राजनीतिक
गलियारों में डेढ़-दो महीने की अपेक्षाकृत चुप्पी के बाद आज दो बड़ी राजनीतिक
घटनाएं होने जा रहीं हैं, जिनका राजनीति पर असर देखने को मिलेगा. देश के चौदहवें
राष्ट्रपति के चुनाव के अलावा संसद का मॉनसून सत्र आज शुरू हो रहा है. सोलहवीं
लोकसभा के तीन साल गुजर जाने के बाद यह पहला मौका है, जब 18 विरोधी दल एक सामूहिक
रणनीति के साथ संसद में उतर रहे हैं. पिछले मंगलवार को इन दलों ने उप-राष्ट्रपति
पद के प्रत्याशी का नाम तय करने के साथ अपनी भावी रणनीति का खाका भी तय किया है. ये
दल अब महीने में कम से कम एक बार बैठक करेंगे. ये बैठकें दिल्ली में ही नहीं
अलग-अलग राज्यों में होंगी. ज्यादा महत्वपूर्ण है संसदीय गतिविधियों में इनका समन्वय.
राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक ध्रुवीकरण की प्रक्रिया अब क्रमशः तेज होगी.
Monday, July 17, 2017
Sunday, July 16, 2017
काजल की कोठरी क्यों बनी राजनीति?
एक सामान्य कारोबारी को लखपति से करोड़पति बनने में दस साल लगते हैं, पर आप राजनीति में हों तो यह चमत्कार इससे भी कम समय में संभव है। वह भी बगैर किसी कारोबार में हाथ लगाए। बीजेपी के नेता सुशील कुमार मोदी का दावा है कि लालू प्रसाद का परिवार 2000 करोड़ रुपये की संपत्ति का मालिक है। इस दावे को अतिरंजित मान लें, पर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि उनकी मिल्कियत करोड़ों में है। कई शहरों में उनके परिवार के नाम लिखी अचल संपत्ति के आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है।
Saturday, July 15, 2017
राजनीति नहीं चाहती सीबीआई को स्वतंत्र बनाना
इस साल मई में लालू यादव के पारिवारिक ठिकानों पर जब सीबीआई की छापा-मारी हुई तो लालू
यादव ने ट्वीट किया, ‘बीजेपी में हिम्मत नहीं कि
लालू की आवाज को दबा सके…लालू की आवाज दबाएंगे तो देशभर में करोड़ों
लालू खड़े हो जाएंगे।’ यह राजनीतिक बयान था। उन छापों के बाद यह भी समझ में
आने लगा कि लालू और नीतीश कुमार के बीच खलिश काफी बढ़ चुकी है। छापों की खबर आते
ही लालू ने अपने ट्वीट में एक ऐसी बात लिखी जिसका इशारा नीतीश कुमार की तरफ़ था।
उन्होंने लिखा, ‘बीजेपी को उसका नया एलायंस पार्टनर मुबारक हो।’
बात का बतंगड़ बनने के
पहले ही लालू ने बात
बदल दी। उन्होंने कहा बीजेपी के ‘पार्टनर’ माने आयकर विभाग और सीबीआई।
लालू ने एक तीर से दो शिकार कर लिए। वे जो कहना चाहते
थे, वह हो गया। उधर नीतीश कुमार ने कहा, बीजेपी जो आरोप लगा रही है, उसमें सच्चाई है तो
केंद्र सरकार अपनी एजेंसियों से जांच या कार्रवाई क्यों नहीं कराती? पिछले साल नवंबर में नोटबंदी का नीतीश कुमार ने स्वागत किया था।
उसके साथ उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री को बेनामी संपत्ति के ख़िलाफ़ भी
कार्रवाई करनी चाहिए। लालू यादव के परिवार की जिस सम्पत्ति को सीबीआई ने छापे डाले
हैं, उसका मामला नीतीश की पार्टी ने ही सन 2008 में उठाया था। तब केंद्र में
कांग्रेस की सरकार थी। आज बीजेपी सरकार है और बेनामी सम्पत्ति कानून में बदलाव हो
चुका है। लालू की बड़ी बेटी मीसा भारती और उनके पति इन दिनों सीबीआई और प्रवर्तन
निदेशालय के घेरे में हैं।
Friday, July 14, 2017
‘मोदी संस्कृति’ को चुनौती हैं गोपाल कृष्ण गांधी
प्रशासक, विचारक, लेखक और आंशिक रूप से राजनेता गोपाल
कृष्ण गांधी की देश की ‘गंगा-जमुनी’ संस्कृति के पक्षधर के रूप में पहचान है. उन्हें
महत्वपूर्ण बनाती है उनकी विरासत और विचारधारा. उनके पिता देवदास गांधी थे और माँ
लक्ष्मी गांधी, जो राजगोपालाचारी की बेटी थीं. दादा महात्मा गांधी और नाना
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी.
गोपाल कृष्ण गांधी ‘सामाजिक बहुलता’ के पुजारी हैं, और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व
में विकसित हो रहे ‘राजनीतिक हिन्दुत्व’ के मुखर विरोधी. विपक्षी दलों ने उन्हें
उप-राष्ट्रपति पद के लिए चुनकर यह बताने की कोशिश की है कि भारत जिस सांस्कृतिक
चौराहे पर खड़ा है, उसमें वे वैचारिक विकल्प का प्रतिनिधित्व करते हैं. वे मोदी के
सामने ‘सांस्कृतिक चुनौती’ के रूप में खड़े हैं.
Sunday, July 9, 2017
विपक्षी एकता की निर्णायक घड़ी
सीबीआई लालू ने यादव
के परिवार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करके शुक्रवार को देशभर में 12 स्थानों पर
छापामारी की है। लालू परिवार पिछले कुछ महीनों से सीबीआई के अलावा इनकम टैक्स
विभाग और प्रवर्तन निदेशालय की निगाहों में है। इस गतिविधि के आपराधिक निहितार्थ
एक तरफ हैं और राजनीतिक निहितार्थ दूसरी तरफ। इसका फौरी असर बिहार के महागठबंधन पर
पड़ने का अंदेशा है। पर
इससे ज्यादा महत्वपूर्ण प्रभाव 2019 के
चुनाव को लेकर चल रहे विपक्षी-एकता के प्रयासों पर पड़ेगा।
दूसरी ओर एनडीए की
रणनीति भी इन छापों से जुड़ी है। इस छापामारी ने महागठबंधन की राजनीति के
अंतर्विरोधों को खोला है। महागठबंधन में सेंध लगाने की एनडीए-राजनीति कितनी सफल
होगी, इसका भी इंतजार है। फिलहाल सारी निगाहें नीतीश कुमार पर हैं। उनका नजरिया इन
सभी बातों को प्रभावित करेगा।
पिछले दो-तीन हफ्ते
में नीतीश कुमार ने अचानक कुछ अप्रत्याशित फैसले किए हैं। राष्ट्रपति पद के चुनाव
में विपक्षी एकता से अलग होकर उन्होंने पहला झटका दिया और अपने दृष्टिकोण में आए
बदलाव का संकेत भी दिया। उसके बाद उन्होंने कांग्रेस की बुनियादी समझ पर प्रहार
किए। फिर भी उन्होंने खुद को व्यापक स्तर पर विपक्षी-एकता से अलग नहीं किया।
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