नरेन्द्र मोदी के बाबत सुषमा स्वराज के वक्तव्य का अर्थ लोग अपने-अपने तरीके से निकाल रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि सुषमा स्वराज ने भी नामो का समर्थन कर दिया, जो खुद भाजपा संसदीय दल का नेतृत्व करती हैं और जब भी सरकार बनाने का मौका होगा तो प्रधानमंत्री पद की दावेदार होंगी। पर सुषमा जी के वक्तव्य को ध्यान से पढ़ें तो यह निष्कर्ष निकालना अनुचित होगा। हाँ इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि नामो के नाम पर उनका विरोध नहीं है। गुजरात की चुनाव सभाओं में अरुण जेटली ने भी इसी आशय की बात कही है।
यह दूर की बात है कि एनडीए कभी सरकार बनाने की स्थिति में आता भी है या नहीं, पर लोकसभा चुनाव में उतरते वक्त पार्टी सरकार बनाने के इरादों को ज़ाहिर क्यों नहीं करना चाहेगी? ऐसी स्थिति में उसे सम्भावनाओं के दरवाजे भी खुले रखने होंगे। अभी तक ऐसा लगता था कि पार्टी के भीतर नरेन्द्र मोदी को केन्द्रीय राजनीति में लाने का विरोध है। इस साल उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में उन्हें नहीं आने दिया गया। नरेन्द्र मोदी ने मुम्बई कार्यकारिणी की बैठक के बाद से यह जताना शुरू कर दिया है कि मैं राष्ट्रीय राजनीति में शामिल होने का इच्छुक हूँ। उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर सीधे वार करने शुरू किए जो सहजे रूप से राष्ट्रीय समझ का प्रतीक है।
ऐसा माना जाता है कि सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और लालकृष्ण आडवाणी नहीं चाहते कि नरेन्द्र मोदी दिल्ली की राजनीति में शामिल हों। अक्टूबर 2010 में पार्टी के बिहार अभियान में मोदी को शामिल नहीं होने दिया गया। तब सुषमा जी ने कहा था कि उनके न आने में कोई हर्ज़ नहीं है, क्योंकि पार्टी के पास काफी नेता हैं। अब उन्होंने गुजरात विधानसभा के चुनाव अभियान के दौरान यह कहा है कि भीजेपी में प्रधानमंत्री बनने के लिए कोई लाइन नहीं लगी है। साथ में यह भी कहा कि मोदी जी प्रधानमंत्री बनने के लिए लिए उपयुक्त पात्र हैं। इस वक्तव्य से यह अर्थ नहीं निकालना चाहिए कि सुषमा स्वराज प्रधानमंत्री बनने की दावेदारी से हट गईं हैं। दरअसल अभी किसी की दावेदारी है ही नहीं। मोदी जी की सामर्थ्य पर उनकी यह टिप्पणी थी।
मूल बात यह है कि क्या भाजपा गम्भीरता पूर्वक लोकसभा चुनाव में उतरना चाहती है? इस साल मई में लालकृष्ण आडवाणी ने अपने ब्लॉग में लिखा था, "हालांकि, जब इन दिनों पत्रकार यूपीए सरकार के घोटालों की श्रृंखला के बारे में हमला करते हैं लेकिन साथ ही भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए द्वारा इस स्थिति का लाभ न उठा पाने पर खेद प्रकट करते हैं- तो एक पूर्व पत्रकार होने के नाते मैं महसूस करता हूं कि वे जनमत को सही ढंग से अभिव्यक्त कर रहे हैं।"..." यह तथ्य है कि आज संसद में हमारे पास सन् 1984 की 2 सीटों की तुलना में बड़ी संख्या में सांसद हैं, दोनों सदनों में सुषमाजी और जेटलीजी के नेतृत्व में हमारी परफारमेंस उत्कृष्ट है, और पार्टी नौ राज्यों में सत्ता में है लेकिन तब भी की गई गलतियों की कोई क्षतिपूर्ति नहीं है। कोर कमेटी की बैठक में मैंने कहा कि यदि लोग आज यूपीए सरकार से गुस्सा हैं तो वे हमसे भी निराश हैं। मैंने कहा कि यह स्थिति आत्मनिरीक्षण की मांग करती है।"
