भारत-बांग्लादेश रिश्तों में विलक्षणता है। दोनों एक-दूसरे के लिए ‘विदेश’ नहीं हैं। 1947 में जब पाकिस्तान बना था, तब वह ‘भारत’ की एंटी-थीसिस के रूप में उभरा था, और आज भी खुद को भारत के विपरीत साबित करना चाहता है। अपने ‘सकल-बांग्ला’ परिवेश में बांग्लादेश, ‘भारत’ जैसा लगता है, विरोधी नहीं। ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें ऐसी एकता पसंद नहीं, हमारे यहाँ और उनके यहाँ भी। बांग्लादेश के कुछ विश्लेषक, शेख हसीना के विरोधी खासतौर से मानते हैं कि पिछले एक दशक में भारत का प्रभाव कुछ ज़्यादा ही बढ़ा है। तब इन दिनों जो मैत्री नजर आ रही है, वह क्या केवल शेख हसीना की वजह से है? ऐसा है, तो उनके बाद क्या होगा?
विभाजन की कड़वाहट
दक्षिण एशिया में विभाजन की कड़वाहट अभी तक कायम
है, पर यह एकतरफा और एक-स्तरीय नहीं है। पाकिस्तान का सत्ता-प्रतिष्ठान
भारत-विरोधी है, फिर भी वहाँ जनता के कई तबके ‘भारत
में अपनापन’ भी देखते हैं। बांग्लादेश का सत्ता-प्रतिष्ठान
भारत-मित्र है, पर कट्टरपंथियों का एक तबका ‘भारत-विरोधी’ भी है। भारत में भी एक तबका बांग्लादेश
के नाम पर भड़कता है। उसकी नाराजगी ‘अवैध-प्रवेश’ को लेकर है या उन भारत-विरोधी
गतिविधियों के कारण जिनके पीछे सांप्रदायिक कट्टरपंथी हैं। पर भारतीय राजनीति,
मीडिया और अकादमिक जगत में बांग्लादेश के प्रति आपको कड़वाहट नहीं मिलेगी।
शायद इन्हीं वजहों से पड़ोसी देशों में भारत के सबसे अच्छे रिश्ते बांग्लादेश के
साथ हैं।
पचास साल का अनुभव है कि बांग्लादेश जब उदार
होता है, तब भारत के करीब होता है। जब कट्टरपंथी होता है,
तब भारत-विरोधी। शेख हसीना के नेतृत्व में अवामी लीग की सरकार के साथ
भारत के अच्छे रिश्तों की वजह है 1971 की वह ‘विजय’ जिसे दोनों देश मिलकर मनाते
हैं। वही ‘विजय’ कट्टरपंथियों
के गले की फाँस है। पिछले 12 वर्षों में अवामी लीग की
सरकार ने भारत के पूर्वोत्तर में चल रही देश-विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाने में
काफी मदद की है। भारत ने भी शेख हसीना के खिलाफ हो रही साजिशों को उजागर करने और
उन्हें रोकने में मदद की है।
लोकतांत्रिक अनुभव
शायद इन्हीं कारणों से जब 2014 के चुनाव हो रहे
थे, तब भारत ने उन चुनावों में दिलचस्पी दिखाई थी
और हमारी तत्कालीन विदेश सचिव सुजाता सिंह ढाका गईं थीं। उस चुनाव में खालिदा जिया
के मुख्य विरोधी-दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने चुनाव का बहिष्कार किया था। दुनिया
के कई देश उस चुनाव की आलोचना कर रहे थे। भारत ने समर्थन किया था, इसलिए कि
बांग्लादेश में अस्थिरता का भारत पर असर पड़ता है।
