Wednesday, March 23, 2016

भगत सिंह का लेख 'मैं नास्तिक क्यों हूँ?'

ताकि सनद रहे : भगतसिंह (1931)
                       

यह लेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था और यह 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार “ द पीपल “ में प्रकाशित हुआ । इस लेख में भगतसिंह ने ईश्वर की उपस्थिति पर अनेक तर्कपूर्ण सवाल खड़े किये हैं और इस संसार के निर्माण , मनुष्य के जन्म , मनुष्य के मन में ईश्वर की कल्पना के साथ साथ संसार में मनुष्य की दीनता , उसके शोषण , दुनिया में व्याप्त अराजकता और और वर्गभेद की स्थितियों का भी विश्लेषण किया है । यह भगत सिंह के लेखन के सबसे चर्चित हिस्सों में रहा है।
स्वतन्त्रता सेनानी बाबा रणधीर सिंह 1930-31के बीच लाहौर के सेन्ट्रल जेल में कैद थे। वे एक धार्मिक व्यक्ति थे जिन्हें यह जान कर बहुत कष्ट हुआ कि भगतसिंह का ईश्वर पर विश्वास नहीं है। वे किसी तरह भगत सिंह की कालकोठरी में पहुँचने में सफल हुए और उन्हें ईश्वर के अस्तित्व पर यकीन दिलाने की कोशिश की। असफल होने पर बाबा ने नाराज होकर कहा, “प्रसिद्धि से तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है और तुम अहंकारी बन गए हो जो कि एक काले पर्दे के तरह तुम्हारे और ईश्वर के बीच खड़ी है। इस टिप्पणी के जवाब में ही भगतसिंह ने यह लेख लिखा।

एक नया प्रश्न उठ खड़ा हुआ है। क्या मैं किसी अहंकार के कारण सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी तथा सर्वज्ञानी ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास नहीं करता हूँ? मेरे कुछ दोस्त – शायद ऐसा कहकर मैं उन पर बहुत अधिकार नहीं जमा रहा हूँ – मेरे साथ अपने थोड़े से सम्पर्क में इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये उत्सुक हैं कि मैं ईश्वर के अस्तित्व को नकार कर कुछ ज़रूरत से ज़्यादा आगे जा रहा हूँ और मेरे घमण्ड ने कुछ हद तक मुझे इस अविश्वास के लिये उकसाया है। मैं ऐसी कोई शेखी नहीं बघारता कि मैं मानवीय कमज़ोरियों से बहुत ऊपर हूँ। मैं एक मनुष्य हूँ, और इससे अधिक कुछ नहीं। कोई भी इससे अधिक होने का दावा नहीं कर सकता। यह कमज़ोरी मेरे अन्दर भी है। अहंकार भी मेरे स्वभाव का अंग है। अपने कामरेडो के बीच मुझे निरंकुश कहा जाता था। यहाँ तक कि मेरे दोस्त श्री बटुकेश्वर कुमार दत्त भी मुझे कभी-कभी ऐसा कहते थे। कई मौकों पर स्वेच्छाचारी कह मेरी निन्दा भी की गयी। कुछ दोस्तों को शिकायत है, और गम्भीर रूप से है कि मैं अनचाहे ही अपने विचार, उन पर थोपता हूँ और अपने प्रस्तावों को मनवा लेता हूँ। यह बात कुछ हद तक सही है। इससे मैं इनकार नहीं करता। इसे अहंकार कहा जा सकता है। जहाँ तक अन्य प्रचलित मतों के मुकाबले हमारे अपने मत का सवाल है। मुझे निश्चय ही अपने मत पर गर्व है। लेकिन यह व्यक्तिगत नहीं है। ऐसा हो सकता है कि यह केवल अपने विश्वास के प्रति न्यायोचित गर्व हो और इसको घमण्ड नहीं कहा जा सकता। घमण्ड तो स्वयं के प्रति अनुचित गर्व की अधिकता है। क्या यह अनुचित गर्व है, जो मुझे नास्तिकता की ओर ले गया? अथवा इस विषय का खूब सावधानी से अध्ययन करने और उस पर खूब विचार करने के बाद मैंने ईश्वर पर अविश्वास किया?

