पिछली 1 मार्च को पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचारजी का 67 वाँ जन्मदिन था। उस रोज दिल्ली में हुए संवाददाता सम्मेलन में देश के मुख्य चुनाव आयुक्त ने चार राज्यों और एक केन्द्र शासित क्षेत्र पुदुच्चुरी में विधानसभा चुनाव की घोषणा की। बुद्धदेव के लिए यह खुशनुमा तोहफा नहीं था। अब से 13 मई के बीच कोई चमत्कार न हुआ तो लोकतांत्रिक पद्धति से चुनी गई दुनिया की सबसे पुरानी सरकार कम्युनिस्ट सरकार के हारने के पूरे आसार हैं। चौंतीस साल कम नहीं होते। देश का ध्यान इन दिनों बजट पर लगा है। बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुदुच्चेरी में चुनाव की घोषणा मामूली खबर की तरह अखबारों के पन्नों में छिपी रह गई। पर आने वाले विधानसभा चुनाव कई मायनों में निर्णायक साबित होने वाले हैं। वाम मोर्चा की समूची राजनीति दाँव पर है। केरल और बंगाल हार जाने के बाद उनके पास बचता ही क्या है।
वाम मोर्चा के साथ-साथ कांग्रेस और यूपीए दोनों के लिए के लिए ये चुनाव महत्वपूर्ण साबित होने वाले हैं। इन चुनावों का पहला असर संसद के चालू बजट सत्र पर पड़ेगा। अनुमान है कि यह सत्र अब 21 के बजाय 8 अप्रेल को खत्म हो जाएगा। चुनाव प्रक्रिया तो मार्च से ही शुरू हो चुकी होगी। 4 अप्रेल को असम में मतदान का पहला दौर भी पूरा हो जाएगा। बंगाल में छह दौर के मतदान के पहले शेष तीनों राज्यों और एक केन्द्र शासित क्षेत्र में मतदान पूरा हो चुका होगा। पिछले साल बिहार में छह दौर के लम्बे मतदान कार्यक्रम के कारण हिंसा और अराजकता पर काफी नियंत्रण रहा। बंगाल की स्थिति बिहार से भी खराब है।