डीएनए में मंजुल का कार्टून। मोदी- आतंक का मदरशिप। शी-बहुत आकर्षक। |
एलओसी पर भारत के सर्जिकल स्ट्राइक्स से देश के
भीतर मोदी सरकार को राजनीतिक रूप से ताकत मिली है। हालांकि इसके राजनीतिक दोहन की
भाजपा विरोधियों ने निन्दा की है, पर वे सरकार को इसका श्रेय लेने से रोक भी नहीं
सकते। बावजूद इसके पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय राजनय में अलग-थलग करने की मोदी
सरकार की कोशिशों को उस हद तक सफलता भी नहीं मिली है, जितना दावा किया जा रहा है।
नरेन्द्र मोदी को ब्रिक्स देशों के गोवा में हुए
सम्मेलन में पाकिस्तान के खिलाफ आवाज बुलंद करने का मौका मिला भी। उन्होंने कहा कि हमारा पड़ोसी आतंकवाद की
जन्मभूमि है। दुनिया भर के आतंकवाद के मॉड्यूल इसी (पाकिस्तान) से जुड़े हैं। वह
आतंकियों को पनाह देता है और आतंकवाद की सोच को भी बढ़ावा देता है। उन्होंने
पाकिस्तान को आतंक का 'मदर-शिप' बताया। उन्होंने यह भी कहा कि ‘ब्रिक्स’ को इस खतरे के खिलाफ एक सुर में बोलना चाहिए।
मोदी की इस अपील के
बावजूद चीन और रूस ने जो रुख अपनाया, उससे हमें निष्कर्ष निकालना चाहिए कि ये देश
हमारी समस्या को अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का हिस्सा नहीं मानते है। इतना ही नहीं चीन
ने गोवा सम्मेलन के दौरान और उसके बाद साफ-साफ पाकिस्तान के समर्थन में बयान दिए। चीन
के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने मोदी के बयान के बाद कहा, “We should also address issues on the ground with concrete efforts and a
multi-pronged approach that addresses both symptoms and root causes.” यह पाकिस्तान
का नजरिया है कि कश्मीर की मूल समस्या का समाधान किए बगैर आतंकवाद की समस्या का
समाधान सम्भव नहीं है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने अपने वक्तव्य में आतंकवाद का
जिक्र भी नहीं किया।
ब्रिक्स 109 पैराग्राफ के गोवा घोषणापत्र में उड़ी में हमले
का नाम लिए बगैर सामान्य
सा हवाला दिया गया। दस्तावेज में आतंकवादी गिरोहों के नाम पर ISIL और Jabhat Al-Nursra के नाम हैं, पर लश्करे तैयबा और जैशे
मोहम्मद के नाम नहीं हैं। इसपर भारत के आर्थिक मामलों के विदेश सचिव अमर सिन्हा का
कहना था कि दोनों पाकिस्तानी संगठन भारत के विरुद्ध केन्द्रित हैं, हम इन संगठनों
के नाम जुड़वाने में कामयाब नहीं हो पाए।