किया गया है। टॉमस पिकेटी हाल के वर्षों में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के संजीदा विश्लेषकों में शामिल किए जा रहे हैं। नायनन के आलेख का यह हिंदी अनुवाद है जो बिजनेस स्टैंडर्ड के हिंदी संस्करण में प्रकाशित हुआ है। पूरे लेख का लिंक नीचे दिया हैः-

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की धीमी प्रगति को लेकर मोदी सरकार गंभीर आलोचनाओं के घेरे में है। इस चर्चा से यह भी साफ होता है कि मुखर जनता की राय में जीडीपी वृद्धि ही ïराष्ट्रीय उद्देश्य के लिहाज से केंद्र में होनी चाहिए। बढ़ती असमानता के बारे में हाल में प्रकाशित एक शोधपत्र पर चर्चा न होना भी इतना ही महत्त्वपूर्ण है। थॉमस पिकेटी (कैपिटल के चर्चित लेखक) और सह-लेखक लुकास चैंसेल ने 'फ्रॉम ब्रिटिश राज टू बिलियनरी राज?' शीर्षक वाला यह पत्र पेश किया है।