Sunday, May 13, 2018

राहुल गांधी का पहला इम्तहान

कर्नाटक की रैलियों में नरेन्द्र मोदी ने कहा कि इस चुनाव के बाद कांग्रेस पीपीपी (पंजाब, पुदुच्चेरी और परिवार) पार्टी बनकर रह जाएगी। उधर राहुल गांधी ने कहा, हम मुद्दों पर चुनाव लड़ रहे हैं और राज्य में अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं। दो दिन बाद पता चलेगा कि किसकी बात सच है। बीजेपी के मुकाबले यह चुनाव कांग्रेस के लिए न केवल प्रतिष्ठा का बल्कि जीवन-मरण का सवाल है। कांग्रेस को अपनी 2013 की जीत को बरकरार रख पाई, तभी साल के अंत में चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में सिर उठाकर खड़ी हो सकेगी।

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस के सिर पर पराजय का साया है। बेशक उसने इस बीच पंजाब में जीत हासिल की है, पर एक दर्जन से ज्यादा राज्यों से हाथ धोया है। सन 2015 में बिहार के महागठबंधन को चुनाव में मिली सफलता पिछले साल हाथ से जाती रही। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के बावजूद पार्टी सात सीटों पर सिमट गई। पिछले साल गुजरात के चुनाव में पार्टी तैयारी से उतरी थी, पर सफलता नहीं मिली। 

Friday, May 11, 2018

कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा का सीन


दो महीने पहले जब कर्नाटक विधानसभा चुनाव का बिगुल बजना शुरू हुआ था, तब लगता था कि मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच है। पर अब लगता है कि जेडीएस को कमजोर आँकना ठीक नहीं होगा। चुनावी सर्वेक्षण अब धीरे-धीरे त्रिशंकु विधानसभा बनने की सम्भावना जताने लगे हैं। ज्यादातर विश्लेषक भी यही मानते हैं। इसका मतलब है कि वहाँ का सीन चुनाव परिणाम के बाद रोचक होगा।

त्रिशंकु विधानसभा हुई तब बाजी किसके हाथ लगेगी? विश्लेषकों की राय में कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी, पर जरूरी नहीं कि वह सरकार बनाने की स्थिति में हो। वह सबसे बड़ी पार्टी बनने में कामयाब होगी, तो इसकी वजह राहुल गांधी या सोनिया गांधी की रैलियाँ नहीं हैं, बल्कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की चतुर राजनीति है। माना जा रहा है कि देश में मोदी को टक्कर देने की हिम्मत सिद्धारमैया ने ही दिखाई है। प्रचार के दौरान सिद्धारमैया अपना मुकाबला येदियुरप्पा से नहीं, मोदी से बता रहे हैं।  

इतना होने के बाद भी विश्वास नहीं होता कि बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह का चुनाव-मैनेजमेंट आसानी से व्यर्थ होगा। सच है कि इस चुनाव ने बीजेपी को बैकफुट पर पहुँचा दिया है। कांग्रेस अपने संगठनात्मक दोषों को दूर करके राहुल गांधी के नेतृत्व में खड़ी हो रही है। गुजरात में बीजेपी जीती, पर कांग्रेसी डेंट लगने के बाद। केन्द्र के खिलाफ एंटी इनकम्बैंसी भी बढ़ रही है। कर्नाटक के बाद अब बीजेपी को राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की चिंता करनी होगी। 

Wednesday, May 9, 2018

संशय में कर्नाटक का मुस्लिम वोट


कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में लिंगायत और वोक्कालिगा वोट के अलावा जिस बड़े वोट आधार पर विश्लेषकों की निगाहें हैं, वह है मुसलमान। मुसलमान किसके साथ जाएगा? अलीगढ़ में जब मुहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर को लेकर घमासान मचा है, उसी वक्त कर्नाटक में कांग्रेस यह साबित करने की कोशिश में है कि वह मुसलमानों की सच्चे हितैषी है। पर कांग्रेस इस वोट को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं है। उसे डर है कि मुसलमानों का वोट कहीं बँट न जाए। इस वोट को लेकर उसका मुकाबला एचडी देवेगौडा की जेडीएस से है। कर्नाटक की सभाओं में राहुल गांधी मुसलमानों से कह रहे हैं कि जेडीएस बीजेपी की बी टीम है, उससे बचकर रहना।
कर्नाटक में दलित और मुस्लिम वोट कुल मिलाकर 30 फीसदी के आसपास है। इसमें 13-14 फीसदी वोट मुसलमानों का है। जेडीएस ने मायावती की बहुजन समाज पार्टी और असदुद्दीन ओवेसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के साथ गठबंधन किया है। सवाल है कि क्या जेडीएस इस वोट बैंक का लाभ उठा पाएगी?

