Sunday, April 23, 2017

क्यों राष्ट्रीय महत्त्व का बन गया है एमसीडी चुनाव?

नज़रिया: दिल्ली एमसीडी चुनाव में किसका पलड़ा भारी


आम आदमी पार्टीइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

साल 2015 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की असाधारण जीत नहीं हुई होती तो आज आज दिल्ली नगर निगम के चुनावों का राष्ट्रीय महत्व नहीं होता.
इसी तरह हाल में अगर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में असाधारण जीत नहीं मिली होती तो एमसीडी के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की हार सुनिश्चित मान ली जाती. एंटी इनकम्बैंसी बड़ी गहरी है.
फिर भी यहाँ पार्टी जीत गई तो इसका मतलब है कि काम नहीं मोदी का नाम बोलता है. बीजेपी के पार्षदों के काम से जनता खुश नहीं रही. दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी अंदरूनी तौर पर बुरी तरह हिली हुई है. वह तो वैसे ही सिर झुकाकर हार मानने को तैयार नजर आती है.
पर पंजाब में उसकी सरकार बन जाने के बाद एमसीडी के चुनावों में उसकी उम्मीदें बँध गई हैं. राजौरी गार्डन की हार भी कांग्रेस को जीत जैसी खुशनुमा लगी, क्योंकि वह दूसरे नम्बर पर आ गई.
उसे अब लगता है कि आम आदमी पार्टी की घंटी बज गई है. उसका वोट अब कांग्रेस को मिलेगा. एमसीडी में जीतने वाले के साथ-साथ दूसरे नम्बर पर रहना भी महत्वपूर्ण होगा. हो तो यह भी सकता है कि किसी को पूर्ण बहुमत न मिले?

फटाफट राजनीति

गोवा, पंजाब और राजौरी गार्डन में आम आदमी पार्टी की हार ने टी-20 क्रिकेट जैसी फटाफट राजनीति की झलक दिखाई है. कहाँ तो सन 2015 में उम्मीद से कई गुना बड़ी जीत, और कहाँ जमानत जब्त. आम आदमी पार्टी बड़ी उम्मीदें लेकर एमसीडी चुनाव में उतरी थी, पर पहली सीढ़ी में ही धड़ाम होने का अंदेशा खड़ा हो गया है. चुनाव दो-तरफ़ा नहीं, तीन-तरफ़ा हो गया है.

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तीन कोने के चुनाव जोखिम भरे होते हैं. पार्टियों का जोड़-घटाना अपने पक्ष में पड़ने वाले वोटों से ज्यादा खिलाफ पड़ने वाले वोटों पर भी निर्भर करता है. अरविंद केजरीवाल ने चुनाव के ठीक पहले दिल्ली के भाजपा-विरोधी वोटरों से अपील की है कि वे अपना वोट कांग्रेस को देकर उसे बरबाद न करें. यह वैसी ही अपील है जैसी उत्तर प्रदेश के मुसलमान वोटरों से की थी कि वे भाजपा को हराना चाहते हैं तो अपना वोट बँटने न दें.

वीजा प्रतिबंध : एक नया व्यापार युद्ध

वैश्वीकरण भ्रामक शब्द है. प्राकृतिक रूप से दुनिया एक है, पर हजारों साल के राजनीतिक विकास के कारण हमने सीमा रेखाएं तैयार कर ली हैं. ये रेखाएं राजनीतिक सत्ता और व्यापार के कारण बनी थीं. बाजार का विकास बगैर व्यापार के सम्भव नहीं था. दुनिया का कोई भी देश अपनी सारी जरूरतों को पूरा नहीं कर सकता. राजनीतिक सीमा रेखाओं को पार करके जैसे ही व्यापारियों ने बाहर जाना शुरू किया, कानूनी बंदिशों ने शक्ल लेनी शुरू कर दी. जिस देश से व्यापारी बाहर जाता है, वहाँ की बंदिशें है, जिस देश से होकर गुजरेगा, वहाँ के बंधन हैं और जहाँ माल बेचेगा वहाँ की सीमाएं हैं. व्यापार केवल माल का ही नहीं होता. सेवाओं, पूँजी, मानव संसाधन और बौद्धिक सम्पदा का भी होता है.

दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया ने इन सवालों पर सोचना शुरू किया और इन बातों को लेकर लम्बा विमर्श शुरू हुआ. सन 1947 में 23 देशों ने जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एंड ट्रेड (गैट) पर दस्तखत करके इस वैश्विक वार्ता की पहल की. यह वार्ता 14 अप्रैल 1994 को मोरक्को के मराकेश शहर में पूरी हुई. उसके पहले 1986 से लेकर 1994 गैट के अंतर्गत बहुपक्षीय व्यापार वार्ताएं चलीं, जो लैटिन अमेरिका के उरुग्वाय से शुरू हुईं थीं. इसमें 123 देशों ने हिस्सा लिया और उसके बाद जाकर विश्व व्यापार संगठन की स्थापना हुई. पर वैश्वीकरण का काम इतने भर से पूरा नहीं हो गया. इसके बाद सन 2001 से दोहा राउंड शुरू हुआ, जिसे सन 2004 में पूरा हो जाना चाहिए था, और जो अब तक पूरा नहीं हो सका है.

