Wednesday, March 5, 2025

ट्रंप ने कहा, भारत को टैरिफ में कोई रियायत नहीं

अमेरिकी संसद के संयुक्त अधिवेशन में ट्रंप

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने मंगलवार को एक बार फिर भारत पर उसके ऊँचे टैरिफ को लेकर निशाना साधा और संकेत दिया कि व्यापार समझौते के लिए बातचीत में पारस्परिक टैरिफ जैसे व्यापक शुल्कों पर नई दिल्ली को रियायतें नहीं मिलेंगी, जो 2 अप्रैल से प्रभावी होने वाले हैं। उन्होंने ऑटो सेक्टर का विशेष उल्लेख किया, जहाँ उन्होंने कहा कि भारत 100 प्रतिशत से अधिक टैरिफ वसूलता है।

अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए ट्रंप ने कहा, भारत हमसे 100 प्रतिशत टैरिफ वसूलता है; यह व्यवस्था अमेरिका के लिए उचित नहीं है, कभी थी ही नहीं। 2 अप्रैल से पारस्परिक टैरिफ लागू हो जाएंगे। वे हम पर जो भी टैक्स लगाएंगे, हम उन पर लगाएंगे। अगर वे हमें अपने बाजार से बाहर रखने के लिए गैर-मौद्रिक टैरिफ का इस्तेमाल करेंगे, तो हम उन्हें अपने बाजार से बाहर रखने के लिए गैर-मौद्रिक बाधाओं का इस्तेमाल करेंगे। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका-यात्रा के बाद भारतीय उद्योग जगत में यह उम्मीद जागी थी कि अमेरिका के साथ व्यापार समझौता नई दिल्ली को भारत में अमेरिकी उत्पादों के लिए बाजार पहुँच के बदले में व्यापक टैरिफ से राहत दिलाने में मदद करेगा। भारत ने बातचीत शुरू होने से पहले ही बोरबॉन ह्विस्की जैसी कई वस्तुओं पर टैरिफ में कटौती कर दी थी।

संसदीय-सीटों के परिसीमन पर बहस

परिसीमन के बाद संभावित तस्वीर
केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद से देश के राजनेताओं और विश्लेषकों के एक तबके ने दो-तीन बातों पर ज़ोर देना शुरू कर दिया है। वे कहते हैं कि भारत में संविधान खतरे में है, लोकतंत्र विफल हो रहा है और यह भी कि लोकतंत्र का मतलब चुनाव जीतना भर नहीं होता। लोकतंत्र ही नहीं संघवाद को भी खतरे में बताया जा रहा है। बीजेपी के हिंदू-राष्ट्रवाद की अतिशय केंद्रीय-सत्ता को लेकर भी उनकी आपत्तियाँ हैं। 

इधर तमिलनाडु से हिंदी-साम्राज्यवाद को लेकर बहस फिर से शुरू हुई है, जिसमें संसदीय-सीटों के परिसीमन को लेकर आपत्तियाँ भी शामिल हैं। दक्षिण के नेताओं का तर्क है कि यदि जनसंख्या के आधार पर परिसीमन होगा, तब दक्षिण के राज्य नुकसान में रहेंगे, जबकि जनसंख्या-नियंत्रण में उनका योगदान उत्तर के राज्यों से बेहतर रहा है। उनका सुझाव है कि संसदीय परिसीमन में संघवाद के मूल्यों का अनुपालन होना चाहिए।

परिसीमन से जुड़े इन्हीं सवालों को लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 5 मार्च को चेन्नई में सर्वदलीय बैठक बुलाई है। उन्होंने कहा: तमिलनाडु अपने अधिकारों के लिए बड़ी लड़ाई लड़ने के लिए मजबूर है। परिसीमन का खतरा दक्षिणी राज्यों पर डैमोक्लीज़ की तलवार की तरह मंडरा रहा है। मानव विकास सूचकांक में अग्रणी तमिलनाडु के सामने गंभीर खतरा खड़ा है। 

Saturday, March 1, 2025

ट्रंप-ज़ेलेंस्की संवाद जो टीवी का तमाशा बन गया


शुक्रवार को अमेरिकी राष्ट्रपति के ओवल ऑफिस में हुई तनावपूर्ण मुलाकात में, यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने यूक्रेन में जारी युद्ध को लेकर  राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से समर्थन पाने की मिन्नत की, लेकिन उन्हें मुखर गुस्से और प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। यह बैठक अंततः तमाशा साबित हुई, जो इस स्तर के राजनय से मेल नहीं खाता है। दुनिया भर के टीवी पर्दों पर इस मुठभेड़ में संज़ीदगी नज़र ही नहीं आई। इस बैठक ने, जो कभी गरम और कभी नरम में बदलती रही, दोनों के बीच बढ़ती दरार को उजागर कर दिया और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की जटिलता को रेखांकित किया।

