Saturday, May 7, 2011

इतिहास के सबसे नाज़ुक मोड़ पर पाकिस्तान



बहुत सी बातें ऐसी हैं, जिनके बारे में हमारे देश के सामान्य नागरिक से लेकर बड़े विशेषज्ञों तक की एक राय है। कोई नहीं मानता कि बिन लादेन के बाद अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद खत्म हो जाएगा। या पाकिस्तान के प्रति अमेरिका की नीतियाँ बदल जाएंगी। अल-कायदा का जो भी हो, लश्करे तैयबा, जैशे मोहम्मद, तहरीके तालिबान और हक्कानी नेटवर्क जैसे थे वैसे ही रहेंगे। दाऊद इब्राहीम, हफीज़ सईद और  मौलाना मसूद अज़हर को हम उस तरह पकड़कर नहीं ला पाएंगे जैसे बिन लादेन को अमेरिकी फौजी मारकर वापस आ गए।

बिन लादेन की मौत के बाद लाहौर में हुई नमाज़ का नेतृत्व हफीज़ सईद ने किया। मुम्बई पर हमले के सिलसिले में उनके संगठन का हाथ होने के साफ सबूतों के बावजूद पाकिस्तानी अदालतों ने उनपर कोई कार्रवाई नहीं होने दी। अमेरिका और भारत की ताकत और असर में फर्क है। इसे लेकर दुखी होने की ज़रूरत भी नहीं है। फिर भी लादेन प्रकरण के बाद दक्षिण एशिया के राजनैतिक-सामाजिक हालात में कुछ न कुछ बदलाव होगा। उसे देखने-समझने की ज़रूरत है। 


अंतरराष्ट्रीय अतंकवाद क्या है? जो भी है उसकी दो तिहाई मशीनरी पाकिस्तान में है। तालिबान अलम्बरदार भी पाकिस्तान में ही शरण पाते हैं। अल-कायदा के बड़े किरदार पाकिस्तान से जुड़े रहे। लंदन से लेकर इंडोनेशिया तक की कार्रवाइयों के सूत्रधार वहीं विराजते हैं। इसके बावजूद अब तक पाकिस्तान को कोसता-लताड़ता अमेरिका उसकी मदद करने को मजबूर रहा है। पर लाख टके का सवाल है कि क्या आगे भी सोलह दूने आठ का यही पहाड़ा चलेगा?

पाकिस्तान का इस बार बुरी तरह पर्दाफाश हुआ है। अमेरिकी प्रशासन क्या अपने जनमत का सामना कर पाएगा? लादेन की हत्या के बाद अमेरिकी संसद में इस आशय का बिल लाने की कोशिश हो रही है कि पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक मदद रोक दी जाए। अफगानिस्तान कह रहा है कि कमजोर से कमजोर सरकार हो तब भी उसे पता होना चाहिए कि उसकी छावनी के पास इतने खुफिया तरीके से कौन रह रहा है। पाकिस्तान और अमेरिका के अंतर्विरोध अब और खुलेंगे। और पाकिस्तान के अंदरूनी अंतर्विरोधों की गिरहें भी खुलेंगी। खुशकिस्मती है कि पूरा पाकिस्तान कट्टरपंथी नहीं है।

पाकिस्तानी मीडिया को ध्यान से देखें तो पाएंगे कि वहाँ खुलकर सोचने-समझने वाले तत्व भी मौज़ूद हैं। सलमान तासीर की हत्या के बाद लगता है कि  मुख्यधारा पर कट्टरपंथी हावी हो रहे हैं, पर यह एक अंदेशा है। पाकिस्तानी राजनीति पूरे घटनाक्रम को किस तरह लेगी और किस रास्ते पर मुल्क को ले जाएगी, यह कुछ समय बाद पता लगेगा। जनरल ज़िया उल हक ने जिस कट्टरपंथी पाकिस्तान का बीज बोया बोया था वह दरख्त बनकर खड़ा है। फिर भी वहाँ एक जागरूक सिविल सोसायटी है। उसे सोचना है कि उसे कैसा देश चाहिए। हमें भी टूटते-ढहते कट्टरपंथी पाकिस्तान के बजाय प्रगतिशील, विकसित और स्थिर पाकिस्तान चाहिए।     

