पिछले कई महीनों से कांग्रेस पार्टी की आंतरिक राजनीति का विश्लेषण बाहर के बजाय भीतर से ज्यादा अच्छा हो रहा है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका ग्रुप-23 की है, जो पार्टी में हैं, पर नेतृत्व की बातों से असहमति को पार्टी के मंच पर और बाहर भी व्यक्त करते हैं। बहरहाल हाल में हुए पाँच राज्यों के चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन को लेकर पार्टी ने बहुत संकोच के साथ ही प्रतिक्रिया व्यक्त की है। राहुल गांधी ने 2 मई को तीन ट्वीट किए थे। एक में कहा गया था कि हम जनता के फैसले को स्वीकार करते हैं। ऐसा ही ट्वीट पार्टी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने किया। राहुल गांधी के शेष दो ट्वीट में ममता बनर्जी और एमके स्टालिन को जीत पर बधाई दी गई थी। उन्होंने ममता बनर्जी को बधाई दी, पर ऐसी ही बधाई पिनाराई विजयन को नहीं दी।
विस्तार से पार्टी का
कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं हुआ, पर जी-23 के दो वरिष्ठ सदस्यों कपिल सिब्बल और
गुलाम नबी आजाद ने कहा कि देश में महामारी की स्थिति को देखते हुए यह समय टिप्पणी
करने के लिहाज से उचित नहीं है। बंगाल की हार को लेकर अधीर रंजन चौधरी ने दिल्ली
के एक अंग्रेजी अखबार को कुछ सफाई दी है। खबर थी कि उन्होंने कोई ट्वीट भी किया
है, पर वह नजर नहीं आया। शायद हटा दिया गया। ऐसा लगता है कि फिलहाल पार्टी की
रणनीति है कि चुनाव-परिणामों पर चर्चा नहीं की जाए। इसकी जगह महामारी को लेकर
केंद्र पर निशाना लगाया जाए। यह रणनीति एक सीमा तक काम करेगी, पर यह एक प्रकार का
पलायन साबित होगा।
केरल
में असंतोष
नेतृत्व ने भले ही चुनाव-परिणामों पर चुप्पी साधी है, पर कार्यकर्ता मौन नहीं है। केरल से उनकी आवाज सुनाई पड़ी है। उन्हें उम्मीद थी कि पार्टी की सत्ता में वापसी होगी। केरल में इससे पहले सत्ता में बैठी सरकार ने कभी वापसी नहीं की है, इसलिए यूडीएफ को वापसी की उम्मीद थी। बहरहाल शुरूआती चुप्पी के बाद, केरल दबे-छिपे बातें सामने आने लगी हैं। एर्नाकुलम के युवा कांग्रेस सांसद हिबी एडेन ने फेसबुक पर लिखा, हमें क्या अब भी लगातार सोते हाईकमान की आवश्यकता क्यों है?