कश्मीर विधानसभा भंग करने के फैसले ने एक तरफ राजनीतिक
और सांविधानिक विवादों को जन्म दिया है, वहीं राज्य की जटिल समस्या को शिद्दत के
साथ उभारा है. कुछ संविधान विशेषज्ञों ने विधानसभा भंग करने के राज्यपाल के अधिकार
को लेकर आपत्ति व्यक्त की है. सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था है कि सरकार बनने की
स्थिति है या नहीं, इसका फैसला सदन के फ्लोर पर होना चाहिए. राज्यपाल सतपाल मलिक का कहना है कि मैं किसी भी पार्टी को
सरकार बनाने का मौका देता तो राज्य में बड़े पैमाने पर खरीद-फरोख्त होती.
सरकार बनाने के लिए वहाँ दो तरह की खिचड़ियाँ
पक रहीं थीं. दोनों के स्थायित्व की गारंटी नहीं थी. पता नहीं कि राज्यपाल के फैसले को चुनौती दी जाएगी या नहीं, पर इसके
सांविधानिक निहितार्थ पर विचार जरूर किया जाना चाहिए. सवाल है कि विधानसभा भंग
करने की भी जल्दी क्या थी? लोकतांत्रिक विकल्प खोजने चाहिए थे. विधानसभा भंग होनी ही थी, तो जून
में क्यों नहीं कर दी गई, जब बीजेपी के समर्थन वापस लेने के बाद महबूबा मुफ्ती ने
इस्तीफा दिया था?