लादेन-हत्या के बाद पाकिस्तानी प्रशासन फौरी तौर पर सदमे में है। हालांकि बुधवार को प्रधानमंत्री यूसुफ रज़ा गिलानी ने पेरिस में कहा कि बिन लादेन के मामले में हमारी नहीं सारी दुनिया की खुफिया एजेंसियां फेल हुईं। हमें क्यों दोष देते हो? सीआईए के डायरेक्टर लिओन पेनेटा ने मंगलवार को कहा था कि हमने ओसामा के बारे में पाकिस्तान को जानकारी नहीं दी, क्योंकि हमें डर था कि यह बात ओसामा तक पहुँच सकती है। सन 2001 के बाद यह पहला मौका है जब पाकिस्तानी सरकार बुरी तरह पानी-पानी है। उस वक्त मुशर्रफ ने पल्टी मारकर हालात को बिगड़ने से बचाया था। पर तब जो डबल क्रॉस सम्भव था अब असम्भव है।

बेशक अमेरिका कम से कम पाकिस्तानी प्रशासन की किरकिरी नहीं होने देगा, पर अमेरिकी राजनीति ओबामा प्रशासन से सवाल ज़रूर पूछेगी। अगले साल राष्ट्रपति पद के चुनाव हैं। पाकिस्तानी सेना, राजनीति और सरकार को भी आम जनता का समर्थन हासिल करना है और अमेरिका के हाथों बेइज्जती से भी बचना है। पाकिस्तान में कट्टरपंथी तबका इस बात को शिद्दत के साथ उठाएगा कि अमेरिका ने हम से पूछे बगैर कार्रवाई कर ली। परवेज़ मुशर्रफ ने यह सवाल उठा भी दिया है। वे किसी तरह से पाकिस्तान की राजनीति में फिर से प्रवेश करना चाहते हैं। इस बार उनका एजेंडा कट्टरपंथी है। अमेरिका को अभी पाकिस्तानी सेना और सरकार की मदद चाहिए। अफगानिस्तान में स्थिरता लाए बगैर काम पूरा नहीं होगा। और वहाँ स्थिरता बेहद टेढ़ा काम है।

अफगानिस्तान के मामले में पाकिस्तान भारत को दूर रखना चाहता है। उसका यह विचार इतिहास की धारा के खिलाफ है। हजारों साल से अफगानिस्तान के साथ हमारे रिश्ते हैं। राजनैतिक-सामाजिक और आर्थिक। पाकिस्तान वहाँ चीन को प्रवेश दिलाना चाहता है। चीन की दिलचस्पी मध्य एशिया से लेकर अरब सागर तक है। यह दिलचस्पी आर्थिक और सामरिक दोनों पहलुओं से महत्वपूर्ण है। आने वाले वक्त में कैस्पियन सागर से पेट्रोलियम और गैस की पाइप लाइनें पूर्व की ओर आएंगी। इसमें हमारी जरूरतें भी शामिल हैं।

अल-कायदा का भारत पर असर नहीं था। पाकिस्तान के जेहादी तत्वों ने कश्मीर के नाम पर अल-कायदा का इस्तेमाल किया। कश्मीर का मसला हमारे रिश्तों को सुधरने नहीं देता। दक्षिण एशिया में आर्थिक गतिविधियों के विस्तार की अपार सम्भावनाएं हैं, पर भारत-पाकिस्तान रिश्ते इसमें आड़े आते हैं। दोनों देशों के रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिशें सफल होने लगती हैं तो कहीं न कहीं से झगड़ा खड़ा हो जाता है।

