Friday, October 16, 2020

क्या हम बांग्लादेश से भी गरीब हो गए हैं?

सोशल मीडिया को पढ़ें, तो कुछ लोगों का ऐसा ही निष्कर्ष है। यह निष्कर्ष अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के नवीनतम वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक से निकाला गया है। जीडीपी से जुड़े आँकड़ों के प्रति व्यक्ति औसत के आधार पर ऐसा निष्कर्ष निकाला जरूर जा सकता है, पर उसके साथ कुछ बातों को समझने की जरूरत भी है। 

एक तो यह कि जीडीपी की गणना नॉमिनल और पर्चेजिंग पावर पैरिटी (पीपीपी) दो तरह से की जाती है। दोनों लिहाज से भारत की अर्थव्यवस्था बांग्लादेश के मुकाबले कई गुना बड़ी है। जो आँकड़े हम देख रहे हैं, वे नॉमिनल आधार पर प्रति व्यक्ति औसत पर आधारित हैं। पीपीपी के आधार पर वह भी नहीं है। दूसरे ऐसा अनुमान है। अभी इस साल के करीब साढ़े पाँच महीने बाकी हैं। उनमें क्या होगा, कहना मुश्किल है। आईएमएफ के दूरगामी परिणामों पर नजर डालें, तो भारत और बांग्लादेश दोनों का भविष्य अच्छा है। बेशक हम गरीब हैं और ऊपर उठने का प्रयास कर रहे हैं।

हमें इस बात पर ग्लानि नहीं होनी चाहिए कि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था हमसे बेहतर परिणाम दे रही है। यह अच्छी बात है। हमें अपने देश के अच्छे परिणामों पर ध्यान देना चाहिए। इस साल के लॉकडाउन के कारण पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था करीब 24 फीसदी कम हुई है। हालांकि यह संकुचन अप्रत्याशित नहीं था, पर संकुचन का आकार बड़ा है। अब धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था खुल रही है। बावजूद इसके आईएमएफ को लगता है कि कुल मिलाकर इस साल देश की अर्थव्यवस्था इसके पिछले साल के मुकाबले 10.3 प्रतिशत कम होगी।   

मुद्रा कोष की रिपोर्ट के मुताबिक, जीडीपी के मामले में इस साल भारत का प्रति व्यक्ति औसत बांग्लादेश से पीछे रह सकता है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुकके मुताबिक, साल 2020 में बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति जीडीपी 4 फीसदी बढ़कर 1,888 डॉलर होने की उम्मीद है, जबकि भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी 10.3 प्रतिशत घटकर 1,877 डॉलर रहने की उम्मीद है, जो पिछले चार वर्षों में सबसे कम होगी।

मंगलवार 13 अक्तूबर को जारी रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों देशों की जीडीपी का यह आंकड़ा मौजूदा कीमतों पर आधारित है। केवल पाकिस्तान, नेपाल और अफगानिस्तान की औसत प्रति व्यक्ति जीडीपी ही भारत से कम होगी, जबकि बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका और मालदीव जैसे देश भारत से आगे होंगे।

ऐसा नहीं है कि बांग्लादेश की यह बढ़त जारी रहेगी। मुद्राकोष का ही अनुमान है कि 2021 के वित्तवर्ष में भारत की संवृद्धि 8.8 प्रतिशत की दर से होगी और जो भी अंतर पैदा हुआ है, वह खत्म हो जाएगा। इस तरह भारत सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था की स्थिति को फिर से हासिल करते हुए चीन की अनुमानित विकास दर 8.2 प्रतिशत को पार कर सकता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए पहला लॉकडाउन भारी पड़ा है और इस वित्तवर्ष की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था करीब 24 फीसदी संकुचित हो गई है। दूसरी तिमाही के नतीजे इस महीने के अंत में आएंगे। उम्मीद है इस तिमाही में स्थिति सुधरेगी, पर संकुचन की स्थिति खत्म नहीं होगी। शेष दो तिमाहियों में भी इतनी तेज वापसी नहीं होगी कि संकुचन दूर हो जाए। मुद्राकोष का अनुमान है कि यह संकुचन 10.3 प्रतिशत होगा। यानी कि पिछले वित्तवर्ष के मुकाबले इस वित्तवर्ष की जीडीपी 10.3 प्रतिशत कम होगी।