उस विवाद से सबक लेकर भारत ने 2018 के चुनाव में ऐसा कोई प्रयास नहीं किया, जिससे लगे कि हम उनकी चुनाव-व्यवस्था में हस्तक्षेप कर रहे हैं। उस चुनाव में अवामी लीग ने कुल 300 में से 288 सीटों पर विजय पाई। दुनिया के मुस्लिम-बहुल देशों में बांग्लादेश का एक अलग स्थान है। वहाँ धर्मनिरपेक्षता बनाम शरिया-शासन की बहस है। बांग्लादेश इस अंतर्विरोध का समाधान करने में सफल हुआ, तो उसकी सबसे महत्वपूर्ण सफलता माना जाएगा।
बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद 1972 में
भारत-बांग्लादेश के बीच 25-वर्ष की एक मैत्री-संधि हुई थी। उस संधि के बाद 1973
में एक व्यापार समझौता हुआ और 1974 में मुजीब-इंदिरा सीमा समझौता हुआ। इन समझौतों
में भविष्य की योजनाएं थीं, पर 1975 में शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या
के बाद इन रिश्तों को धक्का लगा। बांग्लादेश में भारत-विरोधी ताकतें सक्रिय हो
गईं। उसके बाद 2009 में अवामी लीग की सरकार की वापसी तक जितनी सरकारें भी वहाँ
बनीं उन्होंने इतिहास को विकृत करने का काम किया और अपने नागरिकों के मन में भारत
के प्रति घृणा भरने का काम किया। एक पूरी पीढ़ी के दिमाग़ में ये विचार भरे गए।
इस्लाम और धर्मनिरपेक्षता
अब बांग्लादेश एक निराला प्रयोग करना चाहता है।
स्वतंत्र देश बनने के बाद उसने धर्मनिरपेक्षता को अंगीकार किया था, पर 1975 में शेख मुजीब की हत्या के बाद व्यवस्था बदली और 1988 में
फौजी शासक एचएम इरशाद ने इस्लाम को राष्ट्रीय धर्म घोषित कर दिया। अब अवामी लीग
सरकार के सूचना मंत्री मुराद हसन ने कहा कि देश में 1972 के धर्मनिरपेक्ष संविधान
की वापसी और राष्ट्रीय धर्म के तौर पर इस्लाम की मान्यता ख़त्म होगी।
मुराद हसन ने यह घोषणा गत 14 अक्टूबर को की थी।
ऐसे वक़्त में, जब देश में ईशनिंदा की अफ़वाहों को
लेकर हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं। जवाब में जमात-ए-इस्लामी और हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम
जैसे कट्टरपंथी समूहों ने धमकी दी कि बिल पेश किया तो खून की नदियाँ बहेंगी। शेख
हसीना धर्मनिरपेक्षता की वापसी चाहती हैं, पर क्या अवामी
लीग के भीतर इस प्रश्न पर आम सहमति है? कहना मुश्किल है।
अफगानिस्तान की अनुभव है कि लोकतांत्रिक तरीके
से चुनी गई सरकारें यदि आत्मरक्षा न कर पाएं, तो
उनका अस्तित्व दाँव पर रहता है। बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार ने बहुत बड़ा
संकल्प हाथ में ले लिया है। देश में कट्टरपंथियों का मुकाबला करने वाला एक बड़ा
प्रगतिशील तबका भी मौजूद है। क्या वे कट्टरपंथियों को काबू में रख पाएंगी और कब तक?
देश में अगले चुनाव 2023 में होंगे। क्या वे भविष्य में सत्ता पर
काबिज रहेंगी?