Sunday, March 20, 2016

पंजाब में पानी की खतरनाक राजनीति

सतलुज-यमुना लिंक नहर के विवाद में पानी सिर के ऊपर जाए इससे पहले ही केंद्र सरकार को अब अपनी भूमिका निभानी चाहिए। पंजाब विधानसभा ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना करते हुए यह कहते हुए नहर के निर्माण के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया है कि उसके पास हरियाणा को देने के लिए पानी नहीं है। पंजाब विधानसभा के चुनाव करीब होने के कारण इसे पंजाब का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है, पर यह बात राष्ट्रीय एकता के खिलाफ है और इसके दूरगामी दुष्परिणाम होंगे।

पंजाब के तकरीबन सभी राजनीतिक दल इस मामले को चुनाव के नजरिए से देख रहे हैं। शिरोमणि अकाली दल ने कांग्रेस से यह मुद्दा छीन लिया है। अकाली दल विधानसभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास कराने में कामयाब हुआ है। उसका सहयोगी दल होने के नाते भारतीय जनता पार्टी ने भी उसका साथ दिया है। पर हरियाणा में भी उसकी सरकार है। उधर आम आदमी पार्टी भी इसे चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश में है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जल्दबाजी में इस विवाद का रुख हरियाणा-दिल्ली के विवाद के रूप में मोड़ दिया था। अलबत्ता उन्होंने फौरन ही अपने रुख को बदला।

Friday, March 18, 2016

'माँ' का रूपक भाजपाई क्यों है?

बीबीसी हिंदी के पत्रकार जुबैर अहमद ने लिखा है, ‘बचपन में मेरे एक दूर के मामा ने मेरे गाल पर ज़ोरदार तमाचा लगाया, क्योंकि मैं अपने कमरे में अकेले 'जन गण मन अधिनायक जय हे' गा रहा था। तमाचा लगाते समय वो डांट कर बोले, "अबे, हिंदू हो गया है क्या?" मेरे मामा कोई मुल्ला नहीं थे लेकिन उनकी सोच मुल्लों वाली थी। असदुद्दीन ओवेसी की बातों से मुझे अपने दूर के मामा की याद आ जाती है। भारत माता की जय कहने से इनकार करना उनका अधिकार ज़रूर है लेकिन केवल इसीलिए इसका विरोध करना कि मोहन भागवत ने इसकी सलाह दी है, सही नहीं है।’ 

दूसरी ओर यह भी सही है कि देश के गैर-हिन्दुओं पर यह बात जबरन लादी नहीं जा सकती। देखना यह भी होगा कि हमारी भारतमाता देश को धर्मनिरपेक्ष बनाना चाहती है या धार्मिक राज्य बनाने का संदेश देती है। साथ ही यह भी कि क्या हमारे राष्ट्र-राज्य को हिन्दू प्रतीकों और मुहावरों से मुक्त किया जा सकता है? 

Tuesday, March 15, 2016

सवाल विज्ञान-मुखी बनने का है

विजय माल्या के पलायन, देश-द्रोह और भक्ति से घिरे मीडिया की कवरेज में विज्ञान और तकनीक आज भी काफी पीछे हैं. जबकि इसे विज्ञान और तकनीक का दौर माना जाता है. इसकी वजह हमारी अतिशय भावुकता और अधूरी जानकारी है. विज्ञान और तकनीक रहस्य का पिटारा है, जिसे दूर से देखते हैं तो लगता है कि हमारे जैसे गरीब देश के लिए ये बातें विलासिता से भरी हैं. नवम्बर 2013 में जब हमारा मंगलयान अपनी यात्रा पर रवाना हुआ था तब कई तरह के सवाल किए गए थे. उस साल के आम बजट से आँकड़े निकालकर सवाल किया गया था कि माध्यमिक शिक्षा के लिए पूरा खर्च 3,983 करोड़ रुपए और अकेले मंगलयान पर 450 करोड़ रुपए क्यों? इस रकम से ढाई सौ नए स्कूल खोले जा सकते थे. 

Sunday, March 13, 2016

‘रेरा’ के दाँत पैने करने होंगे

रियल एस्टेट विधेयक इस हफ्ते गुरुवार को राज्यसभा में पारित हो गया। विधेयक में रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (रेरा) के गठन की व्यवस्था है। सरकार ने इस विधेयक के पारित होने से पहले राज्यसभा की प्रवर समिति द्वारा सुझाए गए 20 संशोधनों को स्वीकार किया। विधेयक को अब लोकसभा में पेश किया जाएगा। पूरी तरह कानून बन जाने के बाद यह कानून मकान खरीदने वालों का मददगार साबित होगा। अलबत्ता इस दिशा में हमें और ज्यादा विचार करने की जरूरत है। खासतौर से ‘रेरा’ के दाँत पैने करने होंगे। 

‘भूमि’ चूंकि राज्य विषय है, इसलिए इस सिलसिले में राज्यों के कानून लागू होते हैं। इस बिल का दायरा खरीदार और प्रमोटर के बीच समझौते और सम्पत्ति के हस्तांतरण तक सीमित है। ये दोनों मामले समवर्ती सूची में आते हैं। इसके वास्तविक प्रभाव को देखने के लिए केंद्रीय कानून को राज्यों के अपार्टमेंट एक्ट के साथ मिलाकर देखना होगा। यह कानून भविष्य के निर्माणों पर लागू होने वाला है। जरूरत इस बात की भी है कि जो योजनाएं पूरी हो चुकी हैं और जिन्हें लेकर ग्राहकों को शिकायतें है उनके बारे में भी कोई व्यवस्था हो।