मुद्राकोष का अनुमान है कि 2021 में भारत की प्रति व्यक्ति औसत जीडीपी 2,030.62 डॉलर हो जाएगी, जबकि बांग्लादेश की 1,989.85 डॉलर होगी। मुद्राकोष का अनुमान है कि 2024 में भारत की यह बढ़त एकबार फिर से खत्म हो सकती है। उस साल दोनों देशों की प्रति व्यक्ति औसत दर 2,544 डॉलर के आसपास होगी। उसके अगले साल भारत का औसत 2729.24 डॉलर होगा और बांग्लादेश का 2,756.10 डॉलर। 

2020-21 में अनुमानित प्रति व्यक्ति औसत जीडीपी (अंतरराष्ट्रीय डॉलर में)

 

नॉमिनल

पीपीपी

श्रीलंका

3698

13114

मालदीव

12464

22965

भूटान

3431

12058

बांग्लादेश

1888

5139

भारत

1877

6284

नेपाल

1116

3586

पाकिस्तान

1638

5160

अफगानिस्तान

499

2073

 

 

 

 

जीडीपी और जीवीए क्या हैं?

ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानी सकल राष्ट्रीय उत्पाद का सूचकांक आर्थिक उत्पादन की जानकारी देता है। इसमें निजी खपत, अर्थव्यवस्था में सकल निवेश, सरकारी निवेश, सरकारी खर्च और शुद्ध विदेशी व्यापार (निर्यात और आयात का फर्क) शामिल होता है। पिछले कुछ वर्षों से आर्थिक विकास की दर के आकलन के लिए ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) का इस्तेमाल होने लगा है। जीवीए से अर्थ-व्यवस्था के किसी खास अवधि में सकल आउटपुट और उससे होने वाली आय का पता लगता है। यानी इनपुट लागत और कच्चे माल का दाम निकालने के बाद कितने के सामान और सर्विसेज का उत्पादन हुआ। मोटे तौर पर जीडीपी में सब्सिडी और टैक्स निकालने के बाद जो आंकड़ा मिलता है, वह जीवीए होता है। जीवीए से उत्पादक यानी सप्लाई साइड से होने वाली आर्थिक गतिविधियों का पता चलता है जबकि जीडीपी में डिमांड या उपभोक्ता की नजर से तस्वीर नजर आती है। जरूरी नहीं कि दोनों ही आंकड़े एक से हों क्योंकि इन दोनों में नेट टैक्स के ट्रीटमेंट का फर्क होता है। उपादान लागत या स्थायी लागत (फैक्टर कॉस्ट) के आधार पर जीडीपी का मतलब होता है कि औद्योगिक गतिविधि में-वेतन, मुनाफे, किराए और पूँजी-यानी विभिन्न उपादान के मार्फत सकल प्राप्ति। इस लागत के अलावा उत्पादक अपने माल की बिक्री के पहले सम्पत्ति कर, स्टाम्प ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क वगैरह भी देता है। जीडीपी में ये सब शामिल होते हैं, जीवीए में नहीं। जीवीए में वह लागत शामिल होती है, जो उत्पाद को बेचने के पहले लगी थी।

जीडीपी स्लोडाउन क्या है?

जीडीपी संवृद्धि दर में लगातार गिरावट को स्लोडाउन माना जा रहा है। पिछले साल 30 अगस्त को घोषित आंकड़ों के अनुसार इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रेल से जून के दौरान जीडीपी की दर घटकर 5 फीसदी हो गई थी। इसके बाद 29 नवम्बर को घोषित आँकड़ों के अनुसार दूसरी तिमाही (जुलाई, अगस्त, सितम्बर) में यह दर कम होकर 4.5 प्रतिशत हो गई है। दूसरी तिमाही में जीवीए की दर 4.3 फीसदी रही। इन दोनों तिमाहियों के आधार पर उस साल के पहले छह महीनों की औसत जीडीपी संवृद्धि दर 4.8 प्रतिशत थी, जबकि उसके पिछले वित्त वर्ष यानी 2018-19 में पहले छह महीनों की औसत दर 7.5 फीसदी थी। विश्व बैंक की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार 2019-20 में भारत की जीडीपी 5.00 फीसदी रही। हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि अर्थव्यवस्था के तात्कालिक आँकड़ों की पड़ताल जारी रहती है और आमतौर पर उनमें संशोधन होता है। कभी कम होते हैं और कभी बढ़ते हैं।

 

आज के इंडियन एक्सप्रेस में इस विषय को समझाया गया है। उसे भी पढ़ें।

भारत के पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम के विचार यहाँ पढ़ें


1 comment:

  1. अर्थव्यवस्था और जी.डी. पी. पर शोधपूर्ण समीक्षात्मक लेख

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