पिछला चुनाव जीतने के बाद शेख हसीना ने कहा था
कि 2023 के बाद मेरी दिलचस्पी प्रधानमंत्री बनने में नहीं है। उनके नेतृत्व में
बांग्लादेश ने आर्थिक प्रगति की है और कट्टरपंथी तबकों को काबू में किया है,
पर उन्हें लोकतांत्रिक मूल्यों का रक्षक नहीं माना जा रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति की तरफ से 9 और 10 दिसंबर को हुए लोकतांत्रिक देशों के शिखर
सम्मेलन में पाकिस्तान को बुलाया गया, बांग्लादेश को
नहीं। तुर्रा यह कि पाकिस्तान ने चीन के प्रति अपना समर्थन दिखाने के लिए सम्मेलन
का बहिष्कार किया, जबकि बांग्लादेश इसमें शामिल होने को
उत्सुक था।
संबंधों की वापसी
भारत-बांग्लादेश सीमा चार हजार 96 किलोमीटर
लंबी है। दोनों देश 54 नदियों के पानी का साझा इस्तेमाल करते हैं। दक्षिण एशिया
में भारत का सबसे बड़ा व्यापार-सहयोगी बांग्लादेश है। 2009 में अवामी लीग की सरकार
बनने के बाद भारत के साथ बांग्लादेश के संबंधों में तेज़ी से सुधार हुआ। ऐसे कई
मुद्दों पर समझौते हुए जो दशकों से अटके पड़े थे। 2014 में तकरीबन चार दशक से चले
आ रहे समुद्री सीमा विवाद का खत्म होना रिश्तों के महत्व को स्थापित कर गया।
इसके पहले 2012 में बांग्लादेश और म्यांमार के
बीच भी इसी प्रकार का एक निपटारा हुआ था। बंगाल की खाड़ी से जुड़े तीनों देश अब
सागर के आर्थिक दोहन के लिए मिलकर काम कर सकेंगे। सन 2006 में भारत ने इस इलाके
में लगभग 100 ट्रिलियन घन फुट प्राकृतिक गैस होने का पता लगाया था। माना जाता है
कि यहाँ का गैस भंडार कृष्णा कावेरी बेसिन में उपलब्ध गैस का लगभग दुगना है।
विवादों के कारण इस इलाके में तेल खोजने का काम रुका हुआ था।
2015 में दोनों देशों के बीच लैंड बाउंडरी
एग्रीमेंट (एलबीए) के तहत 111 एनक्लेव का हस्तांतरण हुआ। अप्रैल, 2017 में परमाणु ऊर्जा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।
बांग्लादेश के पहले नाभिकीय बिजलीघर के लिए भारत और रूस के साथ त्रिपक्षीय समझौता
है। अब सामरिक सहयोग की दिशा में भी काम हो रहा है। 2022 में होने वाले बांग्लादेश
के पहले एयरशो में भारत भी हिस्सा लेगा। विदेश सचिव हर्ष वर्धन श्रृंगला ने पिछले
साल मार्च में कहा था कि भारत बांग्लादेश को किसी भी प्रकार का सैनिक साजो-सामान
दे सकता है।
बिमस्टेक की भूमिका
आर्थिक सहयोग के कई कार्यक्रमों की घोषणा इस
साल मार्च में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बांग्लादेश-यात्रा के दौरान हुई। भारत
और बांग्लादेश बिमस्टेक (बे ऑफ बंगाल इनीशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्नीकल एंड
इकोनॉमिक को-ऑपरेशन) के सदस्य हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की सक्रिय
भागीदारी और क्वॉड देशों के समूह में शामिल होने के बाद बंगाल की खाड़ी एक तरफ
रक्षा सहयोग का केंद्र बनेगी, दूसरी तरफ इसके चारों तरफ के देश भारत,
बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड,
भूटान, नेपाल और श्रीलंका के विकास की धुरी
भारत बनेगा।
इस क्षेत्र में गैस के भंडार हैं, जिनके दोहन में भारत की भूमिका होगी। इंफ्रास्ट्रक्चर विकास और
सड़कों, पुलों, नागरिक उड्डयन,
बंदरगाहों और रेलवे के विकास में जापान जैसे देश के साथ मिलकर
त्रिपक्षीय समझौतों की सम्भावनाएं बन रहीं है। हालांकि बिमस्टेक का काम धीमा है,
पर भविष्य में इसकी भूमिका बढ़ेगी।
भारत ने बांग्लादेश को कई प्रकार की सुविधाएं
दी हैं। अनेक उत्पादों को भारतीय बाजारों में ड्यूटी-फ्री प्रवेश की इजाजत है।
नॉन-टैरिफ बैरियर्स को कम करने के प्रयास भी जारी हैं। भारत सीमा पर 10 क्रॉसिंग
पॉइंट्स पर चेक पोस्ट तैयार कर रहा है। सन 1999 में ढाका को कोलकाता से जोड़ने
वाली एक बस सेवा शुरू की गई। ऐसी ही एक सेवा अगरतला से शुरू हुई। 2008 में ढाका और
कोलकाता के बीच पुरानी रेल लाइन को चालू किया गया, जो
43 साल से बंद पड़ी थी। मैत्री एक्सप्रेस की शुरुआत हुई। अनेक पुराने रेल नेटवर्क
फिर से शुरू किए गए। यह काम लगातार जारी है।
बहुत अच्छी सामयिक ज्ञानवर्धक विचार प्रस्तुति
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