Sunday, April 16, 2017

सावधान ‘आप’, आगे खतरा है

एक ट्रक के पीछे लिखा था, ‘कृपया आम आदमी पार्टी की स्पीड से न चलें...।’ आम आदमी पार्टी के लिए दिल्ली की राजौरी गार्डन विधानसभा सीट पर हुए उप चुनाव का परिणाम खतरनाक संदेश लेकर आया है। पार्टी इस हार पर ज्यादा चर्चा करने से घबरा रही है। उसे डर है कि अगले हफ्ते होने वाले एमसीडी के चुनावों के परिणाम भी ऐसे ही रहे तो लुटिया डूबना तय है। इसके बाद पार्टी का रथ अचानक ढलान पर उतर जाएगा। लगता है कि ‘नई राजनीति’ का यह प्रयोग बहुत जल्दी मिट्टी में मिलने वाला है।

हाल में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा है कि छह महीने में दिल्ली में एक बार फिर विधानसभा चुनाव होंगे। पता नहीं उन्होंने यह बात क्या सोचकर कही थी, पर यह सच भी हो सकती है। आम आदमी पार्टी का उदय जिस तेजी से हुआ था, वह तेजी उसकी दुश्मन साबित हो रही है। जनता ने उससे काफी बड़े मंसूबे बाँध लिए थे। पर पार्टी सामान्य दलों से भी खराब साबित हुई। उसमें वही लोग शामिल हुए जो मुख्यधारा की राजनीति में सफल नहीं हो पाए थे। हालांकि सन 2015 के चुनाव ने पार्टी को 70 में से 67 विधायक दिए थे, पर अब कितने उसके साथ हैं, कहना मुश्किल है।

Thursday, April 13, 2017

यह आम आदमी पार्टी की उलटी गिनती है

दिल्ली की राजौरी गार्डन विधानसभा सीट पर हुए उप चुनाव के परिणामों से आम आदमी पार्टी की उलटी गिनती शुरू हो गई है. एमसीडी के चुनाव में यही प्रवृत्ति जारी रही तो माना जाएगा कि ‘नई राजनीति’ का यह प्रयोग बहुत जल्दी मिट्टी में मिल गया.

उप-चुनावों के बाकी परिणाम एक तरफ और दिल्ली की राजौरी गार्डन सीट के परिणाम दूसरी तरफ हैं. जिस तरह से 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम नाटकीय थे, उतने ही विस्मयकारी परिणाम राजौरी गार्डन सीट के हैं.

आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसौदिया मानते हैं कि यह हार इसलिए हुई, क्योंकि इस इलाके की जनता जरनैल सिंह के छोड़कर जाने से नाराज थी. यानी पार्टी कहना चाहती है कि यह पूरी दिल्ली का मूड नहीं है, केवल राजौरी गार्डन की जनता नाराज है.

Monday, April 10, 2017

ईवीएम नहीं, निशाने पर चुनाव आयोग की साख है

हाल में भिंड में ईवीएम मशीन को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ उसके पीछे जो बात सामने आ रही है, वह यह कि एक अखबार की अस्पष्ट खबर के कारण संदेश गया कि ईवीएम का कोई भी बटन दबाया गया तब हर बार कमल की पर्ची बाहर निकली। चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि ऐसा नहीं हुआ था। बात का बतंगड़ बना था। इसके लिए प्रत्यक्षतः वह अखबार भी जिम्मेदार है, जिसने विवाद बढ़ जाने के बावजूद यह स्पष्ट नहीं किया कि उसके संवाददाता ने क्या देखा। 

चुनाव आयोग और देश के कुछ राजनीतिक दलों के बीच ईवीएम को लेकर विवाद आगे बढ़े उससे पहले सरकार और सुप्रीम कोर्ट को पहल करके कुछ बातों को स्पष्ट करना चाहिए। जिस तरह न्याय-व्यवस्था की साख को बनाए रखने की जरूरत है, उसी तरह देश की चुनाव प्रणाली का संचालन करने वाली मशीनरी की साख को बनाए रखने की जरूरत है। उसकी मंशा को ही विवाद का विषय बनाने का मतलब है, लोकतंत्र की बुनियाद पर चोट। इस वक्त हो यही रहा है, जनता के मन में यह बात डाली जा रही है कि मशीनों में कोई खराबी है।