Wednesday, December 24, 2014

Modi year ends on Modi note आज के कुछ पठनीय आलेख

आज के अखबारों में जम्मू-कश्मीर और झारखंड के चुनाव परिणाम छाए हैं। मीडिया अभी तय नहीं कर पा रहीा है कि मोदी वेव थमी है या चल रही है। यह वेव कभी थी भी या नहीं। ज्यादातर लोग अपनी पूर्व निर्धारित धारणाओं के आधार पर फैसले कर रहे हैं। ज्यादातर निष्कर्ष कश्मीर को लेकर हैं। कश्मीर की राजनीति अचानक देश की सुर्खियों में है। इस राज्य में बीजेपी की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकती है, पहले ऐसा सोचा न गया होगा। देखें आज की कुछ कतरनें
हिंदू में केशव का कार्टून
आज के कुछ पठनीय आलेख
No rabbit in his hat
Suhas Palshikar in Indian express

The distance between Jammu and Kashmir
Muzamil Jaleel in Indian Express

क्षेत्रीय दलों के बिखराव का नतीजा

प्रभात खबर, रांची

प्रभात खबर, रांची
‘राज्य’ से आगे निकलता ‘राष्ट्रीय’
प्रभात खबर, रांची

क्या नरेंद्र 'अटल' बनेंगे

अमर उजाला

अमर उजाला

Tuesday, December 23, 2014

राजनीति अब और करवट लेगी

राष्ट्रीय राजनीति में भारी बदलाव की आहट

  • 3 मिनट पहले
जम्मू-कश्मीर, चुनाव
भारत प्रशासित जम्‍मू कश्‍मीर राज्य और झारखंड के विधानसभा चुनाव परिणामों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रभाव क्षेत्र के विस्तार को स्थापित किया है.
दोनों राज्यों में उसे अब तक की सबसे बड़ी सफलता हासिल हुई है. जम्मू-कश्मीर में पार्टी पहली बार असाधारण रूप से महत्वपूर्ण स्थिति में पहुँच गई है.
इससे केवल राज्य की राजनीति ही प्रभावित नहीं होगी, बल्कि इसका व्यापक राष्ट्रीय असर होगा. सम्भवतः भाजपा की अनेक अतिवादी धारणाएं पृष्ठभूमि में चली जाएंगी.
उसे राष्ट्रीय राजनीति के बरक्स अपने भीतर लचीलापन पैदा करना होगा.

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भाजपा, समर्थक
भाजपा का दावा है कि जम्मू-कश्मीर का मौजूदा चुनाव उसकी दीर्घकालीन राजनीति का एक चरण है. यानी वह राज्य में ज़्यादा बड़ी भूमिका निभाने का इरादा रखती है.
इसकी परीक्षा अगले एक-दो दिन में ही हो जाएगी. देखना यह होगा कि क्या पार्टी कश्मीर में सरकार बनाने की कोशिश करेगी.
दूसरी ओर झारखंड में भाजपा को पिछली बार की तुलना में सफलता ज़रूर मिली है, पर उसे गठबंधन का सहारा लेना होगा.
यानी राज्य को गठबंधन-राजनीति से पूरी तरह मुक्ति नहीं मिलेगी. इसका मतलब यह भी है कि पार्टी ने सही समय पर वक़्त की नब्ज़ को पढ़ा और आजसू (ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन) से गठबंधन किया.

Monday, December 22, 2014

कट्टरता का जवाब है वैचारिक समझदारी


आज के इंडियन एक्सप्रेस के दो आइटम ध्यान खींचने वाले हैं। अखबार के एक्सप्रेस अड्डा कार्यक्रम में अमर्त्य सेन ने नरेंद्र मोदी के साथ अपने मतभेदों का जिक्र करते हुए यह भी कहा कि मोदी ने इस उम्मीद को कायम किया कि बहुत कुछ हो भी सकता है। उन्होंने मोदी के शौचालय कार्यक्रम की प्रशंसा की और यह भी माना कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने दूसरे कार्यकाल में काम करके दिखा नहीं पाए। आज के एक्सप्रेस ने गोवा के एक कार्यक्रम से सुषमा स्वराज के एक वक्तव्य को उधृत किया है, जिसमें स्वराज ने उदारता और सहिष्णुता के रास्ते को उचित बताया है। हार्डकोर हिन्दुत्व से जुड़े बयानों के बीच सुषमा स्वराज का यह बयान आश्वस्तिकारक है। आज के एक्सप्रेस में पाकिस्तानी पत्रकार हामिद मीर का लेख भी कुछ बुनियादी सवाल उठाता है। एक्सप्रेस में पाकिस्तान के पूर्व विदेशमंत्री खुरशीद महमूद कसूरी का इंटरव्यू भी पढ़ने लायक है, जिसमें उन्होंने ट्रैक टू की बातचीत को उपयोगी बताया है। 


Sunday, December 21, 2014

कांग्रेस का सबसे डरावना साल

कांग्रेस के लिए यह साल आसमान से जमीन पर गिरने का साल था। दस साल पहले कुछ ऐसी परिस्थितियाँ बनीं जिनमें कांग्रेस पार्टी को न केवल सत्ता में आने का मौका मिला बल्कि नेहरू-गांधी परिवार को फिर से पार्टी की बागडोर हाथ में लेने का पूरा मौका मिला। इस साल अचानक सारी योजना फेल हो गई और अब पार्टी गहरे खड्ड की और बढ़ रही है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सबसे बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। उसके ठीक पहले और बाद में हुए सभी विधानसभा चुनावों में भी उसकी हार हुई। इन दिनों हो रहे जम्मू-कश्मीर और झारखंड विधानसभा चुनावों के परिणाम 23 दिसम्बर को आने के बाद पराभव का पहिया एक कदम और आगे बढ़ जाएगा।

उत्साहवर्धक है कश्मीर की वोटिंग

बहुत कुछ कहता है भारी मतदान

  • 51 मिनट पहले

चुनाव, कश्मीर

झारखंड और भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव अपने राजनीतिक निहितार्थ के अलावा सुरक्षा व्यवस्था के लिहाज़ से महत्वपूर्ण होते हैं.
इन दोनों राज्यों में शांतिपूर्ण तरीक़े से मतदान होना चुनाव व्यवस्थापकों की सफलता को बताता है और मतदान का प्रतिशत बढ़ना वोटर की जागरूकता को.
दोनों राज्यों के हालात एक-दूसरे से अलग हैं, पर दोनों जगह एक तबक़ा ऐसा है जो चुनावों को निरर्थक साबित करता है.
इस लिहाज से भारी मतदान होना वोटर की दिलचस्पी को प्रदर्शित करता है.

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चुनाव, कश्मीर

भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों ने चुनाव के बहिष्कार का आह्वान किया था और झारखंड में माओवादियों का डर था.
दोनों राज्यों में भारी मतदान हुआ. यूं भी सन 2014 को देश में भारी मतदान के लिए याद किया जाएगा. साल का अंत भारतीय लोकतंत्र के लिए कुछ अच्छी यादें छोड़कर जा रहा है.
भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर में पिछले 25 साल का सबसे भारी मतदान इस बार हुआ है.
सन 2002 के विधान सभा चुनावों ने कश्मीर में नया माहौल तैयार किया था, पर घाटी में मतदान काफ़ी कम होता था. पर इस बार कहानी बदली हुई है.
इस चुनाव का सबसे महत्वपूर्ण पहले और दूसरे दौर का मतदान था. दोनों में 71 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट पड़े.