संयोग से मंगलयान की सफलता और 'मेक इन इंडिया' अभियान की खबरें एक साथ आ रहीं हैं. पिछले साल नवम्बर में जब मंगलयान अपनी यात्रा पर निकला था, तब काफी लोगों को उसकी सफलता पर संशय था. व्यावहारिक दिक्कतों के कारण भारत ने इस यान को पीएसएलवी के मार्फत छोड़ा था. इस वजह से इसने अमेरिकी यान के मुकाबले ज्यादा वक्त लगाया और अनेक जोखिमों का सामना किया. हालांकि यह बात कहने वाले आज भी काफी हैं कि भारत जैसे गरीब देश को इतने महंगे अंतरिक्ष अभियानों की जरूरत नहीं है, पर वे इस बात की अनदेखी कर रहे हैं कि अंतरिक्ष तकनीक के साथ स्वास्थ्य, शिक्षा और संचार की तमाम तकनीकें जुड़ी हैं, जो अंततः हमारे जन-जीवन को बेहतर बनाने में मददगार होंगी. फिलहाल सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत की अंतरिक्ष तकनीक के लिए विकासशील देशों का बहुत बड़ा बाज़ार तैयार है. हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका, मालदीव, बांग्लादेश और नेपाल तक अपने उपग्रह भजना चाहते हैं. चूंकि उनके पास यह तकनीक नहीं है, इसलिए ज्यादातर देश चीन की ओर देख रहे हैं. मंगलयान की सफलता ने भारत की एक नई तकनीकी खिड़की खोली है.
विधानसभा की जिन 33 सीटों पर उप चुनाव हुए थे, उनका लोकसभा चुनाव परिणामों के आधार पर फैसला होता तो इनमें से 25 सीटें भाजपा को मिलनी चाहिए थीं.
परिणामों से ज़ाहिर है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जो ‘लहर’ बनी थी, वह लुप्त हो चुकी है. और दूसरे उत्तर प्रदेश को ‘प्रयोगशाला’ बनाने की भगवा कोशिश फेल हुई है.
फिर भी इसे मोदी सरकार के प्रति जनता की प्रतिक्रिया मानना जल्दबाज़ी होगी. लोकसभा चुनाव के मुद्दे-मसले और मुहावरे इन चुनावों में नहीं थे.
फीका मतदान भी इसका प्रमाण है. दूसरी ओर भाजपा को पश्चिम बंगाल और असम में सफलता मिलना नई परिघटना है. उसके क्षेत्र का विस्तार हो रहा है.
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उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सफलता चुनावी गणित का परिणाम है. पार्टी इस चुनाव में भाजपा-विरोधी वोटों को बिखरने से रोकने में कामयाब हुई. यह नहीं कि उत्तर प्रदेश का वोटर अखिलेश सरकार के प्रदर्शन और प्रदेश में बिजली की किल्लत और कानून-व्यवस्था की स्थिति से संतुष्ट है.
माना जा सकता है कि मोदी के पक्ष में वोट डालने वाले इस बार बाहर नहीं निकले. उन्हें इन चुनाव में जीत हासिल करने की कोई बड़ी चुनौती दिखाई नहीं दी. उत्तर प्रदेश का सामाजिक गणित पिछले महीने के बिहार-प्रयोग की तरह सफल साबित हुआ.
गैर-भाजपा मोर्चे की उम्मीदें
इसका मतलब है कि यदि सांप्रदायिकता विरोध के आधार पर राजनीतिक एकता कायम हो तो उसे सफलता मिल सकती है. गुजरात और राजस्थान से कांग्रेस के लिए संदेश है कि हमने आपका साथ पूरी तरह छोड़ा नहीं है. वसुंधरा राजे की सरकार के लिए तीन सीटें हारना अशुभ संकेत है.
उत्तर प्रदेश की जिन 11 सीटों पर चुनाव हुए वे भाजपा की सीटें थीं. इनमें हार का असर पार्टी के प्रदेश संगठन और स्थानीय नेतृत्व पर पड़ेगा.
दूसरी ओर समाजवादी पार्टी की ‘जान में जान’ आई है. लोकसभा चुनाव में भारी हार से पार्टी ने सबक लिया और मुलायम सिंह यादव ख़ुद आम चुनाव की तरह सक्रिय रहे. एक-एक सीट की रणनीति उन्होंने खुद बनाई. आमतौर पर मुख्यमंत्री उपचुनाव के लिए प्रचार नहीं करते लेकिन अखिलेश यादव ने पूरा समय इन चुनाव को दिया.