सुषमा स्वराज के रूप में पार्टी के पास एक बेहतरीन वक्ता और संतुलित नेता है। नरेन्द्र मोदी के रूप में उसके पास एक उत्साही और ऊर्जावान नेता है, पर उनकी छवि में संतुलन नहीं है। इन दिनों गुजरात में मुसलमानों का एक वर्ग भी नरेन्द्र मोदी के समर्थन में है, पर सवाल समर्थन की रचना का नहीं है। मोदी ब्रिगेड के रूप में एक नया तबका तैयार हो गया है, जो जरूरत पड़ने पर उनकी छवि को दुरुस्त करने की कोशिश भी करता है, पर छवि दीर्घकालीन व्यवस्था है। सवाल केवल साम्प्रदायिकता का नहीं है। अभी देखना यह है कि गुजरात के परिणाम किस प्रकार के आते हैं। कुछ लोगों का अनुमान है कि इस बार बीजेपी को 140 से भी ज्यादा सीटें मिलेंगी, पर ऐसे लोग भी है, जो मानते हैं कि गिरावट आएगी, क्योंकि कांग्रेस ने इस बीच काफी काम किया है।
सुषमा स्वराज ने क्या कहा, वीडियो देखें
यह दूर की बात है कि एनडीए कभी सरकार बनाने की स्थिति में आता भी है या नहीं, पर लोकसभा चुनाव में उतरते वक्त पार्टी सरकार बनाने के इरादों को ज़ाहिर क्यों नहीं करना चाहेगी? ऐसी स्थिति में उसे सम्भावनाओं के दरवाजे भी खुले रखने होंगे। अभी तक ऐसा लगता था कि पार्टी के भीतर नरेन्द्र मोदी को केन्द्रीय राजनीति में लाने का विरोध है। इस साल उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में उन्हें नहीं आने दिया गया। नरेन्द्र मोदी ने मुम्बई कार्यकारिणी की बैठक के बाद से यह जताना शुरू कर दिया है कि मैं राष्ट्रीय राजनीति में शामिल होने का इच्छुक हूँ। उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर सीधे वार करने शुरू किए जो सहजे रूप से राष्ट्रीय समझ का प्रतीक है।
ऐसा माना जाता है कि सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और लालकृष्ण आडवाणी नहीं चाहते कि नरेन्द्र मोदी दिल्ली की राजनीति में शामिल हों। अक्टूबर 2010 में पार्टी के बिहार अभियान में मोदी को शामिल नहीं होने दिया गया। तब सुषमा जी ने कहा था कि उनके न आने में कोई हर्ज़ नहीं है, क्योंकि पार्टी के पास काफी नेता हैं। अब उन्होंने गुजरात विधानसभा के चुनाव अभियान के दौरान यह कहा है कि भीजेपी में प्रधानमंत्री बनने के लिए कोई लाइन नहीं लगी है। साथ में यह भी कहा कि मोदी जी प्रधानमंत्री बनने के लिए लिए उपयुक्त पात्र हैं। इस वक्तव्य से यह अर्थ नहीं निकालना चाहिए कि सुषमा स्वराज प्रधानमंत्री बनने की दावेदारी से हट गईं हैं। दरअसल अभी किसी की दावेदारी है ही नहीं। मोदी जी की सामर्थ्य पर उनकी यह टिप्पणी थी।
मूल बात यह है कि क्या भाजपा गम्भीरता पूर्वक लोकसभा चुनाव में उतरना चाहती है? इस साल मई में लालकृष्ण आडवाणी ने अपने ब्लॉग में लिखा था, "हालांकि, जब इन दिनों पत्रकार यूपीए सरकार के घोटालों की श्रृंखला के बारे में हमला करते हैं लेकिन साथ ही भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए द्वारा इस स्थिति का लाभ न उठा पाने पर खेद प्रकट करते हैं- तो एक पूर्व पत्रकार होने के नाते मैं महसूस करता हूं कि वे जनमत को सही ढंग से अभिव्यक्त कर रहे हैं।"..." यह तथ्य है कि आज संसद में हमारे पास सन् 1984 की 2 सीटों की तुलना में बड़ी संख्या में सांसद हैं, दोनों सदनों में सुषमाजी और जेटलीजी के नेतृत्व में हमारी परफारमेंस उत्कृष्ट है, और पार्टी नौ राज्यों में सत्ता में है लेकिन तब भी की गई गलतियों की कोई क्षतिपूर्ति नहीं है। कोर कमेटी की बैठक में मैंने कहा कि यदि लोग आज यूपीए सरकार से गुस्सा हैं तो वे हमसे भी निराश हैं। मैंने कहा कि यह स्थिति आत्मनिरीक्षण की मांग करती है।"
सुषमा स्वराज के रूप में पार्टी के पास एक बेहतरीन वक्ता और संतुलित नेता है। नरेन्द्र मोदी के रूप में उसके पास एक उत्साही और ऊर्जावान नेता है, पर उनकी छवि में संतुलन नहीं है। इन दिनों गुजरात में मुसलमानों का एक वर्ग भी नरेन्द्र मोदी के समर्थन में है, पर सवाल समर्थन की रचना का नहीं है। मोदी ब्रिगेड के रूप में एक नया तबका तैयार हो गया है, जो जरूरत पड़ने पर उनकी छवि को दुरुस्त करने की कोशिश भी करता है, पर छवि दीर्घकालीन व्यवस्था है। सवाल केवल साम्प्रदायिकता का नहीं है। अभी देखना यह है कि गुजरात के परिणाम किस प्रकार के आते हैं। कुछ लोगों का अनुमान है कि इस बार बीजेपी को 140 से भी ज्यादा सीटें मिलेंगी, पर ऐसे लोग भी है, जो मानते हैं कि गिरावट आएगी, क्योंकि कांग्रेस ने इस बीच काफी काम किया है।