नवम्बर 2008 में मुम्बई  पर हमले के बाद रुकी बातचीत को आगे बढ़ाने की कोशिशें फिर शुरू हुईं हैं। फरवरी में थिम्पू के सार्क सम्मेलन के बाद यह बातचीत फिर से आगे बढ़ी है। अप्रेल के आखिरी हफ्ते में दोनों देशों के व्यापार सचिवों की बातचीत से उम्मीदें फिर से जागी हैं। पाकिस्तान ने अब तक भारत को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा नहीं दिया है। अब संकेत मिला है कि शायद पाकिस्तान यह दर्जा भारत को दे। भारत-पाकिस्तान के बीच वाघा-अटारी सीमा पर करीब डेढ़ सौ करोड़ रुपए की लागत से इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट बनाई गई है। व्यापार शुरू हो तो इसका इस्तेमाल भी होगा।

भारत-पाकिस्तान के बीच करीब दो अरब डॉलर का सालाना व्यापार इस समय होता है। दोनों देश चाहें तो यह व्यापार बढ़कर 20 अरब डॉलर का हो सकता है। भारत-चीन के बीच इस वक्त करीब 60 अरब डॉलर का व्यापार होता है। पाकिस्तान में भारतीय माल काफी लोकप्रिय है, पर वह दुबई या सिंगापुर के रास्ते से जाता है। इससे उसकी कीमत बढ़ती है साथ ही इसमें से ज्यादातर माल अवैध तरीके से जाने के कारण करकारों को टैक्स नहीं मिलता। केवल एक कश्मीर के राजनैतिक कारण से दोनों देशों के स्वाभाविक मित्र लोगों को अपने पसंद के माल से वंचित होना पड़ता है।

दोनों देशों के बीच खेल, सिनेमा, साहित्य और संगीत का गहरा रिश्ता है। दोनों की भाषा और संस्कृति एक होने के कारण यह स्वाभाविक लेन-देन है। जैसे ही यह लेन-देन शुरू होगा गलत फहमियाँ दूर होंगी। पर कहीं न कहीं ऐसी ताकतें हैं, जो ऐसा होने नहीं देना चाहतीं। इसकी एक वजह संवाद-हीनता भी है।

भारत-पाकिस्तान की जनता के संवाद से एक बड़ा फर्क राजनैतिक संस्कृति पर पड़ेगा। भारत के लोकतांत्रिक प्रयोग से बहुसंख्यक पाकिस्तानी अपरिचित हैं। हमारे बीच दीवारें गिरें तो हमें अपने लोकतंत्र का निर्यात करने का मौका मिलेगा। उनकी समस्याएं भी वही हैं, जो हमारी हैं। उन्हें  अपनी सम्प्रभुता खोने से धक्का लगा है। अमेरिका के प्रति नाराजगी उन्हें कट्टरपंथ के रास्ते पर ले जाती है। पर उन्हें समझना चाहिए कि उन्होंने अपनी सम्प्रभुता को क्यों खोया। वहाँ पहली ज़रूरत है निर्भय और खुले समाज की, बेहतर शिक्षा और  खुशहाली की। पाकिस्तान को कट्टरपंथी रास्ते पर जाने से रोकने की ज़रूरत है। इसमें हम मददगार हो सकते हैं।

दैनिक जनवाणी में प्रकाशित

7 comments:

  1. Pramod ji , Kafi achhi writing hai, aap ke nirbhig vichar kafi acche lagte hain, Donon deshon ke beech rishton ko sudharne ke liye pahel kis aor se honi chahiye, cricket diplomacy to kaam nahin aaya, musarraf ke saath aagra submit bhi kargar nahin hua, hamare desh ke kattar panthi bhi to yeh nahin chahte ki in donon deshon ke bich rishton main mithash aaye, hamare yahan bhi election aatankvaad aur kashmir ke muddon pe ladha jaata hai.... iske baare main aap kya kahenge...

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  2. Thank you Sir, Thank you so much.