इस बैठक में ट्रंप ने बार-बार युद्ध को खत्म करने पर जोर दिया और अमेरिकी भागीदारी पर सवाल उठाए। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वे त्वरित समाधान चाहते हैं, जबकि ज़ेलेंस्की ने चेतावनी दी कि अचानक युद्ध विराम रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को फिर से हथियारबंद होने और संघर्ष को फिर से भड़काने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। ट्रंप ने ज़ेलेंस्की इस बात के लिए दबाव डाला कि शांति समझौता अनिवार्य है। वह भी ऐसी शर्तों पर जो मॉस्को के प्रति बहुत नरम होंगी।

शुक्रवार को ट्रंप और ज़ेलेंस्की के बीच हुई मुलाक़ात पारंपरिक राजनय से एकदम अलग थी। यूक्रेन को अमेरिकी सैन्य सहायता और रूस के साथ चल रहे युद्ध को लेकर महीनों तक तनाव के बाद, ज़ेलेंस्की आश्वासन पाने के लिए वाशिंगटन गए थे। ट्रंप रूस और यूक्रेन के बीच समझौते पर मध्यस्थता करने पर अड़े रहे, जिसे उन्होंने ‘सदी का सौदा’कहा है। उन्हें उम्मीद थी कि यह उनकी शर्तों पर होगा।

आर्टेमिस कार्यक्रम

बाहरी अंतरिक्ष में अनुसंधान के लिए अमेरिका की पहल पर शुरू हुआ यह अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम है। इसमें 2027 तक चंद्रमा पर मनुष्य की यात्रा का प्रयास शामिल है। इसके अलावा इसका लक्ष्य मंगल ग्रह और उससे आगे अंतरिक्ष अन्वेषण का विस्तार करना है। 21 जनवरी 2025 को इस समझौते में फिनलैंड के प्रवेश के साथ, 53 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं। इनमें यूरोप के 27, एशिया के नौ, दक्षिण अमेरिका के सात, उत्तरी अमेरिका के  पाँच, अफ्रीका के तीन और ओसनिया के दो देश शामिल हैं। समझौते पर मूल रूप से 13 अक्तूबर 2020 को आठ देशों की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए गए थे। ये देश हैं ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इटली, जापान, लक्ज़ेम्बर्ग, संयुक्त अरब अमीरात, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका। जून 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान भारत ने भी इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस कार्यक्रम के समांतर चीन और रूस के नेतृत्व में इंटरनेशनल ल्यूनर रिसर्च स्टेशन (आईआरएलएस) नाम से एक और समझौता भी है। इसका इरादा भी चंद्र सतह पर या चंद्र कक्षा में व्यापक वैज्ञानिक अन्वेषण करना है। इसमें 13 सदस्य देश हैं। भारत इसमें शामिल नहीं है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 1 मार्च, 2025 को प्रकाशित


Thursday, February 27, 2025

भाजपा और ‘फासिज़्म’ को लेकर वामपंथी खेमे में नई बहस


भारत के वामपंथियों और कांग्रेस पार्टी के बीच एक नई बहस शुरू हो गई है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार ‘फासिस्ट’ या ‘नव-फासिस्ट’ है या नहीं। अब ‘फासिज्म’ की भारतीय परिभाषा को लेकर भी बहस होगी। इसकी वजह यह है कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की अप्रैल में होने वाली 24वीं पार्टी कांग्रेस की बैठक से पहले राज्य इकाइयों को भेजे गए राजनीतिक प्रस्तावों में एक यह भी है कि पार्टी केंद्र सरकार को ‘फासिस्ट’ या ‘नव-फासिस्ट’ क्यों नहीं मानती। 

सीपीआई (एम) ने हाल में 24वीं पार्टी कांग्रेस के लिए अपना मसौदा राजनीतिक प्रस्ताव जारी किया है-जो 2 से 6 अप्रैल तक मदुरै में आयोजित किया जाना है। इसमें कहा गया है कि (मोदी सरकार का) प्रतिक्रियावादी हिंदुत्व एजेंडा थोपने का प्रयास और विपक्ष और लोकतंत्र को दबाने का सत्तावादी अभियान नव-फासीवादी विशेषताओं को प्रदर्शित करता है...। मोदी सरकार के लगभग ग्यारह वर्षों के शासन के परिणामस्वरूप नव-फासीवादी विशेषताओं के साथ दक्षिणपंथी, सांप्रदायिक, सत्तावादी ताकतों का एकीकरण हुआ है। 

नव-फासीवाद के लक्षण

गत 17-19 जनवरी के दौरान कोलकाता में आयोजित पार्टी की केंद्रीय समिति की बैठक में मसौदा राजनीतिक प्रस्ताव को अपनाया गया था। इसमें कहा गया है, हालाँकि मोदी सरकार ‘नव-फासीवादी विशेषताओं’ को प्रदर्शित करती है, लेकिन उसे ‘फासीवादी या नव-फासीवादी सरकार’ कहना उचित नहीं।