सुषमा स्वराज ने क्या कहा, वीडियो देखें
आखिर वाली लाईन पर आश्चर्य हुआ कि कांग्रेस ने काफ़ी काम किया है। अरे हाँ याद आया घोटालों के बारे में तो यह लाइन नहीं है। या सच में कुछ काम किया है। वहाँ जाकर देखना पडेगा।
ReplyDeleteसंदीप जी कांग्रेस चूंकि घोटालों के साथ गहराई से जुड़ गई है, पर इनके लिए गैर-कांग्रेस ताकतें भी ज़िम्मेदार हैं। कांग्रेस ने चूंकि देश में सबसे ज्यादा समय तक राज किया, इसलिए उसे सबसे बड़ा जिम्मेदार मानना चाहिए। मेरा आशय यहाँ काम से यह है कि कांग्रेस ने पिछले कुछ समय से गुजरात में अपने संगठन को सक्रिय किया है। केवल नरेन्द्र मोदी ने ही नहीं कांग्रेस ने भी यात्राएं निकाली हैं। 2007 के चुनाव में सोनिया गांधी ने नरेन्द्र मोदी को मौत का सौदागर कह कर एक राजनीतिक गलती की थी। बार-बार गुजरात दंगों पर सारी राजनीति केन्द्रित करने से कांग्रेस की साख गिरती है। इधर कांग्रेस ने साम्प्रदायिकता के सवाल को पीछे करके गुजरात के आर्थिक विकास को सवाल बनाया, साथ ही राज्य के किसानों, दलितों और जन-जातियों से सम्पर्क बढ़ाया। पर इधर संजीव भट्ट की पत्नी को टिकट देकर गाहे-बगाहे वही गलती कर दी। कांग्रेस ने स्पष्ट कर दिया कि संजीव भट्ट के पीछे वह है। प्रकारांतर से वह फिर गुजरात दंगों को बीच में ले आई। गुजरात दंगों के बारे में गुजरात की जनता को तय करना है।
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ReplyDeleteप्रिय ब्लॉगर मित्र,
हमें आपको यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है साथ ही संकोच भी – विशेषकर उन ब्लॉगर्स को यह बताने में जिनके ब्लॉग इतने उच्च स्तर के हैं कि उन्हें किसी भी सूची में सम्मिलित करने से उस सूची का सम्मान बढ़ता है न कि उस ब्लॉग का – कि ITB की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगों की डाइरैक्टरी अब प्रकाशित हो चुकी है और आपका ब्लॉग उसमें सम्मिलित है।
शुभकामनाओं सहित,
ITB टीम
पुनश्च:
1. हम कुछेक लोकप्रिय ब्लॉग्स को डाइरैक्टरी में शामिल नहीं कर पाए क्योंकि उनके कंटैंट तथा/या डिज़ाइन फूहड़ / निम्न-स्तरीय / खिजाने वाले हैं। दो-एक ब्लॉगर्स ने अपने एक ब्लॉग की सामग्री दूसरे ब्लॉग्स में डुप्लिकेट करने में डिज़ाइन की ऐसी तैसी कर रखी है। कुछ ब्लॉगर्स अपने मुँह मिया मिट्ठू बनते रहते हैं, लेकिन इस संकलन में हमने उनके ब्लॉग्स ले रखे हैं बशर्ते उनमें स्तरीय कंटैंट हो। डाइरैक्टरी में शामिल किए / नहीं किए गए ब्लॉग्स के बारे में आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।
2. ITB के लोग ब्लॉग्स पर बहुत कम कमेंट कर पाते हैं और कमेंट तभी करते हैं जब विषय-वस्तु के प्रसंग में कुछ कहना होता है। यह कमेंट हमने यहाँ इसलिए किया क्योंकि हमें आपका ईमेल ब्लॉग में नहीं मिला। [यह भी हो सकता है कि हम ठीक से ईमेल ढूंढ नहीं पाए।] बिना प्रसंग के इस कमेंट के लिए क्षमा कीजिएगा।
धन्यवाद। ब्लॉग का लेखन और प्रकाशन लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा है। हमारे बीच कई प्रकार की रुचियों के लेखक पाठक है। जो व्यक्ति या संस्थाएं ब्लॉगों की रेटिंग का काम करें उन्हें व्यावहारिक और पारदर्शी मापदंड बनाने चाहिए। बहरहाल आपने अपनी सूची में मेरे ब्लॉग को भी शामिल किया, इसके लिए धन्यवाद।
Deleteसुन्दर बात
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