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  3. पाकिस्तान में लोकतंत्र स्थापित हो ऐसा न चीन चाहता है न अमेरिका.भारत के चाहने से कुच्छ नहीं होगा.

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  4. Anonymous4:20 PM

    पाकिस्तान की स्थिरता भारत के लिए कभी भी फायदे का सौदा नहीं हो सकती...समझदारी तो इसी बात में है कि भारत पाकिस्तान को उसी तरह विघटित कर दे जिस तरह से 1965 में बांग्लादेश के वक्त किया था...पकिस्तान समस्या का केवल एक ही हल है और वो है सैनिक कार्रवाई...अगर पाकिस्तान मजबूत बन गया तो वो भारत के लिए और बडा खतरा बन जाएगा...क्योंकि पाकिस्तान की भारत विरोधी सोच कभी नहीं बदलने वाली है..इतिहास गवाह है कि हमने पहले भी पाकिस्तान को लेकर कईं महा भूलें की हैं....समझदारी इसी में है कि सैनिक कार्रवाई के ज़रिए पाकिस्तान को खदेडा जाए...और उसे ये सबक सिखाया जाए कि भारत की तरफ आंख उठाने का क्या नतीजा होगा? अब अमेरिका सारी दुनिया में अपने दुश्मनों को खदेड सकता है तो हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते? अंतर्राष्ट्रीय कानून तो सभी देशों के लिए एक ही हैं ना.....

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  5. thik baat h pramod ji...aaj pakistan ko kisi bhawnatmak haath ki jarurat h....jis haalat m aaj ye chhota bharat h...wo sthiti hamare liye khus hone ki nahi h......pr dur-bhagya to yahi h ki chhote bharat ki dur-gati pr apne Log taali baza rahe h......Amerika ka bharat ki seemaon pr aana hamaari samasyaon ka smadhaan nahi h.......darasal jo world waar hona h esia ki dharti pr uski taiyaariya bhar h ye Osama-Fosama k dramee.....Amerika ic duniya m ek nahi hazaron Osaama paida kr sakta h....jab-jab usko jarurat hoti h...paida karta bhi h......hum kitna bhi aandaza laga le Amerika ki Ran-nitiyon ka....pr uske dil m kya h ye koi nahi jaan sakta.........>>>>> Pramod ji Aaj pakistan ko Bharat-Varsh k sath ki jarurat h.......pr pak h ki unse haath milata ja raha h jo kabhi bhi uska haath tor-maror sakte h....

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  6. काम को नज़रंदाज़ करना मुमकिन नहीं होता जनाब.आपकी पोस्ट यही बता रही है.हिम्मत से जो जुटे रहें तो बड़ा काम भी हो जाता हैं...
    अगर अमरीका की तरह आप भी पाकिस्तानी हुक्मरानों की झोली डालर सर भर दो तो आप भी पकिस्तान से जितने चाहे उतने हथियारपसंद खरीद सकते हैं.
    लेकिन भारतीय नेता अपनी झोली भरें या पकिस्तान की ?
    और फ़्री में पकिस्तान किसी को कुछ देता नहीं है .
    control the purse control the policy .

    हार्दिक बधाइयां एवं शुभकामनायें।

    लखनऊ से अनवर जमाल .
    लखनऊ में आज सम्मानित किए गए सलीम ख़ान और अनवर जमाल Best Blogger

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  7. पाकिस्तान का कभी भला नहीं हो सकता क्योंकि जो समाज अपनी सभ्यता, समाज और संस्कृति को छोड़ देता है, वह जड़ विहीन हो जाता है. हम तो हर साल बात करते रहते हैं, मगर उससे कुछ होने जाने वाला नहीं. परिणाम उसी आने वाला नहीं. हमें भी अपने दुश्मन को चुन चुन कर मारना पड़ेगा, अन्यथा कोई और विकल्प नहीं है. अंत में इस पतित देश के चार टुकड़े कर देने चाहिए ताकि बलोच, सिंध, और पंजाब के लोग आपस में ही लड़ मरें

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