Thursday, January 30, 2014

1984 के दंगों पर फँसी कांग्रेस और एनसीपी की मोदी पर असहमति

धारा 377 पर मंजुल का कार्टून
राहुल गांधी के इंटरव्यू के बाद मोदी पर हमले होने के बजाय उल्टे कांग्रेस फँस गई है। इधर नेकां और एनसीपी ने कांग्रेस की मुसीबत और बढ़ा दी है। नेपथ्य में कांग्रेस की पराजय का शोर सुनाई पड़ रहा है। उधर दिल्ली में आप वाले आप स्टाइल के आंदलनों की चपेट में हैं और आप सरकार पुरानी सरकारों की तरह कर्मचारियों को बर्खास्त करने की धमकी दे रही है। एक रोचक खबर यह है कि सरकार निजी एयरलाइंसों में सांसदों को शाही सुविधाएं देना चाहती है। आज की कतरनों पर नजर डालें
नवभारत टाइम्स

Wednesday, January 29, 2014

राहुल से राज ठाकरे तक

इंडियन एक्सप्रेस में उन्नी का कार्टून



मंजुल का कार्टून

हिंदू में केशव का कार्टून

आज दिल्ली के अखबारों के लिए सबसे बड़ी खबर आठ करोड़ के डाके की है। इस डाके के पीछे जिस गिरोह का भी हाथ हो उसने हाल में चार ऐसी घटनाएं की हैं। पिछले हफ्ते हम दिल्ली की अराजकता को लेकर बेचैन थे। यह घटना उस अराजकता की परिचायक है। अलबत्ता आठ करोड़ जैसी बड़ी रकम इस तरीके से जा रही थी, यह भी विचारणीय है। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर है कि यह रकम जिसकी है, वे बुकी भी हैं और हैंसी क्रोन्ये वाले मामले से जुड़े रहे हैं। भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने आँकड़े जारी किए हैं जिनके अनुसार देश में पिछले दशक में औसत आयु में पाँच साल का इजाफा हुआ है। टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर पहले सफे पर और इसी से जुड़ा भारत निर्माण का विज्ञापन आखिरी सफे पर है। यह विज्ञापन काफी अखबारों में है। लोकसभा चुनाव के पहले इस किस्म के विज्ञापन और आएंगे। पर मोटे तौर पर मीडिया पर आज भी राहुल का इंटरव्यू हावी है।

                                            अमर उजाला


Tuesday, January 28, 2014

राहुल सवालों को टालेंगे तो फँसेंगे

 मंगलवार, 28 जनवरी, 2014 को 16:52 IST तक के समाचार
राहुल गांधी की सरलता को लेकर सवाल नहीं है. पार्टी की व्यवस्था को रास्ते पर लाने की उनकी मनोकामना को लेकर संशय नहीं. वह सच्चे मन से अपनी बात कहते हैं, इससे भी इनकार नहीं.
पर लगता है कि कांग्रेस को घेरने वाले जटिल सवालों की गंभीरता से या तो वह वाकिफ नहीं हैं, वाकिफ होना नहीं चाहते या पार्टी और सरकार ने उन्हें वाकिफ होने नहीं दिया है.
पिछले दस साल की सक्रिय राजनीति में राहुल का यह पहला इंटरव्यू था. उम्मीद थी कि वह अपने मन की बातें दमदार तरीके से कहेंगे.
खासतौर से इस महीने हुई कांग्रेस महासमिति की बैठक में उनके उत्साहवर्धक भाषण के संदर्भ में उम्मीद काफी थी. पर ऐसा हो नहीं पाया.
उनसे काफी तीखे सवाल पूछे गए, जिनके तीखे जवाब देने के बजाय वह सवालों को टालते नजर आए.
उनसे पूछा गया कि वह टू जी के मामले में कुछ क्यों नहीं बोले, कोल-गेट मामले में चुप क्यों रहे? पवन बंसल और अश्विनी कुमार के मामले में संसद में छह दिन तक गतिरोध रहा, आपको नहीं लगता कि उस समय बोलना चाहिए था? महंगाई पर नहीं बोलना चाहिए था?

राहुल के इंटरव्यू के निहितार्थ


आज सुबह के अखबारों से लेकर दिन के मीडिया तक पर राहुल का इंटरव्यू छाया है। राहुल का मीडिया के सामने जाना बहादुरी का परिचायक है, पर उनकी तैयारी कच्ची थी। दिल्ली में आप सरकार का एक महीना पूरा हो गया। इसकी रस्म अदायगी भी मीडिया में हो रही है। 

                                         अमर उजाला


राष्ट्रपति के भाषण की राजनीति

हमारे राष्ट्रपतियों के भाषण अक्सर बौद्धिक जिज्ञासा के विषय होते हैं. माना जाता है कि भारत का राष्ट्रपति देश की राजनीतिक सरकार के वक्तव्यों को पढ़ने का काम करता है. एक सीमा तक ऐसा है भी, पर ऐसे राष्ट्रपति हुए हैं, जिन्होंने सामयिक हस्तक्षेप किए हैं और सरकार की राजनीति के बाहर जाकर भी कुछ कहा. गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के राष्ट्र के नाम सम्बोधन को राजनीति मानें या राजनीति और संवैधानिक मर्यादाओं को लेकर उनके मन में उठ रहे प्रश्नों की अभिव्यक्ति? यह सवाल इसलिए उठा क्योंकि गणतंत्र दिवस के ठीक पहले दिल्ली में आम आदमी पार्टी का धरना चल रहा था. देश भर में इस बात को लेकर चर्चा थी कि क्या ऐसे मौके पर यह धरना उचित है? क्या अराजकता का नाम लोकतंत्र है? संवैधानिक मर्यादा की रक्षा करने की शपथ लेने वाले मुख्यमंत्री को क्या निषेधाज्ञा का उल्लंघन करना चाहिए?