Sunday, May 6, 2018

हमारे ‘हीरो’ नहीं हैं जिन्ना


अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्रसंघ के हॉल में लगी मुहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर के विवाद की रोशनी में हम अपने साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के कुछ स्रोतों को देख सकते हैं। एक दलील है कि जिन्ना की वजह से देश का विभाजन हुआ। स्वतंत्र भारत में उनकी तस्वीर के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। यह माँग बीजेपी के एक सांसद ने की है, इसलिए एक दूसरा पक्ष भी खड़ा हो गया है। वह कहता है कि तस्वीर नहीं हटेगी। जिन्ना भारतीय इतिहास का हिस्सा हैं। आजादी के बाद से अब तक इस तस्वीर के लगे रहने से भारतीय राष्ट्रवाद को कोई ठेस नहीं लगी, तो अब क्या लगेगी?

इस बीच सोशल मीडिया पर संसद भवन में लगी एक तस्वीर वायरल हुई है। इस तस्वीर में देश के कुछ महत्वपूर्ण राजनेताओं के साथ जिन्ना भी नजर आ रहे हैं। वायरल-कर्ताओं का सवाल है कि संसद भवन से भी क्या जिन्ना की तस्वीर हटाओगे? इस तस्वीर में जिन्ना के साथ जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी नज़र आते हैं। जिन्ना की तस्वीर हटती या नहीं हटती, उसकी खबर मीडिया में नहीं आई होती, तो हंगामा नहीं होता। अब हंगामा हो चुका है। अब फैसला कीजिए कि करें क्या? पहली बार में ही इसे हटा देना चाहिए था। सोचिए कि इस हंगामे से किसका भला हुआ? कुछ लोग हिन्दुओं के एक वर्ग को यह समझाने में कामयाब हुए हैं कि मुसलमानों का तुष्टीकरण हो रहा है और दूसरी ओर मुसलमानों के एक तबके के मन में यह बैठाया जा रहा है कि भारत में उनका रहना दूभर है। 

Saturday, May 5, 2018

वोट मुसलमान का, सियासत किसी और की...

कर्नाटक विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने पहले तो एचडी देवगौड़ा की तारीफ की और फिर अगले ही रोज कहा कि जेडीएस को वोट देने का मतलब है वोट की बरबादी। क्या उनके इन उल्टे-सीधे बयानों के पीछे कोई गहरी राजनीति है? वे वोटर को बहका रहे हैं या अपने प्रतिस्पर्धियों को? क्या बीजेपी और जेडीएस का कोई छिपा समझौता है? क्या बीजेपी ने कांग्रेस को हराने के लिए जेडीएस को ढाल बनाया है? भारतीय राजनीति में सोशल इंजीनियरी का स्वांग तबतक चलेगा, जबतक वोटर को अपने हितों की समझ नहीं होगी। मुसलमान वोटर पर भी यही बात लागू होती है।
कर्नाटक की सोशल इंजीनियरी उत्तर भारत के राज्यों से भी ज्यादा जटिल है। ऐसे में देवेगौडा की तारीफ या आलोचना मात्र से कुछ फीसदी वोट इधर से उधर हो जाए, तो हैरत नहीं होनी चाहिए। इस इंजीनियरी में सिद्धरमैया और अमित शाह में से किसका दिमाग सफल होगा, इसका पता चुनाव परिणाम आने पर लगेगा। इतना समझ में आ रहा है कि बीजेपी की कोशिश है कि दलितों और मुसलमानों के एकमुश्त वोट कांग्रेस को मिलने न पाएं। इसमें जेडीएस मददगार होगी।
सोशल इंजीनियरी का स्वांग
क्या जेडीएस खुद को चारे की तरह इस्तेमाल होने देगी? उसका बीएसपी और असदुद्दीन ओवेसी की एआईएमआईएम के साथ समझौता है और उसका अपना भी वोट-आधार है। उसके गणित को भी समझना होगा। सन 2015 में जबसे ओवेसी बिहार में चुनाव लड़ने गए हैं, उनकी साख घटी है। माना जाता है कि वे कांग्रेस को मिलने वाला मुसलमान वोट काटने के लिए जाते हैं।
राज्य में दलित और मुसलमान दो सबसे बड़े सामाजिक वर्ग हैं। ये दोनों एक साथ आ जाएं, तो बड़ी ताकत बन सकते हैं, पर क्या ऐसा सम्भव है? प्रश्न है कि दलित और मुसलमान क्या टैक्टिकल वोटिंग करेंगे? दलित ध्रुवीकरण अभी राज्य में नहीं है, पर मुसलमान वोट सामान्यतः बीजेपी को हराने वाली पार्टी को जाता है। सिद्धरमैया भी चाहते हैं कि बीजेपी और जेडीएस का याराना नजर आए। इससे मुसलमानों की जेडीएस से दूरी बढ़ेगी। हाल में कांग्रेस ने जेडीएस के कुछ मुस्लिम नेताओं को अपनी तरफ तोड़ा भी है।